यूंही ‘मां-बाप’ और ‘जिले’ का नाम ‘रोशन’ करती रहो डा. ‘प्रियांशु श्रीवास्तवा’!

यूंही ‘मां-बाप’ और ‘जिले’ का नाम ‘रोशन’ करती रहो डा. ‘प्रियांशु श्रीवास्तवा’!
यूंही ‘मां-बाप’ और ‘जिले’ का नाम ‘रोशन’ करती रहो डा. ‘प्रियांशु श्रीवास्तवा’!

-बस्ती की छात्रा डॉ. प्रियांशु श्रीवास्तव आज विश्व के अग्रणी कैंसर अनुसंधान केंद्र की वैज्ञानिक भारतीय विज्ञान की उस प्रेरक कहानी का चेहरा हैं, जो बताती है कि लगन और ज्ञान से कोई भी दूरी असंभव नहीं, जो यह बताती है कि लगन और ज्ञान से कोई भी दूरी असंभव नहीं

-बस्ती से एम.डी. एंडरसन तक डॉ. प्रियांशु श्रीवास्तव की प्रेरक यात्रा, जो कैंसर और वायरस से लड़ाई में नई राह दिखा रही

बस्ती। कौन कहता है, कि लड़कियां उचाईयों को नहीं छू सकती, उचाईयों को छूने वालों में बस्ती मंडल के कमिष्नर के पूर्व स्टेनो मनोज कुमार श्रीवास्तव की लाडली डॉ. प्रियांशु श्रीवास्तव का भी नाम शामिल हो गया। इन्होंने वह मुकाम हासिल किया है, जिसके बारे में कई युवा वैज्ञानिक केवल सपना देखते हैं। सीमित संसाधनों वाले छोटे शहर से शुरू होकर अब वह दुनिया के शीर्ष कैंसर अनुसंधान संस्थान एम. डी. एंडरसन कैंसर सेंटर (अमेरिका) में शोध कर रही हैं। इनकी यात्रा मेहनत, लगन और वैज्ञानिक जिज्ञासा की मिसाल है। डॉ. प्रियांशु की प्रारंभिक शिक्षा महर्षि विद्यापीठ विद्यालय, बस्ती से हुई। इसके बाद उन्होंने बुंदेलखंड विश्वविद्यालय से बायोमेडिकल साइंसेज में स्नातक किया और फिर जीवाजी विश्वविद्यालय से बायोटेक्नोलॉजी में परास्नातक (एम.एससी.) की उपाधि स्वर्ण पदक के साथ प्राप्त की, जहाँ वे राज्य विश्वविद्यालय स्तर पर शीर्ष स्थान पर रहीं। उनकी प्रतिभा को राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली उन्होंने सीएसआईआर-जेआरएफ (2015), एआरएस-एनईटी, आईसीएमआर और जीएटीई (लाइफ सांइस) जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। इसके बाद इन्होंने अंतरराष्ट्रीय आणविक जीवविज्ञान एवं आनुवंशिक इंजीनियरिंग केंद्र (आईसीजीईबी), नई दिल्ली से पीएचडी पूरी की। पीएचडी के दौरान डॉ. प्रियांशु ने एक महत्वपूर्ण खोज की उन्होंने दिखाया कि एक छोटी आरएनए (माइक्रो आरएनए)-एचएसए-एमआईआर-122बी-5पी  चिकनगुनिया वायरस को दोहरी तरह से नियंत्रित करती है। यह न केवल सीधे वायरस के जीनोम को निशाना बनाती है, बल्कि मानव प्रतिरक्षा जीन (एचडीएसी4) को भी सक्रिय करती है, जिससे शरीर की एंटीवायरल क्षमता बढ़ती है। यह शोध प्रतिष्ठित जरनल आफ वायरलोजी में प्रकाशित हुआ और वायरल इम्यूनोलॉजी के क्षेत्र में नई दिशा दी। वर्तमान में, डॉ. प्रियांशु एम.डी. एंडरसन कैंसर सेंटर, अमेरिका में पेडियाट्रिक टी-सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (टी आल) एक दुर्लभ बाल्यावस्था कैंसर पर पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता के रूप में कार्यरत हैं। इनका शोध इस बीमारी के नए चिकित्सीय लक्ष्य (थेराप्यूटिक टारगेट) पहचानने पर केंद्रित है ताकि भविष्य में सटीक उपचार विकसित किए जा सकें। डॉ. प्रियांशु कहती हैं- मैंने अपनी यात्रा एक छोटे से शहर से शुरू की, जहाँ सुविधाएँ कम थीं लेकिन सपने बड़े थे । प्रयोगशाला की हर रात, हर असफल प्रयास ने मुझे आगे बढ़ना सिखाया। मेरे लिए विज्ञान केवल खोज नहीं, बल्कि दृढ़ता और उद्देश्य है। बस्ती की एक छात्रा ने विश्व के अग्रणी कैंसर अनुसंधान केंद्र की वैज्ञानिक तक डॉ. प्रियांशु श्रीवास्तव आज भारतीय विज्ञान की उस प्रेरक कहानी का चेहरा हैं, जो बताती है कि लगन और ज्ञान से कोई भी दूरी असंभव नहीं।
Comments

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *