सूदखोरों’ को ‘करोड़ों’ का ‘चूना’ लगाने वाला ‘दुबई’ में कर रहा ‘अयाशी’

सूदखोरों’ को ‘करोड़ों’ का ‘चूना’ लगाने वाला ‘दुबई’ में कर रहा ‘अयाशी’

सूदखोरों’ को ‘करोड़ों’ का ‘चूना’ लगाने वाला ‘दुबई’ में कर रहा ‘अयाशी’

-जिले के यह पहले ऐसे व्यक्ति होगें जिन्होंने एक दर्जन सूदखोरों को कम से कम 10 करोड़ का चूना लगाय, सूउखोर देखते रह गए और बाबू साहब का जहाज दुबई लैंड कर गया

-किसी से 10, तो किसी 20 फीसद ब्याज पर उठाया आठ-से दस करोड़, बाबू साहब पेंट की दुकान चलाते थे

-बड़ेबन के कुर्मी टोला में सूदखोरों का एक सिंडिकेट चल रहा, तेनुआ गांव के पूरे बाबू साहब सूद के कारोबार पर ही जिंदा

-महरीपुर, बेलाड़ी, भेलवल, मरवटिया के बाबू साहब बड़ेबन के कुर्मी और बेलवाड़ाडी के लाला भाई की सूदखोरी के चलते न जाने कितने घर और व्यापारी तबाह हो गए, कई तो दिवालिया के कगार पर पहुंच चुके

-इस सूदखोरी के अवैध कारोबार में सूद पर पैसा देने और लेने वाला दोनों फारचूनर से चलते

बस्ती। आज हम आप लोगों को एक ऐसे मरवटिया के बाबू साहब के बारे में बताने जा रहें हैं, जिनके बारे में आज तक किसी आम आदमी ने न कहीं सुना होगा, और न देखा ही होगा। अभी तक आप लोगों ने सूदखोरों के हाथों व्यापारियों एवं कामगार को बर्बाद होने की घटना अनेक बार सुनी और देखी होगी, लेकिन यह कभी नहीं सुना होगा, कि कोई एक व्यक्ति एक दर्जन सूदखोरों को बर्बाद करके चला गया। चूना लगाने वाला भी कोई मामूली व्यक्ति नहीं बल्कि यह मरवटिया के बाबू साहब हैं, इनका पेंट का दुकान डीएम आवास के आसपास चता था। बताते हैं, कि इनके दिमाग में एक आइडिया आया कि क्यों न सूदखोरों को चूना लगाया जाए। चूंकि इनका कारोबार ठीक-ठाक चल रहा था, और बाबू साहब की इमेज भी अच्छी थी, इस लिए इन्होंने लगभग एक दर्जन सूदखोरों से कारोबार के नाम पर लगभग आठ से दस करोड़ सूद पर लिया, किसी से 10 तो किसी से 15 तो किसी से 20 फीसद ब्याज पर पैसा उठाया, शुरुआत में इन्होंने एक रणनीति के तहत समय से ब्याज का पैसा देते रहें, इससे इनकी और इमेज अच्छी हो गई, और इसी इमेज को इन्होंने खूब कैश किया। एक दिन यह अचानक गायब हो गए, सूदखोरों ने खोजने का बहुत प्रयास किया लेकिन कहीं पता नहीं चला, एफआईआर तो लिखवा नहीं सकते थे, बाद में पता चला कि बाबू का जहाज तो दुबई लैंड कर गया, यह भी पता चला कि बाबू साहब दुबई में सूदखोरों के पैसे से खूब अयाशी कर रहें हैं, किसी के साथ मिलकर कारोबार भी कर रहे है। इतना पैसा अगर किसी व्यापारी का डूबा होता तो वह कब का आत्महत्या कर चुका होता, लेकिन ठहरे सूदखोर, और सूदखोर कभी आत्महत्या नहीं करता, बल्कि दूसरों को करने के लिए मजबूर अवष्य करता है। इसी लिए बार-बार मीडिया उन लोगों को आगाह कर रही है, जो सूदखोरों के पास जाने की मंषा रखते हैं, भूखों रह लीजिए, मोटर साइकिल या फिर साइकिल ही क्यों न चलिए, लेकिन सूदखोरों के चंगुल में मत पड़िए, वरना एक दिन दिव्यांशु खरे की तरह आप भी सोषल मीडिया पर रोते फिरेगें। देखा जाए तो दिव्यांशु खरे और अमन श्रीवास्तव के एपिसोड ने सूदखोरों को एक तरह से यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कहीं उनके साथ भी ऐसी घटना न हो जाए, जिसमें इज्जत के साथ पैसा भी चला जाए। इस अवैध कारोबार में जिन सूदखोंरों का करोड़ों रुपया लगा है, उन्हें अब वापसी की ंिचंता सताने लगी है। हर कोई हिसाब-किताब देख रहा है, और मूलधन सहित सूद की वापसी का तकादा भी कर रहा है। बताते हैं, कि करोड़ों रुपया चुकाने करने के बाद भी दिव्यांशु खरे को मुक्ति नहीं मिली है। अभी तक इन्हें उन लोगों से एनओसी नहीं मिला, जिनका यह 90 लाख के स्थान पर दो करोड़ और 31 लाख के स्थान पर 52 लाख चुकता कर चुके है। इस बवाल के बाद तो एनओसी मिलना और भी कठिन लग रहा है। गलती दिव्यांशु खरे की है, या फिर अमन श्रीवास्तव की, इसका फैसला तो उस दिन होगा जब यह दोनों खुले मन से और ईमानदारी के साथ एक टेबुल पर नहीं बैठेगें। तब तक खरेजी को एनओसी नहीं मिल सकती। एनओसी मिलने के बाद ही खरेजी और उनका परिवार चैन की नींद सो पाएगा। दिक्कत यह है, कि इस तरह के मामले में खुलकर कोई सामने नहीं आना चाहता, क्यों कि दोनों की इज्जत और पैसा जाने का खतरा रहता है। यह लोग तब तक पुलिस के पास नहीं जा सकते, जब तक कोई अपराध न घटित हो जाए। कुछ भी कीजिए, लेकिन अपराध की ओर मत जाइए, नहीं तो कुछ भी नहीं बचेगा। हालांकि जिन मामलों में करोड़ों का लेन-देन होता है, अगर उसमें ईमानदारी नहीं बरती जाती है, तो उन मामलों में अपराध के होने की संभावना बनी रहती है। बड़ेबन का कुर्मी टोला है, जहां पर सूदखोरी का सिंडिकेट चलता है। यह सिंडिकेट महरीपुर, बेलाड़ी, भेलवल, मरवटिया और बेलवाड़ाडी तक फैला हुआ। इस सिंडिकेट में सबसे अधिक बाबू साहब और लाला भाई के लोग शामिल है। इन लोगों के चलते न जाने कितने घर और व्यापारी तबाह हो चुके हैं, कई तो दिवालिया के कगार पर पहुंच चुके है। इस सूदखोरी के अवैध कारोबार में सूद पर पैसा देने और लेने वाला दोनों फारचूनर से चलते है। बाबू साहब लोगों का एक गांव तेनुआ है। यहां के जितने भी बाबू साहब हैं, सबका कारोबार सूद का व्यापार करना। हालही में इस गांव के एक सूदखोर बाबू साहब कुदरहा बाजार आए हुए थें, यह हर दस मिनट हजार पांच सौ का नोट जेब से निकालते हैं, और पीने खाने के लिए देते।

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