उन्नतिशील’ बीज के ‘नाम’ पर कृषि ‘फार्मो’ में मची ‘लूट’!

उन्नतिशील’ बीज के ‘नाम’ पर कृषि ‘फार्मो’ में मची ‘लूट’!

उन्नतिशील’ बीज के ‘नाम’ पर कृषि ‘फार्मो’ में मची ‘लूट’!


-जिन कृषि विभाग के हर्रैया के सिसई और रुधौली के अमरडीहा राजकीय कृषि प्रक्षेत्रों में सरकार सारे संसाधन मौजूद उपलब्ध करा रखा हैं, ताकि उन्नतिशील बीजों का अधिक से अधिक उत्पादन हो सके, वहां पर अगर मानक से भी कम उत्पादन होता, इसे फर्जीवाड़ा माना जाएगा, सवाल तो जिला कृषि अधिकारी पर ही उठेगा

-इन दोनों फार्मो पर तकनीकी आधार पर उन्नतिशील बीज के उत्पादन को बढ़ाने के लिए पर सरकार हर साल एक करोड़ से अधिक खर्च करती, फिर भी उत्पादन मानकनुसार नहीं हो रहा, वहीं अगर फार्मो के अगल बगल के गांव के किसान संसाधनों के अभाव में कृषि फार्मो अधिक उत्पादन कर रहे, जाहिर सी बात फर्जीवाड़ा हो रहा

-एक करोड़ के बजट का लगभग 70 लाख जिला कृषि अधिकारी, जेडीए, प्रक्षेत्र अधीक्षक, लेखाकार, पटल सहायक की जेबों में जा रहा, हाथ से बने फर्जी मस्टरोल, फर्जी बिल और बाउचर के जरिए गिरोह बनाकर धन को लूटा जा रहा

-उत्पादन बढ़े तो कैसे जब कृषि विभाग के दोनों फार्मो पर 10 के स्थान पर पांच बोरी खाद डाली जाती और 10 क्ंिवटल बीज के स्थान पर पाचं-छह क्ंिवटल प्रति हेक्टेअर बोया जाता, कई बार तो पूरा का पूरा बजट डकार गए, और बाजार से कम दामों में बीज खरीदकर कोरम पूरा कर लिया, बाजार के रेट में 60-40 फीसद का अंतर होता

-जब विभाग वाले सारा इनपुट खा जाएगें तो आउटपुट कहां से मिलेगा, फार्मो पर चौकीदार, प्रक्षेत्र अधीक्षक, लेबर, जनरेटर, उन्नतिशील बीज, फंेसिंग सहित सबकुछ हैं, लेकिन उत्पादन नहीं

-लखनऊ से अगर कोई अधिकारी जांच करने को आता भी है, तो वह खाता, पीता और सोता, और सुबह होते ही नोटों का बंडल लेकर खुश होकर चला जाता, और फिर आने की कामना करता

बस्ती। कृषि विभाग और इसके अधिकारियों एवं पटल सहायकों का नाम जैसे ही किसानों के जेहन में आता, वैसे ही उनके सामने भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का नाम आ जाता। प्रदेश का यह पहला ऐसा विभाग होगा, जहां पर एक ही विभाग के जिला कृषि अधिकारी कार्यालय, उप निदेशक कृषि कार्यालय, भूमि संरक्षण अधिकारी कार्यालय और मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में एक साथ किसानों के नाम पर लूटखसोट होता है। एक भी किसान ऐसा नहीं होगा, जो इस विभाग के लोगों के बारे में अच्छा कहता और अच्छा सोचता हो। विभाग के मंडल मुखिया जेडीए पर सभी भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का आरोप तक लगता रहा। इस विभाग के लोगों के बारे में कहा जाता है, कि यह पहला ऐसा विभाग होगा, जहां के पटल सहायक नीजि लाभ और साहबों का चहेता बनने के लिए एक दूसरे का टांग खिचतें हैं। एक दूसरे को पटकनी देने में ही इन लोगों को सारा दिन बीत जाता है। छद्म नामों से अपने लोगों के बारे में शिकायत करने में पटल सहायकों ने मानो पीएचडी कर रखा हो। देखा जाए तो सबसे अधिक विष्वासघात इसी विभाग के लोग करते है। मलाईदार पलट पाने के लिए यह लोग कुछ भी करने को तैयार रहते। चूंकि इन लोगों के पास बेईमानी का इतना पैसा होता है, कि वर्चस्व कायम रखने और विरोधियों को पटल से हटवाने, उनका तबादला अन्यत्र करवाने और कार्रवाई करने के लिए पानी की तरह पैसा भी खर्चा करने से परहेज नहीं करते। नेताओं का सहयोग लेने में भी यह लोग नहीं हिचकते।

