यह’ न ‘पूछो’ कि ‘हरीेश’ कैसे ‘हारे’, यह ‘पूछो’ कि क्यों ‘हारे’?

यह’ न ‘पूछो’ कि ‘हरीेश’ कैसे ‘हारे’, यह ‘पूछो’ कि क्यों ‘हारे’?

यह’ न ‘पूछो’ कि ‘हरीेश’ कैसे ‘हारे’, यह ‘पूछो’ कि क्यों ‘हारे’?

बस्ती। दो दिन पहले सोशल मीडिया पर पत्रकार अरुण कुमार की ओर से ‘हरीश द्विवेदी’ के हार का कारण क्या थे, के बारे में जिले की जनता की राय जाननी चाही थी। सबसे अच्छी बात यह रही है, लोगों ने बिना किसी डर के खुलकर अपनी राय को व्यक्त किया, इसी को लोकतंत्र की खूबसूरती कहा जाता है। यह राय किसी को अपमानित करने या फिर उनकी गलतियों का एहसास कराने के लिए नहीं दी गई, बल्कि यह बताने का प्रयास लोगों ने किया कि जो गलती हो गई, उसे दोहराया न जाए। एक अच्छा व्यक्ति और कुशल नेता वही होता है, जो अपनी गलतियों से सबक लेता है। हरीश द्विवेदी को भी सबक लेने की आवष्यकता बताई जा रही। लोगों की राय से एक बात उभरकर सामने आई कि किसी को भी घंमड नहीं करना चाहिए, कहा भी जाता है, कि घंमड अच्छे खासे इंसान को भी अपनों से दूर कर देता हैं, और जो चीज आप की नहीं हैं, उस पर घंमड क्यों और कैसा? अगर घंमड करना ही तो अपने चरित्र पर करिए, न कि पद पर।

