रविवारं‘खरीफ’ को ‘लूटने’ वाली टीम ‘रबी’ को भी ‘लूटने’ को ‘तैयार’!

रविवारं‘खरीफ’ को ‘लूटने’ वाली टीम ‘रबी’ को भी ‘लूटने’ को ‘तैयार’!

रविवारं‘खरीफ’ को ‘लूटने’ वाली टीम ‘रबी’ को भी ‘लूटने’ को ‘तैयार’!

 -है कोई जिले में ऐसा सूरमा जो किसानों को खाद की कालाबाजारियों से बचा सके, किसानों को माफी मांगने वाला नेता या फिर भ्रष्ट अधिकारियों को बढ़ावा चुप रहने वाला अधिकारी नहीं चाहिए, ऐसा नेता और अधिकारी चाहिए जो किसानों के आंसू पोछ सके

-एआर भी वही जिला कृषि अधिकारी भी वही, भ्रष्ट सचिव और बाबू भी वही, ऐसे में किसानों को कौन खाद की कालाबाजारियों से बचा पाएगा?

-खरीफ सीजन में तो प्रशासन कालाबाजारियों से किसानों को नहीं बचा पाया, क्या रबी सीजन में किसानों को निर्धारित दर पर और समय से खाद उपलब्ध करा पाएगा?

-खरीफ में तो एआर ने प्रति बोरी 35 रुपया और जिला कृषि अधिकारी ने प्रति बोरी 10 रुपया कमीशन कालाबाजारियों से लिया, क्या रबी में भी यही रेट रहेगा, या फिर घटेगा या बढ़ेगा?

-क्या प्रशासन इस बार सिर्फ समितियों के सदस्यों को ही खाद उपलब्ध कराएगा या फिर सचिवों को बेचने की खुली छूट देगा?

-क्या प्रशासन और जिला कृषि अधिकारी धन उगाही करने के लिए खरीफ की तरह रबी में भी रिटेलर्स की आईडी लाक करवाकर 32 लाख से अधिक लूट पाएगें

-जिस कृषि अधिकारी की अगुवाई में पास मशीन रिटेलर्स को तीन-चार हजार में बेचकर लगभग 63 लाख कमाया, उस अधिकारी से ईमानदारी की उम्मीद किसान करे तो कैसे और क्यों करें?

बस्ती। मीडिया और किसान बार-बार इस बात की ओर ईषारा कर रहें है, कि जब तक जिले में एआर और जिला कृषि अधिकारी रहेगें, तब तक न तो धान और न गेहूं और न खाद ही सुरक्षित रहेगा। खरीफ के सीजन में जिस तरह दोनों अधिकारियों ने कमिष्नर और डीएम के रहते खुले आम खाद में लूटपाट किया, उससे प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़ा हो रहा है, और पूछा जा रहा है, कि आखिर आप दोनों की क्या कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? अगर बनती है, तो कैसे आप दोनों के रहते किसान एक-एक बोरी यूरिया के लिए रोता रहा? आखिर आप दोनों कर क्या रहे थे? क्यों नहीं खाद की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई करवाया या फिर किया? किसानों को उतना एआर और जिला कृषि अधिकारी से गिला शिकवा नहीं, जितना आप दोनों से है। सवाल यह भी उठ रहा है, कि जब आप दोनों खाद की कालाबाजाारी पर रोक नहीं लगा सकते तो फिर आप दोनों के रहने और न रहने से किसान को क्या फायदा? इसी लिए किसान यह कहने पर मजबूर हो गया कि है कोई जिले में ऐसा सूरमा जो किसानों को खाद की कालाबाजारियों से बचा सके, कहते हैं, कि हम लोगों  को माफी मांगने वाला नेता या फिर भ्रष्ट अधिकारियों को बढ़ावा देने और चुप रहने वाला अधिकारी नहीं चाहिए, ऐसा नेता और अधिकारी चाहिए जो किसानों के आंसू पोछ सके और कालाबाजारियों के खिलाफ कार्रवाई करवा सके। सवाल उठ रहा है, कि जब एआर भी वही जिला कृषि अधिकारी भी वही, भ्रष्ट सचिव और बाबू भी वही, तो ऐसे में किसानों को कौन खाद की कालाबाजारियों से बचाएगा? प्रशासन से सवाल पूछे जा रहे हैें, कि खरीफ सीजन में तो प्रषासन कालाबाजारियों से किसानों को नहीं बचा पाया, क्या रबी सीजन में किसानों को निर्धारित दर पर और समय से खाद उपलब्ध करा पाएगा? खरीफ में तो एआर ने प्रति बोरी 35 रुपया और जिला कृषि अधिकारी ने प्रति बोरी 10 रुपया कमीशन कालाबाजारियों से लिया, क्या रबी में भी यही रेट रहेगा, या फिर घटेगा या बढ़ेगा? क्या प्रषासन इस बार सिर्फ समितियों के सदस्यों को ही खाद उपलब्ध कराएगा या फिर सचिवों को बेचने की खुली छूट देगा? क्या जिला कृषि अधिकारी धन उगाही करने के लिए खरीफ की तरह रबी में भी रिटेलर्स की आईडी लाक करवाकर 32 लाख से अधिक लूट पाएगें? जिस कृषि अधिकारी की अगुवाई में पास मशीन रिटेलर्स को तीन-चार हजार में बेचकर लगभग 63 लाख कमाया, उस अधिकारी से ईमानदारी की उम्मीद किसान करे तो कैसे और क्यों करें? जिस 18 हजार की मशीन को सरकार ने निषुल्क दिया, उसे जिला कृषि अधिकारी की देखरेख में बेचा गया। कहने का मतलब जिला कृषि अधिकारी और एआर ने जिस तरह बाबूओं और सचिवों से धन उगाही करवाया, उसे देख नहीं कहा जा सकता कि किसानों और रिेटेलर्स का उत्पीड़न और शोषण नहीं हो पाएगा। अगर खरीफ में ही दोषी अधिकारियों और सचिवों के खिलॉफ कार्रवाई हो गई होती तो शायद रबी में कुछ सुधार देखने को मिलता। आप लोगों को जानकार हैरानी होगी कि कार्रवाई से बचने और कालेकारनामों पर पर्दा डालने के लिए हर तीन में जेडीए को जिला कृषि अधिकारी कार्यालय की ओर से 80 हजार और उप निदेशक कृषि को 50 हजार का कमीशन जाता है। यही कारण है, कि किसान चिल्लाता रहता फिर भी अधिकारी कार्रवाई नहीं करते। अब देखना है, कि क्या खरीफ की तरह रबी में भी भाजपा के एक मात्र विधायक अजय सिंह किसानों से माफी मांगेंगे? प्रशासन की सबसे अधिक नजर यूरिया पंप होने वाले यूरिया की कालाबाजारी को रोकने पर रहनी चाहिए। कहा भी जाता है, जब तक उर्वरक आवंटन के सचिव की हैसियत से जिला कृषि अधिकारी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से नहीं निभाएगें, तब तक कालाबाजारी नहीे रुक सकती।

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