सरकार’ भी अपनी, ‘शासन-प्रशासन’ भी अपना, ‘पीड़ित’ भी खुद ‘ही’!

सरकार’ भी अपनी, ‘शासन-प्रशासन’ भी अपना, ‘पीड़ित’ भी खुद ‘ही’!

सरकार’ भी अपनी, ‘शासन-प्रशासन’ भी अपना, ‘पीड़ित’ भी खुद ‘ही’!

बस्ती। यह सही है, कि जिले के कार्यकर्त्ता आज अपने आपको सबसे अधिक निरीह मान रहा है। उसकी न तो अधिकारी सुनते हैं, और न ही भाजपा के पदाधिकारी ही कोई खास तव्वजो देते। जिसका नतीजा आज लेखपाल से लेकर तहसीलदार और थानेदार से लेकर चौकी इंचार्ज तक कोई भाव नहीं दे रहा है, हर कोई इन्हें ऐसा अपमानित कर रहा है, जैसे यह सत्ताधारी के न होकर विपक्ष के कार्यकर्त्ता है। जिसे देखो वही कार्यकर्त्ताओं को बेईज्जत कर दे रहा है। मीडिया बार-बार यह कह रही है, कि जब भाजपा का कार्यकर्त्ता ही संतुष्ट नहीं रहेगा तो कैसे 27 फतह होगा? इन्हें सबसे अधिक अपमानित थाने और चौकी वाले कर रहे है। इनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है। प्रषासनिक अधिकारी तो केवल काम नहीं करते, लेकिन सुनते जरुर है, लेकिन पुलिस वाले काम भी नहीं करते हैं, और सुनने के बजाए अपमानित करते है। कहा भी जाता है, कि जिस जिले के पार्टी का मुखिया कमजोर होता, उस जिले के कार्यकर्त्ता सबसे अधिक कमजोर होते और सबसे अधिक इन्हीं को ही परेशानियों का सामना करना पड़ता। इसी को लेकर भाजपा नेता प्रमोद पांडेय ने मुंडेरवा के एसओ के खिलाफ मंडल अध्यक्ष और कार्यकर्त्ताओं को अपमानित करने को लेकर अधिकारियों को पत्र लिखकर उनसे कार्रवाई की मांग की, पत्र जैसे ही शुभ रात्रि से पूर्व वाले मिश्राजी ने वायरल किया, मानो भूचाल आ गया। अगर सभी के कमेंट को लिख दिया जाए तो पूरा अखबार भर जाएगा।

अखिलेश शुक्ल लिखते हैं, कि गुटबाजी का नतीजा है, जो बीजेपी के कार्यकर्त्ता और नेता लोग भरे समाज में बेइ्रज्जत हो रहें। भानु प्रकाश चौबे कहते हैं, कि हंसी भी आती है, और दुख भी होता है, कि सत्ताधारी दल के दलीय निष्ठा वाले अपने ही कार्यकर्त्ताओं की ऐसी दशा हो रही, कि एक अधिकारी चाहें वह किसी भी पद पर हो, उन्हें रत्तीभर भी तव्वजो नहीं देता। पत्रकार अनूप मिश्र लिखते हैं, कि भाजपा जिलाध्यक्ष और उनकी कोर टीम अधिकारियों के साथ सबका परिचय करवा रहे हैं, वहीं भाजपा नेता प्रमोद पांडेय थानेदारों के खिलाफ प्रशासन और सीएम को पत्र लिख रहे हैं, यानि न तो सबकुछ पहले ठीक था और न अब ठीक है, मजे की बात यह है, कि प्रमोद पांडेय और जिलाध्यक्ष दोनों पूर्व सांसद गुट के माने जाते। चंद्रभूषण बर्नवाल कहते हैं, कि भाजपा का कार्यकर्त्ता तहसील और थाने हर जगह उसका उत्पीड़न हो रहा, अगर यही स्थिति रही तो 27 तक कार्यकर्त्ता घर से नहीं निकलेगा, फिर लंबी-लंबी गाड़ियों और एसी कमरे में राजनीति चमकाते रहना। अमित कुमार शर्मा कहते हैं, कि योगीजी ही कार्यकर्त्ताओं को अपमानित करा रहें। अशोक सिंह ने लिखा कि  बीजेपी के राज में बीजेपी के नेता ही शिकार हो रहें। अखिलेश शुक्ल मंटू, लिखते हैं, कि मुंडेरवा एसएचओ बदतमीज है, इसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। आलोक कुमार कहते हैं, कि गनेशपुर चौकी इंचार्ज ने रविवार को 20 से अधिक भाजपा के कार्यकर्त्ताओं को हड़काते हुए कहा कि इतना मुकदमा लाद दूंगा कि दिमाग ठिकाने आ जाएगा, सभी पदाधिकारियों को इसकी जानकारी दी गई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अजय शुक्ल छात्रसंघ अध्यक्ष अधिकारी और प्रशासन बेलगाम हो गएं हैं, यह सरकार को बदनाम करने की बड़ी साजिश, 27 को हराने के लिए अधिकारी साजिश कर रहे।

