संजय चौधरी’ के ‘आगे’ बड़े से बड़ा ‘भ्रष्टाचारी’ बौना!

संजय चौधरी’ के ‘आगे’ बड़े से बड़ा ‘भ्रष्टाचारी’ बौना!

संजय चौधरी’ के ‘आगे’ बड़े से बड़ा ‘भ्रष्टाचारी’ बौना!

-लोहिया मार्केट के दुकानों के आवंटन में किया भारी गोलमाल, एक-एक दुकान आंवटन में तीन से चार लाख लिया, जिस दुकान की बोली 15 से 20 लाख लगनी चाहिए थी, उस दुकान को न्यूनतम 12 लाख की बोली से कम आठ लाख में दे दिया, ताकि तीन-चार लाख कमाया जा सके

-लाखों कमाने के लिए सरकार को करोड़ों नुकसान किया, ऐसे-ऐसे लोगों से लाखों लिया, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर आवाज उठाते रहें, दुकान की चाह ने भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी दोनों को बढ़ावा दिया, इसमें भी इन्होंने किसी को भी नहीं छोड़ा

-जो भी दुकान के लिए जाता उसे उपाध्याय नामक बाबू के पास भेज दिया जाता, पैसा खुद नहीं बल्कि बाबू से वसूलवाते, 24 दुकानों में 18 दुकानों के आंवटन में वसूली की, लगभग 60 लाख रुपया बटोरा, यह एक एैसा भ्रष्टाचार निकला जिसे करने वाला भी खुश और कराने वाला भी खुश

-पिछले लगभग पांच साल में इन्होंने जो चाहा और जैसे चाहा वही किया, इनके एजेंडें में कभी जिले का विकास करने का रहा

बस्ती। भ्रष्टाचार करने का अगर किसी को तरीका जानना हो तो वह संजय चौधरी के पास जा सकता है। यह न सिर्फ भ्रष्टाचार करने के रास्ते बताते हैं, बल्कि विरोधियों कैसे पटकनी दी जाती है, उसका दांव-पेंच भी बताते। जो व्यक्ति पूर्व सांसद जैसे महारथी को पटकनी दे सकता है, वह जाहिर सी बात कि कितना दांव-पेंच वाला व्यक्ति होगा। जिस तरह इन्होंने एक-एक करके उन लोगों को पटकनी दी जिन्होंने जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाने में मदद की, उससे बड़े-बड़े राजनीतिक भौचक्कें रह गए। लोगों को मानना पड़ा कि इनके भीतर न सिर्फ लोमड़ी जैसी चालाकी भरी हैं, बल्कि कैसे किसी को परास्त किया जाता है, वह गुण भी इनके भीतर छिपा हुआ। यह सिर्फ गिल्लम चौधरी को ही पटकनी नहीं दे पाए, कहना गलत नहीं होगा कि ब्लैकमेल करने में यह गिल्लम चौधरी से पीछे रहे। देखा जाए तो गिल्लम चौधरी ही एक मात्र नेता है, जिसे यह नहीं पटक पाए। चूंकि गिल्लम चौधरी के साथ जिला पंचायत सदस्यों का एक हूजूम रहा, और इसी का गिल्लम चौधरी ने खुद तो लाभ उठाया और सदस्यों को भी लाभ पहुंचवाया। जिस तरह गिल्लम चौधरी एंड पार्टी ने जिला पंचायत अध्यक्ष को समय-समय पर ब्लैकमेल करके लाभ लिया और लाभ दिलवाया, उससे गिल्लम चौधरी को भी संजय चौधरी से कम नहीं आकां जा रहा है। कार्यकाल के अंतिम में एक बार और ब्लैकमेल करने/ब्लैकमेल होने के लिए दोनों को आमना-सामना होना पड़ सकता है। इस अंतिम ब्लैकमेल के खेल में गिल्लम चौधरी एंड पार्टी कितना कामयाब होंती है, यह देखने वाला होगा। यह तो तय है, कि अंतिम बजट का लाभ संजय चौधरी और गिल्लम चौधरी एंड पार्टी अधिक से अधिक लेना चाहेगें। जहां अध्यक्षजी पूरा का पूरा हड़पना चाहेगें, वहीं गिल्लम चौधरी खुद और अपने सदस्यों को अधिक से अधिक लाभ दिलाना चाहेंगे। अब देखना यह होगा कि दो लोमड़ी जैसा दिमाग रखने वाले कौन सी ऐसी चाल चल सकते हैं, जिससे एक दूसरे को पटकनी दी जा सके। असली परीक्षा/लड़ाई को अभी बाकी है। कहना गलत नहीं होगा कि दोनों ने नीजि लाभ के लिए जिले के विकास को बहुत नुकसान पहुंचाया। देखा जाए तो पिछले लगभग पांच साल में संजय चौधरी के एजेंडे में कभी जिले का विकास रहा ही नहीं, इन पांच सालों में इन्होंने जो चाहा और जैसे चाहा वही किया। सांसद और विधायक देखते और हाथ मलते ही रह गए। मीडिया बार-बार पूर्व सांसद को यह एहसास कराती रही है, कि जो व्यक्ति सार्वजनिक रुप से मीडिया के सामने अमित षाह और हरीश द्विवेदी को सरेआम गाली दे चुका हो, वह व्यक्ति कैसे किसी का वफादार हो सकता? लेकिन लालची स्वभाव के चलते आंख पर बंधी बांध ली गई। आज भी लोग गलती संजय चौधरी की नहीं बल्कि पूर्व सांसद और एक वर्तमान सहित पूर्व चार विधायकों की मान रहे है। न यह लोग गरीब जानकर जिले के प्रथम नागरिक की कुर्सी पर बैठाते और न आज जिले की ऐसी हालत होती।

हम बात कर रहे थे, लोहिया मार्केट के दुकानों के आवंटन में किए गए भारी गोलमाल की। जानकर हैरानी होगी कि यह पहला ऐसा गोलमाल हुआ जो जनता के सहयोग और सहमति से हुआ। कहने का मतलब अगर जनता नहीं चाहती तो संजय चौधरी लगभग 60 लाख न कमा पाते, और न सरकार का करोड़ों नुकसान ही होता। एक-एक दुकान आंवटन में तीन से चार लाख लिया, जिस दुकान की बोली 15 से 20 लाख लगनी चाहिए थी, उस दुकान को न्यूनतम 12 लाख की बोली से कम आठ लाख में दे दिया, ताकि तीन-चार लाख कमाया जा सके। आपस में मिलकर बोली लगाया और लाखों देकर दुकान लिया। लाखों कमाने के लिए सरकार को करोड़ों नुकसान करवाया। ऐसे-ऐसे लोगों ने लाखों दिया, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर आवाज उठाते रहें, दुकान की चाह ने भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी दोनों को बढ़ावा दिया। जो भी दुकान के लिए जाता अध्यक्ष के पास जाता, उसे उपाध्याय नामक बाबू के पास भेज दिया जाता, पैसा खुद नहीं बल्कि बाबू से वसूलवाते, 24 दुकानों में 18 दुकानों के आंवटन में वसूली की गई, लगभग 60 लाख रुपया बटोरा, यह एक एैसा भ्रष्टाचार सामने आया, जिसे करने वाला भी खुष और कराने वाला भी खुश। आठ लाख बोली लगाने वाले को चार लाख, नौ लाख वाले को तीन लाख, 9.50 लाख वाले को 2.50 लाख अतिरिक्त देना पड़ा। छह दुकान पुराने दुकानदारों के लिए आरक्षित किया गया।

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