लडडू’ खा ‘लेना’, ‘खोआ’ की ‘मिठाई’ मत ‘खाना’
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 17 October, 2025 19:17
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लडडू’ खा ‘लेना’, ‘खोआ’ की ‘मिठाई’ मत ‘खाना’
-शहर से लेकर देहात तक हो रहा नकली खोआ का इस्तेमाल, कानपुर से खेप का खेप आ रहा, बसों और नीजि वाहनों से बोरों में लदकर आ रहा नकली खोआ
-डेयरी वाले की लागत एक किलो खोए पर 600 रुपया आती, वहीं कानपुर का खोआ 200 से 250 किलों में खुले आम खोआ मंडी में बिक रहा
-नकली खोआ दो दिन में ही फफूदी लगने लगती, और असली खोआ दस दिन तक खराब नहीं होता, नकली को असली खोआ बनाने के लिए उसे लाल में रंग देते,
-अगर नकली खोआ की मिठाई चार दिन बाद खाएगें तो अस्पताल जाना पड़ेगा, आप की किडनी और लीवर खराब हो सकती, फूड प्वाइजनिगं का शिकार होना पड़ेगा
-हर साल दिपावली के अवसर पर जिले में लगभग एक हजार क्ंिवटल नकली खोआ खेप कानपुर से आता, एक किलो नकली खोआ में बिक्रेता को 100 से 150 रुपया तक का लाभ होता
-फूड विभाग वाले खाना पूर्ति के लिए उन मिठाई की दुकानों पर छापा मारते, जिनकी खपत चार से पांच किलो, उन बड़ी दुकानों पर नहीं जाते, जिनकी डेली की खपत 100 से 150 किलो
-होली और दिपावली में मिठाई और विभाग वाले करोड़ों सिर्फ नकली खोआ के इस्तेमाल से कमा लेते, नकली खोआ के कारोबार पर लगाम लगाने में विभाग पूरी तरह विफल, एक तरह से विभाग ने जिले के लाखों लोगों को पैसे के लालच में गंभीर बीमारी की ओर ढ़केल दिया
बस्ती। अगर आप लोगों को जिले में खाद्य सुरक्षा विभाग के लोग कहीं दिखाई देते हैं, या फिर इनकी गतिविधियां कहीं दिखाई देती है, तो अवष्य बताइएगा, जिले की लाखों जनता और मीडिया इन्हें नकली खोआ की मिठाई खिलाकर अस्पताल पहुंचाने और लीवर किडनी खराब करने के लिए सम्मानित करना चाहती है। षहर से लेकर देहात तक, छोटी दुकान से लेकर बड़ी दुकान तक में नकली खोआ का इस्तेमाल हो रहा। कानपुर से खेप का खेप आ रहा, बसों और नीजि वाहनों से बोरों में लदकर आ रहा, नकली खोआ की बोरी गिर रही, लेकिन विभाग वाले सोए हुए हैं, नकली खोआ का कारोबार करने वाले अच्छी तरह जानते हैं, कि विभाग के लोगों को सुबह जागने की आदत नहीं हैं, अगर आदत होती तो पता नहीं कितना क्ंिवटल खोआ अब तक रोडवेज से बरामद हो गया होता। यह इस लिए देर तक सोते हैं, क्यों कि इन्हें देर तक सोने के लिए मोटा लिफाफा जो दिया जाता है। हर जिले में बड़ी मात्रा में नकली खोआ और नकली घी बरामद हो रही है, लेकिन बस्ती में अभी तक कोई छोटा सा खेप भी बरामद नहीं हुआ। विभाग वाले खाना पूर्ति करने के लिए उन मिठाई की दुकानों पर छापा मारने चले जाते हैं, जिनकी डेली की खपत चार से पांच किलो की है, उन बड़ी दुकानों पर नहीं जाते हैं, जहां पर डेली की खपत कई क्ंिवटल में हैं। कहना गलत नहीं होगा कि विभाग वालों ने जिले के लाखों लोगों को गंभीर बीमारी के दरवाजे पर लाकर पटक दिया है। विभाग के लालची स्वाभाव के चलते न जाने कितने लोगों की किडनी और लीवर नकली खोआ की मिठाई खाने से खराब हो चुकी है। देखा जाए तो इस विभाग के लोगों की परीक्षा खासतौर पर होली और दिपावली के दिनों में होती, इसमें भी यह फेल नजर आते है। कार्रवाई और इनकी गतिविधियों के मामले में जिले की जनता इस विभाग के लोगों को जीरो नंबर देना चाहेगी।
अब जरा अंदाजा लगाइए कि जिस एक किलो खोआ बनाने में डेयरी वालों की कुल लागत 600 से अधिक पड़ती है, यानि असली खोआ अगर बेचा जाए तो 600 से कम में नहीं बिकेगा। लेकिन जरा खोआ मंडी में जाकर देखिए, जिस खोआ को डेयरी वाले 600 किलों में नहीं बेच पाते, उस खोआ को मंडी वाले 200 से लेकर 250 किलो में बेच रहे है। खोआ के नाम पर यह लोग जहर बेच रहे हैं, और विभाग वाले खामोश है। नकली को असली का रंग देने के लिए खोआ को लाल रंग में रंग दिया जाता, ताकि असली लाल जैसा लगे। नकली खोआ की अगर पहचान करनी हो तो उसे दो दिन बाहर रख दीजिए, देखिएगा, तीसरे दिन फफूदी लगने लगती है, और जो डेयरी वालांे का खोआ 600 रुपया में मिलता है, वह दस दिन तक खराब नहीं होता। विषेषज्ञों का दावा है, कि अगर कोई नकली खोआ की मिठाई खाता है, तो इसका प्रभाव उसकी किडनी और लीवर पर पड़ता दोनों के खराब होने की संभावना बनी रहती है। फूड प्वाइजनिगं होने का सबसे अधिक खतरा नकली खोआ से ही होता है। हर साल दिपावली के अवसर पर जिले में लगभग दस हजार क्ंिवटल नकली खोआ का खेप कानपुर से आता। फूड विभाग वाले खाना पूर्ति के लिए उन मिठाई की दुकानों पर छापा मारते, जिनकी खपत चार से पांच किलो, उन बड़ी दुकानों पर नहीं जाते, जिनकी डेली की खपत 100 से 150 किलो। इसी लिए कहा जा रहा है, कि चाहें जितना लडडू खा लीजिए, मगर नकली खोआ की एक मिठाई भी मत खाईए।

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