धान घोटाले में तीन एडीएम, एसडीएम और एआर के खिलाफ दर्ज होगा केस

धान घोटाले में तीन एडीएम, एसडीएम और एआर के खिलाफ दर्ज होगा केस

धान घोटाले में तीन एडीएम, एसडीएम और एआर के खिलाफ दर्ज होगा केस

-एसआईटी की जांच रिपोर्ट पर सरकार ने आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन को दिया घोटाले के दोषियों के खिलाफ विधिक कार्रवाई करने का निर्देश

-सबसे अधिक कार्रवाई के दायरे में सहकारिता विभाग के लोग आ रहे एआर से लेकर एसीडीसीओ, एडीओ से लेकर केंद्र प्रभारी तक आ रहें

-फर्जी खतौनी पर मोहर लगाने वाले पांच लेखपाल और अनेक कंप्यूटर आपरेटर भी आ रहें

-पीसीएफ मुख्यालय के अधिकारियों पर भी गाज गिर सकती, अपर मुख्य सचिव सहकारिता का कहना है, कि कार्रवाई किसी भी स्तर पर रुकने नहीं जाएगी

-4200 किसानों के आधार कार्ड और मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करके करोड़ों रुपयो का फर्जी भुगतान किया गया

-37 क्रय क्रेंद्रों पर एक ही मोबाइल नंबर और बैंक खाता दर्ज कर करोड़ों की हेराफेरी की गई, सबसे अधिक फर्जीवाड़ा सहकारिता के क्रय केंद्रों पर किया गया

-अब तक इस मामले में 10 अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुका, छह की गिरफतारी भी हो चुकी

-मीडिया अगर घोटाले पर से पर्दा न उठाती तो इतनी बड़ी कार्रवाई भी नहीं होती, इस कार्रवाई का पूरा श्रेय मीडिया, भाजपा नेता एवं जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन राजेंद्रनाथ तिवारी, एमएलसी प्रतिनिधि हरीश सिंह, चंद्रेश प्रताप सिंह, अधिवक्ता बाबू राम सिंह और महंथ गिरिजेश दास को जाता

