विधायकजी कर रहें एसडीएम के घर की दरबारी

विधायकजी कर रहें एसडीएम के घर की दरबारी

विधायकजी कर रहें एसडीएम के घर की दरबारी

-जब विधायक एसडीएम जैसे रैंक के अधिकारी के घर जाकर चाय पीने लगेंगें तो अधिकारी क्यों माननीयों की इज्जत करेगें

-विधायक चाहते तो प्रोटोकाल के तहत एसडीएम को सर्किट हाउस बुलाकर अपनी बात कह सकते थे, लेकिन जीहूजूर कहने की आदत उन्हें रोकती

-ऐसे भी एमएलसी/विधायक हुए जिन्होंने डीएम के चाय के आफर तक को ठुकरा चुकें, विधायक अपने नीजि लाभ के लिए अपनी गरिमा गिराते जा रहें

बस्ती। हमारे जिले में ऐसे भी विधायक हैं, जिन्हें लगता ही नहीं वह विधायक भी है। जीहूजूरी करने वाली आदत विधायक बनने के बाद भी नहीं जा रही हैं। तभी तो वह एक एसडीएम के घर भागे-भागे चाय पीने चले गए, इन्हें इतना भी ख्याल नहीं रहा कि अब वह विधायक हो गए हैं, अगर विधायकजी चाहते तो प्रोटोकाल के तहत एसडीएम साहब को सर्किट हाउस बुलाकर अपनी बात कह सकते थे। विधायकजी को याद दिलाना चाहता हूं कि देवेंद्रप्रताप सिंह भी एमएलसी हैं, जो आज तक किसी डीएम और कमिष्नर के बुलाने पर भी उनके घर चाय पीने नहीं गए। ऐसे नेता के साथ डीएम और कमिष्नर चाय पीना अपनी शान समझते है। वैसे भी प्रोटोकाल के तहत किसी भी माननीय को किसी भी अधिकारी के घर नहीं जाना चाहिए। कहा भी जाता है, जब विधायक लोग ही अधिकारियों के घर दरबारी करने लगेगें तो फिर उनमें और एक सामान्य व्यक्ति में क्या फर्क रह जाएगा? ऐसे विधायकों के चलते ही अधिकारी नेताओं को कोई भाव नहीं देते। कहना गलत नहीं होगा कि आज का विधायक खुद अपनी गरिमा को गिराते जा रहे है। विधायक बनना अलग बात हैं, और विधायक जैसा रुतबा रखना दूसरी बात है। अगर कोई ठेकेदार किस्मत से विधायक या सांसद बन जाता है, तो उसके भीतर का ठेकेदार कभी नहीं मरता। ठेकेदार मतलब अधिकारियों की जीहूजूरी करना होता। विधायकजी जिस एसडीएम के आवास पर चाय पीने गए थे, वह अपने सीनियर से अवष्य कहेगा कि विधायकजी उनके घर चाय पीने आए थे। जो विधायक पद की गरिमा नहीं रख सकतें उन्हें विधायक बनने का कोई अधिकार नहीं है, ऐसे विधायकों को तो इस्तीफा दे देना चाहिए। विधायकजी जिस एसडीएम के घर चाय पीने गए थे, क्या विधायकजी उस एसडीएम के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा पाएगें? कत्तई नहीं, आज के विधायक जो जनता के बीच में यह चिल्लाते रहते हैं, कि अधिकारी बेलगाम हैं, उनकी सुनते ही नहीं, उसका कारण खुद विधायक ही होते है। जब विधायकजी अधिकारियों के आवास पर चाय पीने जाएगें तो अधिकारी कैसे उनकी बात सुनेगा? ऐसे विधायकों के बारे में जनता भी अच्छी तरह जानती और समझती है, तभी तो वह इनके पास जाने के बजाए सीधे अधिकारी और मीडिया के पास चली जाती है, क्यों कि जनता को अपने विधायकों के बारे में अच्छी तरह मालूम है, कि यह कितने पानी में है। विधायकजी अगर अधिकारी आप की बात नहीं सुनते तो क्यों नहीं उनके भ्रष्टाचार की पोल खोलते और क्यों नहीं सदन यह उठाते कि अमूक अधिकारी भ्रष्टाचार कर रहा है, क्यों नहीं शासन को भ्रष्ट अधिकारियों की शिकायत करते और जांच करवाते? क्या इसके लिए भी किसी ने आपको रोका। यह वही विधायक कर सकता है, जो ठेका पटटा नहीं चाहता और न गलत काम ही करवाना चाहता। यहां तो लगभग सभी विधायक और सांसद की गर्दन फंसी हुई हैं, आवाज उठाए तो कैसे उठाएं? जो विधायक और सांसद, निधि को बेचते हैं, वह कभी भी भ्रष्ट अधिकारियों खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते, क्यों कि जैसे ही आवाज उठाएगें वैसे ही उनके निधियों की जांच होने लगेगी। अब आप इस बात से अंदाजा लगाइए कि जो विधायक और सांसद खुद भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा हुआ है, वह क्या किसी अधिकारी के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा पाएगा? कहना गलत नहीं होगा कि भ्रष्टाचार के बढ़ने का कारण विधायक और सांसद का भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज न उठाना माना जा रहा हैं, और खुद भ्रष्टाचार के दलदल में फंसना माना जाता है। ऐसे लोगों का दायरा श्रद्धाजंलि सभा और नेताओं के जन्म दिन को मनाने तक ही सीमित है। जनता इसके लिए विधायक और सांसद नहीं चुनी है। जब जनता का जनप्रतिनिधि ही डरपोक और निधि बेचने वाला होगा तो जनता पिसेगी ही। जिले की कानून व्यवस्था पर आज तक एक भी विधायक धरने पर नहीं बैठे और न सदन में ही आवाज उठाया। भले ही चाहें उसकी जनता मारी ही क्यों न जा रही हो?

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