क्यों’ दी जा रही सफल ‘जिलाध्यक्ष’ होने की ‘बधाई’?
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 24 September, 2025 19:04
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‘क्यों’ दी जा रही सफल ‘जिलाध्यक्ष’ होने की ‘बधाई’?
-जिस अध्यक्ष के कार्यकाल में सांसद हार जाए, वह सफल जिलाध्यक्ष कैसे हो सकता?
-जिसके कार्यकाल में जिले में पार्टी की दुर्गति हो रही हो, उसे सफल कैसे माना जाए?
तिकड़म से पद पा लेना अलग बात है, मगर सफल तभी मानना चाहिए, जब पार्टी सफल हो
बस्ती। भाजपा जिलाध्यक्ष का दो साल का सफल कार्यकाल बताकर जिस तरह इन्हें बधाई दी जा रही है, उस पर सवाल उठ रहे है? और पूछा जा रहा है, कि जिसके कार्यकाल में सांसद हार जाए और पार्टी की दुर्गति हो रही है, उसे सफल जिलाध्यक्ष होने की बधाई क्यों दी जा रही है? यह सवाल किसी और ने नहीं बल्कि भाजपा के कटटर समर्थक रवि प्रताप सिंह ने सोषल मीडिया के जरिए उठाया, और कहा कि मेरी समझ में नहीं आ रहा है, कि जिसके कार्यकाल में जनपद में पार्टी की दुर्गति हो रही हो, सांसद चुनाव हार जाते, वह सफल जिलाध्यक्ष कैसे हो सकतें हैं? वह भी तब जब मोदीजी और योगीजी जैसे नेता पार्टी के सर्वोच्च पदों पर है। कहते हैं, कि तिकड़म से पद पा लेना अलग बात हैं, मगर सफल तभी मानना चाहिए, जब पार्टी सफल हो, बाकी आप सभी समझदार हैं, बधाई देते रहिए। वैसे इनका समर्थन तो बहुत से लोगों ने किया, उन लोगों ने भी किया जो अपना नाम नहीं उजागर करना चाहते, कार्यकर्त्ताओं ने सबसे अधिक रवि प्रताप सिंह के कमेंट को सही कहा। जैसे अनिल कुमार सिंह ने कहा कि भैयाजी आपने बहुत ही सही बात कही। इनका समर्थन आनंद स्वरुप बब्बू मिश्र, विनोद सिंह, हरीश ओझा, सुशील मिश्र, सुधीर सिंह, राहिल खान, सुनील श्रीवास्तव, दिलीप कुमार मिश्र, सुरेश गुप्त, राम कृष्ण सोनी, राजीव कुमार सिंह ने लिखा कि वाह मित्र, सटीक विष्लेशण, कमलेश दूबे ने भी इसे सटीक विष्लेषण बताया, मनोज सिंह ने इन्हें सबसे निकृष्ट जिलाध्यक्ष तक बता दिया। कईयों ने दबी जबान में यहां तक कहा कि जिस जिलाध्यक्ष की बात दारोगा न माने वह जिलाध्यक्ष कैसा? सबसे अधिक दर्द कार्यकर्त्ताओं का है, यह लोग चाहते हैं, कि उन्हें ऐसा जिलाध्यक्ष चाहिए, जो कार्यकर्त्ताओं को दुतकारने के बजाए उन्हें गले लगाए। कहते हैं, कि जिस दिन कार्यकर्त्ताओं को सहेजने वाला कोई जिलाध्यक्ष मिल गया, उस दिन एक भी सीट पर अन्य का कब्जा नहीं होगा। कहते हैं, कि उन्हें कार्यकर्त्ताओं को मान-सम्मान और उनका हक दिलाने वाला जिलाध्यक्ष चाहिए। हक छीनने वाला नहीं चाहिए। कहते हैं, कि जिस दिन जिले में कार्यकर्त्ताओं को उनका हक मिल गया, उस दिन लोग जिलाध्यक्ष की जयजयकार करेगें, यह भी कहते हैं, कि हम लोगों को ऐसा जिलाध्यक्ष नहीं चाहिए, जो मौका आने पर उनका हक चारों धाम यात्री के मनई-तनई, वाहन चालक, रसोईया और चपरासी को दे दे। जिस अध्यक्ष के कार्यकाल में कार्यकर्त्ता अपनी मोटर साइकिल को थाने और चौकी से न छुड़ा पाए, लेखपाल उसकी बात न सुने, प्रमुख न सुने, जिला पंचायत अध्यक्ष न सुने नगर पंचायत अध्यक्ष न सुने, उस अध्यक्ष का दो साल का कार्यकाल कैसे सफल माना जा सकता है?

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