खोरिया’ में एक ‘बोरी’ सीमेंट में बनता ‘शौचालय’

खोरिया’ में एक ‘बोरी’ सीमेंट में बनता ‘शौचालय’

खोरिया’ में एक ‘बोरी’ सीमेंट में बनता ‘शौचालय’

-एक-एक बोरी सीमेंट में एक करोड़ 20 लाख का लगभग एक हजार शौचालय’ बन गया,

अधिकांश लाभार्थियों को पता ही नहीं कि उनके नाम पर शौचालय का पैसा निकल, एक-एक लाभार्थी के नाम चार से पांच का पैसा लिया गया, 95 फीसद मनरेगा मजदूरों को उनके खाते का पता ही नहीं, प्रधान के ससुर उमापति, पति अरविंद और देवर अजय मनरेगा मजदूर के रुप में मजदूरी ले रहें

-देश का यह पहला ऐसा ग्राम पंचायत होगा, जहां के प्रधान के आवास में बैंक, पोस्ट आफिस, कोटे की दुकान और प्रधानी एक साथ, खाताधारकों को बैंक में जो भी मोबाइल नंबर फीड हैं, उनमें अधिकांश प्रधानजी के परिवार के लोगों का  

-बैंक का एटीएम खाताधारक नहीं बल्कि प्रधानजी के परिवार वाले उपयोग/दुरुपयोग कर रहे, खाताधारक जब खाता खुलाने बैंक जाता तो मैनेजर कहते हैं, कि तुम्हारा तो खाता सालों से चल रहा, ष्नया खाता खोलने पर जब मनरेगा मजदूर जोर देता तो मैनेजर उससे कहते हैं, कि नया खुलवाकर क्या करोगे, जो पुराना चल रहा है, उसी का इस्तेमाल करो,

-प्रधानजी का खास पिंटू लाल, जब भी मनरेगा की मजदूरी आती तो यह घर-घर बायोमैटिक मशीन लेकर पहुंच जाता, और सौ-दो पकड़ाकर हजारों के भुगतान पर अगूंठा लगवा लेता, प्रधानजी के एक और खास है, जिनका नाम यादवजी, यह दोनों प्रधानजी के सही और गलत कामों में बराबर के हिस्सेदार

-इस फर्जीवाड़े में बैंक के मैनेजर की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका सामने आ रही, यह प्रधानजी के कालेकारनामों का सबसे बड़ा हमराज भी, अगर न होते तो खाताधारक बैंक जाए या न जाए उसका भुगतान कर देते, फर्जी खाता भी खोल देते

-इस ग्राम पंचायत को भाजपा के एक नेताजी की बपौती समझी जा रही, भले ही करोड़ों कमाकर इन्होंने अपने आका को नहीं जितवा पाए, 10 हजार की आबादी वाले इस गांव में जितना वोट मिलना चाहिए था, उतना इनके आका को नहीं, जिसके चलते वह हार गए, आका के नाम पर सालों मलाई काटा और जब जीताने की बारी आई तो नहीं जीता पाए

