ले लो भाई, ले लो, 11 हजार में पैड ले लो, इससे सस्ता नहीं मिलेगा!

ले लो भाई, ले लो, 11 हजार में पैड ले लो, इससे सस्ता नहीं मिलेगा!

ले लो भाई, ले लो, 11 हजार में पैड ले लो, इससे सस्ता नहीं मिलेगा!

-सबकुछ तो बेच रहे सांसद-विधायक और उनके कथित प्रतिनिधि, अब कुछ बेचने को नहीं बचा, एक पैड बचा था, उसे भी बेच रहें

-जब जनप्रतिििध सोते रहेगें तो कथित प्रतिनिधि पैड बेचेंगे ही, कथित प्रतिनिधि माननीयों की आंख में धूल झोंकर उनके करीब किसी को आने नहीं दे रहें

-इन कथित प्रतिनिधियों को कपड़ा बदलने में तो देर लग सकता लेकिन निष्ठा बदलने में जरा भी देर नहीं लगता

-जिले के माननीय चाहें जिस भी दल के हों, उन्हें दिखावे के निष्ठा वाले कथित प्रतिनिधि

पसंद, भरोसा भी इन्हीं पर करतें

-हर मौसम में ऐसे कथित प्रतिनिधि तलाश में रहते हैं, खासतौर पर जब माननीय संकट में रहतें, तब इनकी मौज रहती

बस्ती। जब माननीय निधि बेच सकते हैं, योजना बेच सकते हैं, तो अगर उनके कथित प्रतिनिधि ने नेताजी का पैड बेच दिया तो कौन सा गुनाह कर दिया, आखिर इन्हें भी तो अपने परिवार का भरण-पोषण करना होता है। नेताजी की तरह इन्हें न तो करोड़ों की निधि मिलती है, और न भारी भरकम वेतन और न भत्ता मिलता, आखिर कब तक यह अपने बाल-बच्चों को भूखा रखकर जनता और नेताजी की सेवा करते रहेगें। अभी तक आप लोगों ने माननीयों को विकास के नाम पर आए धन को बेचते सुना होगा, सड़कों के निर्माण में 15 फीसद बखरा लेते सुना होगा, सरकारी योजनाओं को बेचते सुना होगा, लेकिन यह नहीं सुना होगा कि माननीयों का पैड भी बिकता है। भले ही नेताजी स्वंय पैड को नहीं बेच रहे हैं, लेकिन उनके कथित प्रतिनिधि अवष्य बेच रहे है। ऐसा ही एक पत्र खूब वायरल हो रहा है, जिसमें नेताजी के कथित प्रतिनिधि के 11 हजार में पैड बेचने की बात कही गई हैं। पत्र में यह भी लिखा कि उन्होंने इसकी शिकायत दो माह पहले नेताजी को उनके लखनउ और बस्ती आवास पर पंजीकृत डाक से भेजा था, लेकिन नेताजी ने आज तक कोई कार्रवाई अपने कथित प्रतिनिधि के खिलाफ नहीं किया गया, ऐसा लगता है, कि मानो जो कार्य कथित प्रतिनिधि कर रहे हैं, वह सब नेताजी के संज्ञान में है। चार-पांच दिन पहले 27-27 लाख में सांसद और विधायक का पैड बिकने का खुलासा हो चुका है। भलें ही चाहें इसमें नेताजी को कुछ न मिला हो, लेकिन उनके कथित प्रतिनिधियों को अवष्य बाल-बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए मिला होगा। डीपीआरओ के हाथों नोै अन्त्येष्ठि स्थल 27-27 लाख में पांच-पांच बखरा लेकर बेचने की बाते सामने आ चुकी है। यानि नेताजी के नौ पैड बेचे गए। अगर नेताजी इसकी जांच करा ले तो उन्हें पता चल जाएगा कि उन्होंने बेचा या फिर उनके कथित प्रतिनिधि ने प्रधानों के हाथों में बेचा।

