‘सभापति’ महोदय, 53 फीसदी ‘कमीशन’ देकर भी ‘सिद्धार्थनगर’ का ‘ठेकेदार’ लाभ ‘कमाता’!

‘सभापति’ महोदय, 53 फीसदी ‘कमीशन’ देकर भी ‘सिद्धार्थनगर’ का ‘ठेकेदार’ लाभ ‘कमाता’!

‘सभापति’ महोदय, 53 फीसदी ‘कमीशन’ देकर भी ‘सिद्धार्थनगर’ का ‘ठेकेदार’ लाभ ‘कमाता’!

-सिद्धार्थनगर के पीडब्लूडी के भ्रष्टाचार का मामला सदन में उठा, विधायकजी ने सउन में कहा कि सिद्धार्थनगर भ्रष्टाचार के विकास का नया कीर्तिमान रच रहा

-विधायकजी ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि सिद्धार्थनगर के पीडब्लूडी का ठेकेदार 33 फीसद बिलो टेंडर डालता, 10 फीसद विभाग को कमीशन देता, 10 फीसद स्थानीय नेता को देता, उसके बाद भी वह लाभ में रहता

-कहा कि अगर ठेकेदार 90 फीसद भी कमीषन दे दे तो तब भी वह लाभ में रहता हैं, आखिर यह कौन सी ऐसी थ्योरी हैं, जिसमें ठेकेदार को इतना कमीशन देने के बाद भी लाभ होता

-कहा कि आजादी के 77 साल बाद भी सिद्धार्थनगर में सड़कों की गुणवत्ता का मानक ही निर्धारित नहीं हुआ, एक सड़क कितने साल चलेगी यह तक नहीं तय हुआ, बस सड़क बनाओं और तिजोरी भरो वाला फारमूला अधिकारी अपना रहे हैं, ऐसा स्टीमेट बनाते हैं, कि ठेकेदार का हर हाल में फायदा हो

बस्ती। कहना गलत नहीं होगा कि पालजी के जिले सिद्धार्थनगर में सही मायने में विकास के मामले में भ्रष्टाचार का नया कीर्तिमान रच रहा है। पालजी अगर इसी को अपनी उपलब्धि मानते हैं, तो फिर बस्ती के सांसद चौधरी साहब क्यों न माने? दिषा की बैठक में जिस तरह विधायकजी ने पालजी पर हमला बोला वह गलत नहीं था। पालजी, जीतना अलग बात हैं, और ईमानदारी से काम करना और जिले को भ्रष्टाचारमुक्त बनाना दूसरी बात है। कहा भी जाता है, कि अगर कोई सांसद चाह जाए तो उसके जिले में कोई एक रुपया भी कमीषन नहीं ले सकता। लेकिन इसके लिए सांसदजी को पहले सांसद निधि को बेचना बंद करना होगा। आप भले ही अपने आप को विकास पुरुष कहते रहें, लेकिन जनता तभी विकास पुरुष मानेगी जब आप का जिला भ्रष्टाचारमुक्त होगा, और यह तभी होगा जब दलालों के लिए नो इंटी होगा। अगर सदन में कोई विधायक, सिद्धार्थनगर के बारे में यह कहे कि यह जिला  विकास के मामले में भ्रष्टाचार का नया कीर्तिमान रच रहा है, तो आप को सच्चाई स्वीकार कर लेना चाहिए। आप के बारे में लोगों का कहना और मानना हैं, कि आप ने राजनीति से जितना नाम और पैसा कमाया, वह बहुत कम राजनेताओं ने कमाया होगा। अब आप को राजनीति के अंतिम पड़ाव में अपने जिले को भ्रष्टाचारमुक्त बनाना होगा, तभी आप को लोग याद करेगें। भ्रष्टाचारियों और बदनाम ठेकेदारों के बजाए आप उन लोगों को अपना दोस्त बनाइए जो ईमानदार हो। बेईमानों का आप बहुत साथ दे चुके अब ईमानदारों का साथ दिजिए। आप के बजाए अगर जिले की जनता वर्माजी को विकास पुरुष कहे तो यह समझ लेना चाहिए कि आपके लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा है।

बहरहाल, जिस तरह सदन में विधायकजी ने सिद्धार्थनगर के पीडब्लूडी के भ्रष्टाचार का मामला उठाया, और कहा कि सिद्धार्थनगर भ्रष्टाचार के विकास का नया कीर्तिमान रच रहा हैं, वह वाकई पालजी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। विधायकजी ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि सिद्धार्थनगर के पीडब्लूडी का ठेकेदार 33 फीसद बिलो टेंडर डालता, 10 फीसद विभाग को कमीषन देता, 10 फीसद स्थानीय नेता को देता, और उसके बाद भी वह लाभ में रहता हैं, कैसे लाभ में रहता? इतना तक कहा कि अगर ठेकेदार 90 फीसद भी कमीषन दे दे तो तब भी वह लाभ में रहेगा, पूठा कि आखिर वह कौन सी ऐसी थ्योरी हैं, जिसमें ठेकेदार को इतना कमीशन देने के बाद भी लाभ होता है? कहा कि आजादी के 77 साल बाद भी सिद्धार्थनगर में सड़कों की गुणवत्ता का मानक ही निर्धारित नहीं हुआ, एक सड़क कितने साल चलेगी यह तक नहीं तय हुआ, बस सड़क बनाओं और तिजोरी भरो वाला फारमूला अधिकारी, ठेकेदार और दलाल अपना रहे हैं, ऐसा स्टीमेट बनाते हैं, कि ठेकेदार का हर हाल में फायदा हो। यह भी कहा कि कोई ठेकेदार जीरो तो कोई दो फीसद बिलो तो कोई 33 फीसद बिलो पर टेंडर डालता है। इतना बिलो इस लिए डाला जाता है, ताकि ठेका पटटी मिल सके, ठेकेदार को अच्छी तरह मालूम रहता है, कि अगर उसे कुल मिला 50 फीसद से अधिक कमीशन देना पड़े तो भी वह लाभ में रहेगा। कैसे लाभ में रहेगा इसका खुलासा विधायकजी सदन में कर चुके है। कहा भी जाता है, कि अगर अधिकारी और ठेकेदार चोर और बेईमान बन भी जाएं, तो उतना नुकसान नहीं करेगें, जितना नेताओं के बेईमान और चोर बन जाने से होगा। पहले कोई चोर और बेईमान अधिकारी और ठेकेदार नेताओं के आसपास तक नहीं भटक पाते थे, लेकिन आज तो नेता बेईमान और चोरों के साथ ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर तक करते है। अब तो नेता घर बुलाकर निधियों की बोली लगाते है। यह मंडल के लोगों का दुभार्ग्य हैं, कि उसे अधिकतर नेता चोर और बेईमान मिले। अब नेताओं को चोर और बेईमान जैसे शब्दों से गुस्सा नहीं आता। कोई कुछ भी उनके बारे में लिख दे, कह दे, वे जबाव तक नहीं देते, ऐसे नेताओं को ही जनता इंसल्टप्रूफ कहती है।

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