मत करना गिल्लम चौधरी एंड कंपनी पर भरोसा

मत करना गिल्लम चौधरी एंड कंपनी पर भरोसा

मत करना गिल्लम चौधरी एंड कंपनी पर भरोसा

-संजय चौधरी पर एक बार तो भरोसा कर लेना, लेकिन गिल्लम चौधरी और उनकी टीम पर एक फीसद भी विष्वास मत करना, नहीं तो धोखा मिलेगा और आई हुई लक्ष्मी से भी हाथ धोना पड़ेगा

-गिल्लम चौधरी एंड कंपनी पर भरोसा करके अधिकांश जिला पंचायत सदस्य अफसोस कर रहें, जल्द ही इनका गुस्सा गिल्लम चौधरी एंड कंपनी पर फूटने वाला, ऐसी खिचड़ी अंदर-अंदर पक रही

-75 लाख का काम या 15 लाख नकद दिलाने का झंासा देकर जिला पंचायत सदस्यों से नोटरी षपथ-पत्र पर हस्ताक्षर कराने वाले अब 25 लाख काम या पांच लाख नकद लेने की बातें कह रहें

-अनेक सदस्यों का कहना है, कि अगर वह लोग संजय चौधरी का साथ देते तो अच्छा होता, कम से कम काम और नकद तो मिलता, भले ही चाहें पांच लाख ही मिलता लेकिन मिलता जरुर

-गिल्लम चौधरी के कहने पर संजय चौधरी के खिलाफ खड़े होने वाले अधिकांश सदस्यों को पछतावा हो रहा, लगता है, कि यह लोग धीरे-धीरे अध्यक्ष के आवास के दरवाजे की घंटी बजाने वालें

-बीच-बचाव और समझौता कराने वाले मंत्री को न तो एक करोड़ मिला और न सदस्यों को ही 15-15 लाख मिला, बदनामी अलग से हुई

बस्ती। जिस जिला पंचायत की बुनियाद ही धोखे और फरेब पर टिकी हो, उस जिला पंचायत के अध्यक्ष संजय चौधरी और गिल्लम चौधरी जैसे लोगों से कैसे वफा की उम्मीद की जा सकती है? कोई बड़ा तो कोई छोटा धोखेबाज है, लेकिन हैं दोनों धोखेबाज, यह बात हम नहीं बल्कि अनेक जिला पंचायत सदस्य सड़क पर चिल्ला-चिल्लाकर कह रहें है। सवाल उठ रहा है, कि जब दोनों धोखेबाज की श्रेणी में आते हैं, तो फिर सदस्य क्यों दोनों पर विष्वास कर लेतंे है। जिसने विष्वास नहीं किया उसने मलाई काटा और जिसने किया उसे लालीपाप मिला। इसी लिए दोनों को एक से बढ़कर एक धोखेबाज माना जा रहा है। कहा भी जा रहा है, कि जो व्यक्ति अपने लाभ के लिए जिला पंचायत सदस्यों को धोखा दे सकता है, वह व्यक्ति कुछ भी कर सकता, अच्छा हुआ ऐसे व्यक्ति के सिर पर ताज नहीं सजा। गलती दोनों धोखेबाजों की उतनी नहीं मानी जा रही है, जितनी जिला पंचायत सदस्यों की। अगर यह लोग काम और पैसे के लालच में पाला बदलने वाली राजनीति नहीं करते लाभ में रहते। इन चार सालों में देखा जाए तो सबसे अधिक नुकसान जिला पंचायत सदस्यों का ही हुआ। अगर यह लोग पेंडुलम की तरह न झूलते तो इन्हें कम से कम धोखा तो नहीं मिलता, इनकी इसी कमजोरी का फायदा दोनों ने खूब उठाया। दोनों के धोखेबाजी से त्रस्त एक जिला पंचायत सदस्य ने यहां तक कहा कि अगर जनता ने उन्हें दुबारा सदन में जाने का मौका दिया तो दिखा देगें कि एक जिला पंचायत सदस्य की कितनी कीमत होती है। खुले मन से स्वीकार करते हैं, और कहते हैं, कि हम लोगों को गिल्लम चौधरी के झांसे में नहीं आना चाहिए था। यह भी कहा कि कुछ ही दिनों में जिले के लोगों को यह सुनने को मिलेगा और दिखाई देगा कि धोखा देने का क्या अंजाम हो सकता? अगर हम लोग किसी का साथ दे सकते तो साथ छोड़ भी सकते है। लेकिन साथ छोड़ने से पहले मीडिया के सामने धोखेबाजों की पोल अवष्य खोलेगें।