बस्ती। जब भी ग्राम पंचायतों में व्याप्त भ्रष्टाचार का नाम आएगा, तो उसमें बनकटी ब्लॉक के देष भर में चर्चित ग्राम पंचायत खोरिया का नाम अवष्य आएगा। इस ग्राम पंचायत के विकास के नाम पर में हर साल लगभग एक करोड़ खर्च होता है, यानि अगर देखा जाए तो एक कार्यकाल में पांच करोड़ खर्च हुआ, यानि एक सांसद और विधायक के निधि के बराबर इस ग्राम पंचायत में सरकारी धन व्यय हुआ, मनरेगा में इस ग्राम पंचायत में तो खर्च करने का विष्व रिकार्ड बनाया, फिर भी यह ग्राम पंचायत माडल नहीं बना। सवाल उठ रहा है, कि आखिर पांच करोड़ गया कहां, गांव वाले कहते हैं, कि अगर पूरे गांव को नोटों से पाट दिया जाए तो फिर पैसा बच जाएगा। लोगों का तो यहां तक कहना और मानना है, कि नाहक ही लोग विधायक बनने के लिए परेशान हैं, जो मचा और पैसा इस ग्राम पंचायत के प्रधानी में हैं, उतना पैसा और मजा विधायकी में नहीं। कहते हैं, कि जिस ग्राम पंचायत एक करोड़ 20 लाख के लगभग एक हजार व्यक्तिगत शौचालय एक बोरी सीमेंट में बन गया, वह ग्राम पंचायत तो प्रधान और सचिव के लिए स्वर्ग ही कहा जाएगा। कहते हैं, प्रधान के परिवार और सचिव को देश का सबसे धनी बनाने में पूर्व सांसद का बहुत बड़ा योगदान रहा। इन्हीं के नाम पर पांच साल से ग्राम पंचायत को लूटते आ रहे है। शिकायतें तो बहुत होती है, लेकिन राजनैतिक दखलंदाजी और पैसे के बल पर मामले को दबा दिया जाता रहा। यह पहला ऐसा ग्राम पंचायत हैं, जिसके कार्यो की जांच के लिए हाईपावर की कमेटी बनी, कमेटी ने आने की जानकारी भी गांव वालों को दी ताकि सब लोग एकत्रित हो सके, जिस दिन कमेटी आने वाली थी, पता चला कि वह रास्ते से वापस चली गई। इसे कहते हैं, मनी और पावर का खेल। इस ग्राम पंचायत को भाजपा के एक नेताजी की बपौती समझी जा रही, भले ही करोड़ों कमाकर इन्होंने अपने आका को नहीं जितवा पाए, 10 हजार की आबादी वाले इस गांव में जितना वोट मिलना चाहिए था, उतना इनके आका को नहीं मिला और जिसके चलते वह हार गए, आका के नाम पर सालों मलाई काटा और जब जीताने की बारी आई तो नहीं जीता पाए, वोट न मिलने का सबसे बड़ा कारण गांव वाले परिवार का भ्रष्टाचार में डूबना बता रहे हैं। इसी लिए कहा जा रहा है, कि पूर्व सांसद यूंही नहीं हारे, इन्हें तो खोरिया के उपाध्यायजी जैसे लोगों ने हराया। अगर अभी भी पूर्व सांसदजी की आंख नहीं खुली तो आगे उनका भगवान ही मालिक।

गांव वालों का कहना है, कि एक-एक बोरी सीमेंट में एक करोड़ 20 लाख का लगभग एक हजार शौचालय बन गया। अधिकांश लाभार्थियों को पता ही नहीं कि उनके नाम पर शौचालय का पैसा कब निकला, एक-एक लाभार्थी के नाम चार से पांच का षौचालय का पैसा लिया गया। जानकर हैरानी होगी कि 95 फीसद मनरेगा मजदूरों को उनके खाते का पता ही नहीं, नया खाता खोलने के लिए मजदूर जब बैंक जाता तो मैनेजर साहब कहते हैं, कि तुम्हारे नाम से तो सालों से खाता चल रहा, जब मनरेगा मजदूर जोर देता तो मैनेजर कहते हैं, कि नया खुलवाकर क्या करोगे, जो पुराना है, उसी का इस्तेमाल करो। प्रधान के ससुर उमापति, पति अरविंद और देवर अजय मनरेगा मजदूर के रुप में मजदूरी ले रहें है। देष का यह पहला ऐसा ग्राम पंचायत होगा, जहां के प्रधान के आवास में बैंक, पोस्ट आफिस, कोटे की दुकान और प्रधानी एक साथ, खाताधारकों को बैंक में जो भी मोबाइल नंबर फीड हैं, उनमें अधिकांश प्रधानजी के परिवार के लोगों का है। बैंक का एटीएम खाताधारक नहीं बल्कि प्रधानजी के परिवार वाले उपयोग/दुरुपयोग कर रहे। प्रधानजी का खास पिंटू लाल, जब भी मनरेगा की मजदूरी आती तो यह घर-घर बायोमैटिक मशीन लेकर पहुंच जाता, और सौ-दो पकड़ाकर हजारों के भुगतान पर अगूंठा लगवा लेता, प्रधानजी के एक और खास है, जिनका नाम यादवजी, यह दोनों प्रधानजी के सही और गलत कामों में बराबर के हिस्सेदार है। प्रधानजी का परिवार इन दोनों बिचौलियों पर हद से अधिक यकीन करते है। इस फर्जीवाड़े में बैंक के मैनेजर की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका सामने आ रही, यह प्रधानजी के कालेकारनामों का सबसे बड़ा हमराज भी, अगर न होते तो खाताधारक बैंक जाए या न जाए उसका भुगतान कैसे हो जाता? फर्जी खाता खोलने से लेकर फर्जी भुगतान करने के मामले में बैंक मैनेजर की भूमिका संदिग्ध रही है। जांच तो बैंक मैनेजर की भी होने की बात गांव वाले कह रहे है।

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