सरदार कुलवेंद्र सिंह कहते हैं, कि हरीशजी काफी अच्छे व्यक्ति हैं, एक को छोड़कर सभी ओएसडी और पीआरओ मिलनसार और सुलभ स्वभाव के, हरीशजी के साथ में जो बिना लालच एवं लाभ के साथ में रहें, उन्हें वह संभाल नहीं पाए, जैसे सरदार कुलवेंद्र सिंह। चंदेष प्रताप सिंह का कहना है, कि ईमानदार और निष्ठावान कार्यकर्त्ताओं को नजरअंदाज करना, आयातित लोगों को गले लगाना, जातिवाद को बढ़ावा देना, गिने चुने रईसों अमीरों के घर निमंत्रण में जाना, कार्यकर्त्ताओं के दुख और सुख में षरीक न होना, एभरते जमीनी कार्यकर्त्ताओं को दबाना, क्षत्रिय समाज का दमन करना, निसार सिद्वीकी जैसे लोगों को गले लगाना, ठेकेदारों को गले लगाना, कान का कच्चा होना, नजर मिलाकर बात न करना, जनता से दूर रहना और सांसद निधि का दुरुपयोग करना हार का कारण बना। शिवम चौधरी कहते हैं, कि जनता से संबध न बनाना, पार्टी के लोगों का भीतरघात करना। महेंद्र सोनकर की राय में इन्होंने जनता से संपर्क समाप्त कर दिया था, चंद लोगों की पैरवी और साथ इनको जमीन पर ला दिया। चौधरी साहब का कहना है, कि सिर्फ कागज पर काम दिखाना, भाजपा जे जीती तो उसके सांसद अपना विकास किए, जनता का नही। राजेश मिश्र कहते हैं, कि कार्यकर्त्ताओं को नजरअंदाज करना और दलालों के हाथ में चुनाव का संचालन करवाना गलत था, लोग जीताने के बजाए अपनी गरीबी को दूर करने लगे, गरीबों के पास तक नहीं पहुंचे, अपने लोगों ने धोखा दिया, इस लिए चुनाव हार गए। भाजपा के प्रदीप चौधरी की राय में हार का मुख्य कारण गुटबाजी और जातिवादिता दोनों, चुनाव से पहले सब भाजपाई रहते हैं, और चुनाव आते ही वही भाजपाई जाहतवादी हो जाते है, अपना बूथ जीताने और दूसरे का बूथ हराने के लिए पैसा तक खर्च किया, ताकि यह जीतने के बाद मंत्री न बन जाए, इसी लिए इन्हें हरवाना जरुरी था। विजय बहादुर यादव कहते हैं, कि आजादी के 70 साल हो गए, लेकिन हमारे ग्राम सभा हथियवां भानपुर में आज तक पिच रोड नहीं बना, आशा थी कि हरीश सांसद बनेगे तो कुछ होगा, लेकिन वोटिगं के बाद झांकने तक नहीं आए, उनके पास जाने के बाद फेक आष्वासन ही मिला, आज विधायक राजेंद्र चौधरी हो यस सांसद राम प्रसाद चौधरी, केवल आष्वासन ही देते आ रहे। धमेंद्र शर्मा डीके लिखते हैं, कि 2024 में हारने का सबसे बड़ा कारण कार्यकर्त्ताओं के साथ धोखा करना, चुनाव से पहले पहचानते हैं, चुनाव के बाद तुम कौन कहां के हो, पूछते हैं, क्यों कि यह बर्ताव मेरे साथ कर चुके है। सतीश चौधरी लिखते हैं, कि अब हरीश द्विवेदी बस्ती से सांसद नहीं बन पाएगें। विजय शंकर मिश्र गाना, लिखते हैं, कि लोगों पर अतिविष्वास... और भीतरघात। अरविंद कुमार कहते हैं, कि अपने ही गिराते हैं, नशेमन पर बिजलियां। हरिकेश कुमार मौर्य कहते हैं, कि लोगों के बीच ना जाना और समय देकर ना मिलना। मणि प्रकाश पांडेय की राय में जब व्यक्ति को अपने आपके उपर घंमड होने लगे तो समझ लीजिए कि उसका अंत निष्चित ही है। अजित सिंह, चाटुकारों की ज्यादा बात सुनना। विनय कुमार मिश्र, कहते हैं, कि अपनों को भूलकर दूसरों का साथ देना और मोटरसाइकिल वालों को छोड़कर फारचूनर वालों पर विष्वास करना। डा. चंद्र प्रकाश वर्मा का कहना है, कि मोदी का पराभव, हरीश की क्या विसात, अयोध्या से लल्लू सिंह हार गए, जिस अयोध्या के दम पर पूरी बीजेपी दंभ भर रही थी, हरीश न कभी जीते थे और न हारे। शिवम उपाध्याय पंडत कहते हैं, कि दयाशंकर मिश्र और पाठकजी का पार्टी छोड़ना हार का कारण बना। बिपिन पाल कहते हैं, कि इतने बड़े पद पर आसीन व्यक्ति हर किसी के संपर्क में तो नहीं रह सकता, लेकिन कुछ लोग जो अपने-अपने क्षेत्र में अपने का प्रभावी बताकर किसी अन्य को सांसदजी से मिलने नहीं दिया, जिसका परिणाम चुनाव हारना रहा। सतीश लिखते हैं, कि सांसद रहते चार-चार विधायक हार जाना और किसी विधायक के प्रचार-प्रसार में रुचि न लेना हार का कारण बना। साहिल पांडेय कहते हैं, कि छोटे कार्यकर्त्ताओं को नजरअंदाज और बड़े-बड़े लममरदार बढ़का कुर्ता को सम्मान देना, जिनके पास कुछ नहीं सिवाय छोटो को दबाने का। विकास सिंह कहते हैं, कि हारने वाले एमपी बफलत में जी रहे थे, कि जनता मोदी और योगी के नाम पर वोट देगी, हम्हें कुछ करने की क्या जरुरत। एमके एमके लिखते हैं, कि अगर इनके स्थान किसी और को टिकट मिला होता तो वह जीत जाता। महेंद्र तिवारी कहते हैं, कि जब यह कुछ नहीं थे, तब से जो कार्यकर्त्ता लगा उसका सम्मान न करना और उसे भूल जाना कारण बना। उपेंद्रनाथ दूबे कहते हैं, कि कान भरवा लोगों से घिरे रहकर अपने पुराने शुभचिंतकों और सहयोंगियों की उपेक्षा करना।

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