बस्ती। कौन कहता है, कि मीडिया कमजोर हो गई और उसके लिखने से कुछ नहीं होता, अगर ऐसा होता तो मंडल में लगभग 35 करोड़ के धान घोटाले में तीन एडीएम, कई एसडीएम, तीन एआर, दर्जनों एडीसीओ, दर्जनों एडीओ सहकारिता, पांच लेखपाल और अनेक कंप्यूटर आपरेटर के खिलाफ सरकार विधिक कार्रवाई करने का फरमान न सुनाती। यह बस्ती के मीडिया की ही देन है, कि इतने बड़े घोटाले पर से पर्दा उठ गया, वरना भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों ने इसे हजम ही कर लिया था। अगर स्थानीय मीडिया के द्वारा दी गई जानकारी और उपलब्ध कराए गए साक्ष्यों को कमिष्नर, डीएम, एडीएम और एसडीएम सहित एआर कोआपरेटिव संज्ञान में लेकर जांच करवा लेते तो मामला उपर तक नहीं जाता, और न इतनी बड़ी कार्रवाई होती। जांच कराने को कौन कहें, मामले को पूरी तरह जिम्मेदारों ने दबाने का प्रयास किया। क्यों किया इसे न ही लिखा जाए तो जिम्मेदारों के लिए अच्छा होगा। सरकार को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में एसआईटी ने स्पष्ट कहा गया कि यह न तो अनियमितता और न गबन बल्कि धान के करोड़ों रुपये को संगठित गिरोह की तरह लूटा गया। एसआईटी की जांच रिपोर्ट पर सरकार ने आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन को घोटाले के दोषियों के खिलाफ विधिक कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। इस घोटाले के दायरे में सबसे अधिक सहकारिता विभाग के लोग ही आ रहे एआर से लेकर एडीसीओ, एडीओ से लेकर केंद्र प्रभारी तक आ रहें। फर्जी खतौनी पर मोहर लगाने वाले पांच लेखपाल और अनेक कंप्यूटर आपरेटर भी आ रहें है। पीसीएफ मुख्यालय के अधिकारियों पर भी गाज गिर सकती, अपर मुख्य सचिव सहकारिता का कहना है, कि कार्रवाई किसी भी स्तर पर रुकने नहीं दी जाएगी। 4200 किसानों के आधार कार्ड और मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करके करोड़ों रुपयों का फर्जी भुगतान किया गया, 37 क्रय क्रेंद्रों पर एक ही मोबाइल नंबर और बैंक खाता दर्ज कर करोड़ों की हेराफेरी की गई, सबसे अधिक फर्जीवाड़ा सहकारिता के क्रय केंद्रों पर किया गया। अब तक इस मामले में 10 अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुका, छह की गिरफतारी भी हो चुकी। सिद्वार्थनगर के पीसीएफ के डीएस अमित कुमार बर्खास्त हो चुके है। यह वही अमित कुमार हैं, जिन्होंने मीडिया को नकारा बताया था। कहा था, कि चाहें जितना मेरे खिलाफ लिख-पढ़ लो मेरा कुछ नहीं होगा, क्यों कि इस घोटाले में मैं अकेला नहीं हूं, बल्कि स्थानीय और लखनउ स्तर के प्रषासनिक एवं विभागीय अधिकारी से लेकर एआर तक षामिल है। यह सही है, कि अगर जिले की मीडिया घोटाले पर निरंतर रिर्पोटिगं न करती तो मामला षासन तक नहीं पहुंचता, और न ही इसकी गोपनीय जांच होती और न सरकार को रिपोर्ट ही जाती, इसी रिपोर्ट के आधार पर एसआईटी ने भी जांच किया। लखनउ की गोपनीय जांच टीम को भी मीडिया ने साक्ष्य उपलब्ध कराया था, जो जांच में सही पाया गया। देखा जाए तो लखनउ की गोपनीय टीम सबसे अधिक बधाई की पात्र है। अब जरा अंदाजा लगाइए कि लखनउ की जांच टीम ने मीडिया पर भरोसा करके उनसे साक्ष्य मांगा और उसी आधार पर गोपनीय जांच भी किया, लेकिन मंडल और जिले के अधिकारियों ने मीडिया के द्वारा उपलब्ध कराए गए साक्ष्य को कुआनों नदी में फेंक दिया। मामले को षिकायत के जरिए पीएम और सीएम तक पहुंचाने में और इतनी बड़ी कार्रवाई का श्रेय मीडिया को तो जाता ही है, लेकिन उससे अधिक इसका श्रेय भाजपा नेता एवं जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन राजेंद्रनाथ तिवारी, एमएलसी प्रतिनिधि हरीश सिंह, चंद्रेश प्रताप सिंह, अधिवक्ता बाबू राम सिंह और पोखरभिटवा के महंथ गिरिजेश दास को जाता है। इस कार्रवाई से मीडिया और उन लोगों को बल मिला जो भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर लड़ते रहते है। जब कार्रवाई की जानकारी डीएम को दी गई और उनसे यह कहा गया कि अगर प्रषासन ने मीडिया की रिपोर्ट को संज्ञान में लिया होता तो शायद इतनी बड़ी कार्रवाई न होती। डीएम से यह भी कहा गया कि भले ही आप मीडिया की जानकारी पर कोई कार्रवाई न करें, लेकिन कम से कम क्योरी तो करा लें। इस पर उन्होंने मीडिया की रिपोर्ट को संज्ञान में लेने की बात कही। धान घोटाले के मामले डीआर की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। अगर यह चाहते तो मंडल के सहकारिता के क्रय केंद्रों के फर्जीवाड़े को रोक सकते थे, पीसीएफ के आरएम के खिलाफ तो मकुदमा दर्ज हुआ, लेकिन डीआर और एआर के खिलाफ न तो कोई कार्रवाई हुई और न मुकदमा ही दर्ज करवाया गया। सहकारिता विभाग के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई न होने के पीछे विभागीय मंत्री के ब्रीफकेस कल्चर को षिकायतकर्त्ता जिम्मेदार मान रहे है। इन लोगों को भले ही इनके मंत्री ने बचा लिया, लेकिन अब नहीं बच पाएगें।

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