पंडित हर्षित भटट कहते हैं, कि मुंडेरवा में कमजोर नेतृत्व की वजह से यह संब संभव, सुक्र हैं, कोई छोटा कार्यकर्त्ता नहीं हुआ नहीं तो अब तक वह हवालात में होता।

संजय ओझा कहते हैं, कि सबका पावर जीरो हो गया है, जिले के सभी अधिकारी बेलगामः महादेव विधानसभा, मिश्राजी जमीर-जमीन वाले औा कालीन वाले दोनों नेताओं के कार्यव्यवहार में बहुत अंतर नहीं। इंद्रजीत चौहान कहते हैं, कि कई सालों से राजनीति में हैं, महसूस हो रहा हैं, कि जो लोग थाना और तहसील, ब्लॉक एवं अन्य सरकारी जगहों पर दलाली कर रहे हैं, वे खुद रुपया कमा रहे हैं, और अधिकारियों को भी कमवा रहे, ऐसे लोगों को ही अफसर चाय और सम्मान देता, निष्ठावान कार्यकर्त्ता सरकार बनाकर चूतिया की तरह इधर-उधर घूम रहें, कोई सुनने वाला नहीं अधिकारी बेलगाम हैं।राहुल दूबे कहते हैं, कि जिस दिन भाजपा अपने कार्यकर्त्ताओं का ध्यान विपक्ष की तरह रखना सीख जाएगी, उस दिन बीजेपी को कोई हरा नहीं सकता, लेकिन यह संभव नहीं क्यों कि सीएम भी कह चुके हैं, कि कार्यकर्त्ता दलाल।

अजय पांडेय स्वंय लिखते हैं, कि मोदीजी और योगीजी की लहर ने दो बार नैया पार करा दी, सांसदी और विधायकी में एक बार ही हुई, क्यों कि भाई साीब लोग खुद घंमड में घूमते रहे, तो सब चला जाएगा, जिले में प्रकृमार्थी व्यवस्था पर ध्यान देने की जरुरत। अजय पांडेय कहते हैं, कि जब पूरी बस्ती भाजपा व्यक्ति के विशेष ईशारे पर हो तो यह तो होगा ही। इब भाई अपने प्रभार क्षेत्र में हो तो सुबह शाम परिक्रमा करिए, बाकी जो परिक्रमा नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें किनारे रखेगें तो नैया डूबेगा ही। रानी तिवारी कहती है, कि इस सरकार में सबसे बुरा हाल अगर किसी का है, तो वह बीजेपी कार्यकर्त्ताओं का। महेश मिश्र कहते हैं, कि कोई लूटा बस्ती को इस कदर की वह अमीर हो गया, लेकिन चाह बनी रही, अब वह अपने एजेंट लगाए है, घड़ी मुस्किल से क्यों कि सफर कम और चाह लंबी है। अजय पटेल कहते हैं, कि भैया सरकार चाहें जिसकी हो, अगर कार्यकर्त्ताओं को अनसुना किया जा रहा है, तो यह जान लीजिए कि खिचड़ी दूसरी पक रही है, मैं पूरे विष्वास के साथ कह सकता हूं कि तेरी मेरी के चक्कर में अधिकारी बेलगाम हो गए।

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