माननीयों’ की ‘नजर’ में प्रभारी ‘मंत्री’ की वैल्यू ‘जीरो’!
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 26 September, 2025 19:30
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‘माननीयों’ की ‘नजर’ में प्रभारी ‘मंत्री’ की वैल्यू ‘जीरो’!
-जिले के एक भी माननीय, मंत्रीजी को इस लायक नहीं समझते कि उनकी बैठक में भाग लें सके, न्यौता देने के बाद भी माननीयगण इन्हें सम्मान देने नहीं आए
-प्रभारी मंत्री के बैठकों में भाग लेना जिले के माननीयण अपना अपमान समझते, और अपने स्थान पर नकली प्रतिनिधि को भेज देते, जो न जनहित का मुद्वा उठाते और न दमदारी से सवाल ही कर पाते
-अपने आपको अपमानित महसूस करते हुए प्रभारी मंत्री ने कह भी दिया कि अगली बार में वह किसी भी प्रतिनिधि को भाग लेने की अनुमति नहीं देगें
-प्रभारी मंत्री को यह निर्णय बहुत पहले ले लेना चाहिए था, ताकि कम से कम माननीयगण तो बैठक में भाग लेने आते
-ऐसा लगता है, कि मानो अगली बैठक में प्रतिनिधि के रुप में सिर्फ हरीश सिंह ही नजर आएगें, अगर कहीं माननीय भी नहीं आए तो प्रभारी मंत्री का इससे बड़ा अपमान और नहीं होगा
बस्ती। आशीष पटेल, जिले के पहले ऐसे प्रभारी मंत्री हैं, जिनकी बैठकों में भाग लेना जिले के माननीयगण अपनी तौहीन समझते। बेचारे प्रभारी मंत्री बैठक में भाग लेने के लिए सांसद और विधायकों को न्योता भेजते रहते हैं, लेकिन न्यौता कोई कबूल ही नहीं करता। विपक्ष के सांसद और चार विधायकों को तो छोडिए, सत्ता पक्ष के एक मात्र विधायक भी बैठक में भाग लेना अपनी शान के खिलाफ समझते है। ऐसा लगता है, मानो इन लोगों की नजर में प्रभारी मंत्री की अहमियत जीरो के बराबर हो, तभी तो यह लोग अपने नकली प्रतिनिधियों को बैठक में भाग लेने के लिए भेज देतें, इससे बड़ा अपमान किसी प्रभारी मंत्री का और नहीं हो सकता। इसी सबको देखते हुए प्रभारी मंत्री ने निर्णय लिया है, कि अब वह किसी भी कथित प्रतिनिधि को बैठक में भाग लेने की अनुमति नहीं देंगें। एक तरह से निर्णय सुनाकर प्रभारी मंत्री ने माननीयों पर नहला पर दहला दागा। यानि अगली बैठक में प्रतिनिधि के रुप में सिर्फ और सिर्फ एमएलसी प्रतिनिधि हरीश सिंह ही नजर देगें, तब इनपर सवालों का बहुत दबाव रहेगा, यह पहली बार ऐसा होगा जब असली जनप्रतिनिधि के नकली प्रतिनिधि बैठक में नहीं दिखाई देगें। प्रभारी मंत्री को यह निर्णय बहुत पहले लेना चाहिए था, ताकि कम से कम माननीय तो आते। प्रभारी मंत्री को डीएम को यह भी निर्देश देना चाहिए था, कि किसी भी सरकारी बैठक में राज्यसभा सदस्य और एमएलसी के प्रतिनिधि को छोड़कर अन्य को भाग न लेने दिया जाए, हालांकि मुख्यमंत्री की ओर से इस तरह का आदेश जारी भी हो चुका है, लेकिन अधिकारी इसका पालन नहीं कर रहे है। जब यह स्पष्ट हैं कि कोई भी सांसद और विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, प्रमुख, नगर पालिका अध्यक्ष एवं नगर पंचायत के चेयरमैन किसी को अपना प्रतिनिधि नियुक्ति नहीं कर सकते तो फिर