खाद वितरण और आंवटन में अक्षम साबित हुए डीओ

खाद वितरण और आंवटन में अक्षम साबित हुए डीओ

खाद वितरण और आंवटन में अक्षम साबित हुए डीओ

-एक बोरी यूरिया पाने के लिए एक किसान सुबह से ही लाइन में लगा रहा, जब उसे नहीं मिला तो चह रोने लगा और कहा कि अब दुबारा कभी भी भाजपा को वोट नहीं दूंगा

-जिला कृषि अधिकारी देखते रह गए और एआर कोआपरेटिव ने उनके अधिकारों का हनन कर लिया

-जिस खाद के आवंटन की पत्रावली जिला कृषि कृषि अधिकारी को डीएम के पास ले जानी चाहिए, उसे एआर ले जा रहे, जिला उर्वरक समन्वय समिति के संयोजक के रुप में डीओ पूरी तरह फेल रहे

-मलाई काटा एआर और उनके समितियों के सचिवों ने और बदनामी और अक्षम होने का दंश जिला कृषि को झेलना पड़ रहा

-एक तरफ जिला कृषि अधिकारी अपने रिटेलर्स को खाद उपलब्ध नहीं करा पा रहें, और दूसरी ओर एआर समितियों पर आवष्यकता से अधिक यूरिया उपलब्ध कराने में सफल रहे, ऐसे में कौन पास और कौन फेल हुआ?

-जिला कृषि अधिकारी की अक्षमता के कारण रबी सीजन से पहले बड़ी संख्या रिटेलर्स लाइसेंस को सरेंडर कर सकते

-जाति देख कर छापेमारी और जांच की जाती, मौर्या वाले रिटेलर्स के यहां न तो जांच करने कोई जाता, और न कार्रवाई ही की जाती, जिले में लगभग 300 मौर्या खाद बीज भंडार को मनमानी करने का लाइसेंस मिला हुआ

-जिले में खपत से अधिक 10 हजार एमटी यूरिया का वितरण हो गया, लेकिन किसान एक-एक बोरी के लिए लाइन में धक्के खा रहा, आखिर यूरिया गया तो कहां गया, कौन बताएगा