आज हम आपको पहली बार कृषि विभाग के हर्रैया के सिसई और रुधौली के अमरडीहा स्थित राजकीय कृषि प्रक्षेत्र यानि कृषि फार्मो में उन्नतिशील बीज के उत्पादन के नाम पर हर साल हो रहें लगभग 70 लाख के बंदरबांट के बारे में बताने जा रहे हैं। बहुत कम लोगों को यह पता होगा, कि इन दोनों फार्मो में हर साल एक करोड़ से अधिक का बजट आता हैं, ताकि उन्नतिशील बीजों का अधिक से अधिक उत्पादन हो सके। बताते थे, कि दोनों फार्मो में संसाधनों की कोई कमी नहीं है। बजट हैं, संसाधन हैं, मैन पावर है, जानकारों से बचाने के लिए फेसिंग भी है, चौकीदार, प्रक्षेत्र अधीक्षक, लेबर, जनरेटर, उन्नतिशील बीज भी है, सबकुछ हैं, लेकिन मानकनुसार उत्पादन नहीं हो रहा है। वहीं पर अगल-बगल के गांव के किसान जिनके पास सीमित संसाधन हैं, खाद और सिंचाई करने लिए पैसा नहीं, फसलों को जानवरों से बचाने के लिए कोई साधन नहीं फिर भी यहां के किसान सुविधा संपन्न फार्मो की अपेक्षा अधिक उत्पादन कर रहे है। -जिन कृषि विभाग के हर्रैया के सिसई और रुधौली के अमरडीहा राजकीय कृषि प्रक्षेत्रों में सरकार सारे संसाधन मौजूद उपलब्ध करा रखा हैं, ताकि उन्नतिशील बीजों का अधिक से अधिक उत्पादन हो सके, वहां पर अगर मानक से भी कम उत्पादन होता, इसे फर्जीवाड़ा माना जाएगा, सवाल तो जिला कृषि अधिकारी पर ही उठेगा। इन दोनों फार्मो पर तकनीकी आधार पर उन्नतिशील बीज के उत्पादन को बढ़ाने के लिए पर सरकार हर साल एक करोड़ से अधिक खर्च करती, फिर भी उत्पादन मानकनुसार नहीं हो रहा, वहीं अगर फार्मो के अगल बगल के गांव के किसान संसाधनों के अभाव में कृषि फार्मो अधिक उत्पादन कर रहे, जाहिर सी बात फर्जीवाड़ा हो रहा है। एक करोड़ के बजट का लगभग 70 लाख जिला कृषि अधिकारी, जेडीए, प्रक्षेत्र अधीक्षक, लेखाकार, पटल सहायक की जेबों में जा रहा, हाथ से बने फर्जी मस्टरोल, फर्जी बिल और बाउचर के जरिए गिरोह बनाकर धन को लूटा जा रहा हैं, और दावा किया जा रहा है, कि अगर बिल बाउचर की ही जांच हो जाए तो सबकी पोल खुल जाएगी। अधिकारी से लेकर लेखाकार और पटल सहायक तक नगंे नजर आएगें। सवाल उठ रहा है, कि उत्पादन बढ़े तो कैसे जब कृषि विभाग के दोनों फार्मो पर 10 के स्थान पर पांच बोरी खाद डाली जाती और 10 क्ंिवटल बीज के स्थान पर पाचं-छह क्ंिवटल प्रति हेक्टेअर बोया जाता, कई बार तो पूरा का पूरा बजट डकार लिया जाता है, और बाजार से कम दामों में बीज खरीदकर कोरम पूरा कर लिया जाता, बाजार के रेट में 60-40 फीसद का अंतर होता है। कहा जा रहा है, कि जब विभाग वाले सारा इनपुट खा जाएगें तो आउटपुट कहां से मिलेगा, फार्मो पर चौकीदार, प्रक्षेत्र अधीक्षक, लेबर, जनरेटर, ट्यूबवेल हो, उन्नतिशील बीज हो फंेसिंग सहित सारी सुविधा हो, अगर उसके बाद भी उत्पादन नहीं बढ़ता तो सवाल तो सबसे अधिक जिला कृषि अधिकारी पर ही उठेगा। लखनऊ से अगर कोई अधिकारी जांच करने को आता भी है, तो वह खाता, पीता, सोता हैं, और सुबह होते ही नोटों का मोटा लिफाफा लिया और खुश होकर चले गए, और फिर आने की कामना करते हैं। यह कहना नहीं भूलते कि आप लोगों ने मेहमाननवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ा। इन जांच अधिकारियों की ऐसी शानदार विदाई की जाती हैं, जैसे किसी नये-नये दामाद का किया जाता है।

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