क्यों यह लोग प्रतिनिधि नियुक्ति करते हैं? इसी लिए मीडिया ऐसे को नकली प्रतिनिधि का नाम देती है। नेताओं ने ऐसे-ऐसे को नकली प्रतिनिधि बना दिया, जो ठीक से एक पत्र भी नहीं लिख सकते, बोलना और सवाल उठाना तो बहुत दूर की बात है। अब तो प्रधान प्रतिनिधि और बीडीसी प्रतिनिधि तक बनाए जाने लगें। कहा जाता है, कि जिस दिन कमिष्नर, डीआईजी, डीएम, सीडीओ और एसपी सहित अन्य अधिकारियों ने ऐसे नकली लोगों को सम्मान देना बंद कर दिया, उस दिन अधिकारी अपने आप को कि तनावमुक्त और रिलैक्स महसूस करेगें। क्यों कि यही लोग सबसे अधिक अधिकारियों पर नैतिक और अनैतिक कार्य के लिए दबाव बनाते है। पूर्व डीएम रामेंद्र त्रिपाठीजी ने अपने सभी अधिकारियों को यह निर्देश दे रखा था, कि आप लोग निडर और तनावमुक्त होकर अपना काम ईमानदारी से करें, अगर कोई नेता या फिर कोई नकली प्रतिनिधि किसी अनैतिक कार्य के लिए दबाव बनाते हैं, तो सीधे मेरा नाम लेकर उनसे कह दीजिए कि डीएम साहब से बात कर लीजिए। लेकिन आज का अधिकारी इतना डरपोक और भ्रष्ट हो गया है, कि वह जिला पंचायत अध्यक्ष के नकली प्रतिनिधि के पहुंचने पर खड़ा होकर वेलकम करता है। जिस तरह रामेंद्र त्रिपाठीजी अपने अधिकारियों के लिए पेन लिया वैसा पेन उसके बाद के डीएम ने नहीं लिया। अब तो हालत यह है, कि अगर कोई पूर्व भी चला गया तो उसे वीआईपी टीट दिया जाता, रेस्टरुम में ले जाया जाता, साथ में उनके कई चमचे भी चले जाते। जाहिर सी बात है, जब इस तरह किसी को मान और सम्मान मिलेगा तो उसका मनोबल बढ़ेगा ही।
बहरहाल, अगर प्रभारी मंत्री अपने निर्णय पर अडिग रहे तो होने वाले बैठक में एक भी नकली प्रतिनिधि दिखाई नहीं देगें। मीडिया बार-बार सवाल करती है, कि जब जनप्रतिनिधियों को प्रतिनिधि बनाने का अधिकार ही नहीं हैं, तो क्यों और किस अधिकार के साथ नकली प्रतिनिधि बनाते। मीडिया की ओर से यह भी बार-बार कहा जा रहा है, जिसे नकली प्रतिनिधि बनाया जाता है, वह इतना कमजोर और भ्रष्ट होता है, कि उसके कहने पर उसके घर वाले भी वोट नहीं देते। इन लोगों की हेैसियत 10-20 वोट भी दिलाने की नहीं रहती। जीताना तो बहुत दूर की बात, जो वोट मिलना भी रहेगा, वह भी इनके चलते नेताजी को नहीं मिलेगा। यह खुद तो अपनी हैसियत बना लेते हैं, लेकिन नेताजी की नैया को अवष्य डुबो देते है। ऐसे लोगों से जिला भरा पटा है। सवाल यह भी उठ रहा है, कि जब प्रभारी मंत्री के विकास कार्यो की समीक्षा बैठक में माननीयगण नहीं जाएगें तो उन्हें विकास का कैसे पता चलेगा? जब यह जनता की आवाज ही नहीं उठाएगें तो जनहित के कार्य कैसे होगें? कैसे प्रभारी मंत्री को पता चलेगा कि उनके जिले में क्या हो रहा है, और क्या नहीं हो रहा? अगर माननीयगण को बैठक में भाग लेने की फुसर्त नहीं तो इस्तीफा देकर एसी कमरे में आराम से और जितना भी सोना चाहें सोइए कोई कुछ नहीं कहेगा। लेकिन जब तक आप जनप्रतिनिधि है, तो अपनी जिम्मेदारी को भी निभाना पड़ेगा।

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