कहा जा रहा है, कि संजय चौधरी पर एक बार तो भरोसा किया जा सकता हैं, लेकिन गिल्लम चौधरी और उनकी टीम पर एक फीसद भी विष्वास नहीं किया जा सकता। नहीं तो धोखा मिलेगा और आई हुई लक्ष्मी से भी हाथ धोना पड़ेगा। इस बात को सदस्यों को ध्यान में रखना पड़ेगा। गिल्लम चौधरी एंड कंपनी पर भरोसा करके अधिकांष जिला पंचायत सदस्य अफसोस कर रहें, जल्द ही इनका गुस्सा गिल्लम चौधरी एंड कंपनी पर फूटने वाला, ऐसी खिचड़ी अंदर-अंदर पक रही। 75 लाख का काम या 15 लाख नकद दिलाने का झंासा देकर जिला पंचायत सदस्यों से नोटरी शपथ-पत्र पर हस्ताक्षर कराने वाले अब 25 लाख काम या पांच लाख नकद लेने की बातें कह रहें, अनेक सदस्यों का कहना है, कि अगर वह लोग संजय चौधरी का साथ देते तो अच्छा होता, कम से कम काम और नकद तो मिलता, भले ही चाहें पांच लाख ही मिलता लेकिन मिलता जरुर। यह भी कहते हैं, कि संजय चौधरी भी किसी से कम नहीं हैं, धोखा देने में यह भी खूब माहिर है। गिल्लम चौधरी के कहने पर संजय चौधरी के खिलाफ खड़े होने वाले अधिकांष सदस्यों को अब पछतावा हो रहा, लगता है, कि यह लोग जल्द ही अध्यक्ष के आवास के दरवाजे की घंटी बजाने वालें है। बीच-बचाव और समझौता कराने वाले मंत्री को न तो एक करोड़ मिला और न सदस्यों को ही 15-15 लाख मिला, बदनामी अलग से हुई। अब गिल्लम चौधरी एंड कंपनी के लोग बैठक को जीरो करने की बातें नहीं कर रहे हैं, और न बैठक कराने पर ही जोर दे रहंे है। मीडिया बार-बार सदस्यों को यह बताने का प्रयास कर रही है, कि जो लोग 75-75 लाख का काम या 15-15 लाख नकद दिलवाने की बातें कह रहे हैं, वे लोग झूठ बोल रहे है। 50 करोड़ का टेंडर निकलने के बारे में भी झूठ बोल रहे। जब जिले को कुल 27 करोड़ का बजट ही मिलना है, जिसमें 12 करोड़ जीएसटी, एएमए, अध्यक्ष और भुगताने के कमीशन में चला जाएगा, ऐसे में 15 करोड़ में से कैसे 43 जिला पंचायत सदस्यों को 75-75 लाख का काम मिलेगा, इसके लिए 32 करोड़ से अधिक का बजट चाहिए। अगर सदस्यों को 25-25 लाख काम या पांच-पांच लाख नकद भी मिल जाए तो बड़ी बात है। अकलमंदी यही है, कि बागी सदस्यों को गिल्लम चौधरी एंड कंपनी का साथ छोड़कर संजय चौधरी के खेमे में चला जाना चाहिए, इसी में ही सदस्यों की भलाई छिपी है। सदस्यों के सामने अब गिल्लम चौधरी एंड कंपनी का सच उजागर हो चुका है।

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