कहा भी जा रहा है, कि सांसद-विधायक और उनके कथित प्रतिनिधि, जब सब कुछ बेच रहे हैं, तो अब बेचने को और कुछ नहीं बचा, एक पैड बचा था, उसे भी बेच रहें, जब जनप्रतिनिधि सोते रहेगें तो कथित प्रतिनिधि पैड बेचेंगे ही, कथित प्रतिनिधि माननीयों की आंख में धूल झोंकर उनके करीब किसी को आने नहीं दे रहें, इन कथित प्रतिनिधियों को कपड़ा बदलने में उतना देर नहीं लगता जितना निष्ठा बदलने में। जिले के माननीय चाहें जिस भी दल के हों, उन्हें दिखावे के निष्ठा वाले कथित प्रतिनिधि अधिक पसंद और भरोसामंद होते है। जो कथित प्रतिनिधि नेताजी को जितना अधिक कमवाता है, वह उतना ही अधिक निष्ठावान और भरोसेमंद होता। नेताओं की नजर में वह व्यक्ति या फिर कथित प्रतिनिधि नकारा होता है, जो कमवाकर नहीं देता। जाहिर सी बात है, जो कथित प्रतिनिधि नेताजी को करोड़ों कमवाएगा तो अपनी जेब में भी लाखों रखना चाहेंगा। कहने का मतलब नेताओं को ईमानदार कथित प्रतिनिधि नहीं चाहिए, इन्हें तो सबसे अधिक बेईमान कथित प्रतिनिधि चाहिए। हर मौसम में कथित प्रतिनिधि तलाष में रहते हैं, खासतौर पर जब उनका नेता संकट में रहतें, तब इनकी मौज रहती। सबसे अधिक पैड उन ठेकेदारों को बेचा जाता है, जो नेताजी के पैड पर करोड़ों रुपये की योजनाएं लाते है। हालांकि योजना लाने के लिए ठेकेदारों को धन भी खर्चा करना पड़ता है। पैड का दुरुपयोग/उपयोग सड़कों की स्वीकृति कराने में अधिक होता है। नेताजी का पैड एक तरह से कथित प्रतिनिधियों के कब्जे में रहता है। षिकायत में भी नेताजी के पेैड का दुरुपयोग/उपयोग होता हैं, नेताजी को पता ही नहीं चलता कि उनके पैड पर किस अधिकारी की षिकायत कर दी गई, उन्हें तो तब पता चलता है, जब वह अधिकारी नेताजी के पास शिकायत को वापस लेने के लिए हाथ पैर जोड़ने जाता है।

कहा भी जाता है, कि धरा बेच देगें, गगन बेच देंगे, अगर माननीय सो गए तो उनके कथित प्रतिनिधि पैड बेच देगें। कथित प्रतिनिधियों का एक काकस है, जो सर्वत्र पाए जाते है। ऐसे की निष्ठा बदलने में जरा भी समय नहीं लगता। माननीयगण भले ही पैड नहीं बेच रहे हैं, लेकिन सच तो यही है, कि उनका पैड रददी कागज के भाव में बिक रहा हैं। सरकार का यह पैड और पैड बेचने वाले माननीयों के कथित प्रतिनिधि इस स्तर पर आ जाएगें किसी ने सोचा भी नहीं था। पैड बेचने वाले को और कोई नहीं बल्कि नेताजी ही बढ़ावा दे रहे हैं, अगर शिकायतकर्त्ता के पत्र को संज्ञान में लेकर नेताजी ने अपने कथित प्रतिनिधि के खिलाफ कार्रवाई दी होती तो आज पत्र वायरल न होता और न कथित प्रतिनिधि और नेताजी की इतनी बदनामी न होती। पैड बेचने वाले कथित प्रतिनिधियों और उनके नेताओं से जनता क्या उम्मीद करे, यह सवाल बना हुआ है। नेताओं को षायद इस बात का एहसास नही होगा कि पैड बेचने के मामले में जनता उनके बारे में क्या राय रख रही है। कहती है, कि जिसका कथित प्रतिनिधि पैड बेच सकता है, वह कुछ भी कर सकता। मीडिया, नेताजी को सलाह दे रही है, कि ऐसे कथित प्रतिनिधियों से सावधान रहिए, जो आप का पैड 27 लाख और 11 हजार में बेच रहे हैं, नुकसान तो चुनाव में आपका ही होगा, रही बात कथित प्रतिनिधि की तो आज वह आप के साथ है, कल को दूसरे के साथ में हो जाएगें। निकाल बाहर करिए ऐसे लोगों को जो पैड बेचने का कारोबार कर रहे हैं।

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