बस्ती। परसरामपुर समिति में एक बोरी यूरिया पाने के लिए एक किसान सुबह से ही लाइन में लगा रहा, जब उसे नहीं मिला तो वह रोने लगा और कहा कि अब दुबारा कभी भी भाजपा को वोट नहीं दूंगा। इस समिति का सचिव श्यामनारायण वर्मा को खाद की कालाबाजारी का मास्टरमाइंड बताया जाता है। बताते हैं, कि इसके ईशारे में एआर और डीआर तक नाचते है। अगर किसी किसान को एक बारी यूरिया के लिए रोना पड़े तो समझ लीजिए कि भाजपा की उल्टी गिनती शुरु हो गई। जिले का किसान और रिटेलर्स वर्तमान जिला कृषि अधिकारी को अब तक का सबसे कमजोर और असफल अधिकारी मान रहें हैं, कहते हैं, कि जो कृषि अधिकारी किसानों को समय से और निर्धारित मूल्य एवं गुणवत्तापरक खाद न उपलब्ध करा सके, उसे असफल अधिकारी ही माना और कहा जाएगा। इसी तरह विभाग के खाद के रिटलर्स कहते हैं, कि अगर हमारा अधिकारी अपने लाइसेंसधारक को ही खाद न उपलब्ध करा सके और एआर कोआपरेटिव अपने समितियों को भरपूर उपलब्ध करा रहे हैं, तो इसे जिला कृषि अधिकारी की असफलता ही मानी जाएगी। कहतें हैं, कि जिला कृषि अधिकारी देखते रह गए और एआर कोआपरेटिव ने उनके अधिकारों का हनन कर लिया, जिस खाद के आवंटन की पत्रावली जिला कृषि कृषि अधिकारी को डीएम के पास ले जानी चाहिए, उसे एआर ले जा रहे, जिला उर्वरक समन्वय समिति के संयोजक के रुप में डीओ पूरी तरह फेल रहे। मलाई एआर और उनके समितियों के सचिवों ने काटा और बदनामी और अक्षम होने का दंष जिला कृषि को झेलना पड़ रहा है। किसानों का कहना और मानना हैं, कि अगर जिला कृषि अधिकारी अपने अधिकारों का प्रयोग करते तो एआर और उनके सचिव इतना मनमानी नहीं कर पाते। एक तरफ जिला कृषि अधिकारी अपने रिटेलर्स को खाद उपलब्ध नहीं करा पा रहें, और दूसरी ओर एआर समितियों पर आवष्यकता से अधिक यूरिया उपलब्ध कराने में सफल रहे, ऐसे में कौन पास और कौन फेल हुआ इसे आसानी से समझा जा सकता है? इनके असफल होने का सबसे बड़ा उदाहरण नीजि क्षेत्र के 50 फीसद खाद को पीसीएफ वाले के हिस्से में चले जाना माना जा रहा है। जिसके चलते रिटेलर्स पर खाद की कमी हो गई। इसी 50 फीसद अधिक खाद के चलते पीसीएफ के डीएस, एआर और समितियों के सचिव मालामाल हो गए। जिला कृषि अधिकारी की अक्षमता/असफलता के कारण रबी सीजन से पहले बड़ी संख्या में रिटेलर्स लाइसेंस को सरेंडर करने की तैयारी कर रहे है। अनेक रिटेलर्स का आरोप है, कि साहब जाति देख कर छापेमारी, जांच और कार्रवाई करते है। अगर कोई मौर्या रिटेलर्स हैं, तो यह न तो जांच करने जाते हैं, और न कार्रवाई ही करते। मानो जिले के लगभग 300 मौर्या खाद बीज भंडार को मनमानी करने का लाइसेंस मिल गया हो। किसी रिटेलर्स के यहां एक बार भी जांच करने नहीं जाते और न उनका कागज पत्तर ही मंगाते, वहीं पर ऐसे भी रिटेलर्स है, जिनके यहां चार-चार बार जांच और फोन से छानबीन करते है। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि जब जिले में खपत से अधिक 10 हजार एमटी यूरिया का वितरण हो गया, तो फिर किसानों को एक-एक बोरी के लिए लाइन में धक्के क्यों खाना पड़ रहा? आखिर यूरिया गया तो कहां गया, कौन बताएगा? दो दिन पहले जिला कृषि अधिकारी ने एक विज्ञप्ति जारी किया, जिसमें खाद की कालाबाजारी को देखते हुए इन्होंने किसानों से शपथ-पत्र के साथ शिकायत करने को कहा गया। यह उसी विभाग के अधिकारी हैं, जिस विभाग के अधिकारी ने  अज्ञात शिकायतकर्त्ता की शिकायत पर शचि वर्मा और अमन प्रताप सिंह जैसे बाबूओं को बर्खास्त कर दिया, अब उसी विभाग के अधिकारी किसानों से एक बोरी खाद की शिकायत करने के लिए शपथ-पत्र मांग रहे है। जिला कृषि अधिकारी को शायद यह नहीं मालूम कि जनप्रतिनिनिधि और सरकारी कर्मियों की शिकायत शपथ पत्र पर लेने का नियम है। साहब को अच्छी तरह मालूम हैं, कि कोई भी किसान शपथ पत्र नहीं देगा, और जब शपथ-पत्र नहीं देगा तो जांच नहीं होगी और जब जांच नहीं होगी तो कार्रवाई भी नहीं होगी। एक बोरी यूरिया पाने के लिए एक किसान सुबह से ही लाइन में लगा रहा, जब उसे नहीं मिला तो चह रोने लगा और कहा कि अब दुबारा कभी भी भाजपा को वोट नहीं दूंगा।

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