कोषागार’ में ‘कमीशन’ दीजिए ‘चाहे’ जितना ‘भुगतान’ ले ‘जाइए’

कोषागार’ में ‘कमीशन’ दीजिए ‘चाहे’ जितना ‘भुगतान’ ले ‘जाइए’

कोषागार’ में ‘कमीशन’ दीजिए ‘चाहे’ जितना ‘भुगतान’ ले ‘जाइए’

-टेजरी कार्यालय ने अनियमित रुप से किया 15 लाख का भुगतान, नहीं निभाई भुगतान प्रक्रिया, मचा हड़कंप, मामले को रातों रात दफना दिया गया

-सवाल उठ रहा, कैसे भूमि संरक्षण अधिकारी ने बिना आहरण और वितरण अधिकारी उप निदेशक कृषि के हस्ताक्षर के टेजरी में 15 लाख का बिल प्रस्तुत कर दिया? कैसे कोषागार के पटल सहायक ने बिल का पास कर दिया? कैसे सीटीओ ने भुगतान भी कर दिया?

-फंसता देख सीटीओ ने रातों रात बिल रजिस्टर को कब्जे में लिया और रात में ही अवकाश पर गए डीडी को बुलाकर बिल पर हस्ताक्षर करवाया, इतनी बड़ी अनियमितता को सभी ने दबा दिया, सीटीओ ने कहा कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं डीडी ने कोई जबाव ही नहीं दिया,

बस्ती। कोषागार के लोगों के बारे में तत्कालीन डीएम सुशील कुमार ने कहा था, कि यह एक ऐसा विभाग हैं, जहां के लोग मुर्दो से भी पैसा वसूल लेते है। जिंदा इंसानों की तो यह लोग चढढी और बनियाइन तक उतार लेते है। बिना कमीशन के इनकी अंगुलिया कम्प्यूटर के ‘कीबोर्ड’ पर चलना तो दूर, कम्प्यूटर तक ‘आन’ नहीं करते। यह वही कोषागार हैं, जहां पर खाद्य विभाग का दस करोड़ का फर्जी भुगतान होने का खुलासा हो चुका। यह वही कोषागार जहां पर एक भ्रष्ट बाबू को पटल से हटाने के लिए पेंषनर्स एसोसिएशन को कई बार धरना-प्रदर्शन तक करना पड़ा। कोषागार को लोग इसे इस लिए सबसे अधिक सुरक्षित मानते हैं, क्यों कि यहां पर सात तालों में तिजोरी और राज बंद रहता है, लेकिन जब कमीशन मिल जाता है, सारे ताले खुल जाते हैं। सारी सुरक्षा धरी की धरी की धरी रह जाती है। जिस कोषागार में वेतन के नाम पर दो फीसद कमीशन लिया जाता हो, उस विभाग में अगर 15 लाख का गलत भुगतान हो भी जाता है, तो इसमें हैरान होने वाली क्या बात है।

दो दिन पहले कोषागार में एक ऐसी बड़ी घटना होती है, जिसकी जांच हो जाए तो सीटीओ से लेकर पटल सहायक और भूमि संरक्षण अधिकारी तक बुरी तरह फंस सकते है। घटना तो होती है, लेकिन जब गलती का पता चलता है, तो सभी लोग मिलकर घटना पर ही रातों रात पर्दा डाल देते है। सवाल उठ रहा, कैसे भूमि संरक्षण अधिकारी ने बिना आहरण और वितरण अधिकारी, उप निदेशक कृषि के हस्ताक्षर के टेजरी में 15 लाख का बिल प्रस्तुत कर दिया? कैसे कोषागार के पटल सहायक ने बिल को पास कर दिया? और कैसे सीटीओ ने भुगतान कर दिया? फंसता देख सीटीओ ने रातों रात बिल रजिस्टर को कब्जे में लिया और रात में ही अवकाश पर गए डीडी को बुलाकर बिल पर हस्ताक्षर करवाया, इतनी बड़ी अनियमितता को सभी ने मिलकर इस लिए दबा दिया, ताकि कोई फंसे न। सीटीओ ने कहा कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं, डीडी ने कोई जबाव ही नहीं दिया। इसे न तो चूक और न भूल ही कहा जा सकता है, इसे कमीशन मिलने के बाद आंख पर पटटी बांध लेना कहा जाता है। जिस पटल सहायक और सीटीओ की नजर गिद्ध की तरह होती है, और जिसकी नजर से छिपाकर कोई एक रुपया का भी भुगतान अनियमित रुप से नहीं ले सकता, अगर ऐसे लोगों से 15 लाख का अनियमित भुगतान हो जाता है, तो सवाल तो पहले सीटीओ, फिर पटल सहायक और उसके बाद बिल प्रस्तुत करने वाले भूमि सरंक्षण अधिकारी पर उठेगा ही। भले ही धन का दुरुपयोग न हुआ हो, लेकिन जिस तरह भुगतान की प्रक्रिया की अनदेखी की गई, उसे तो गलत माना ही जाएगा। वैसे भी कृषि विभाग और कोषागार के अधिकारियों और कर्मचारियों को सबसे अधिक भ्रष्टाचार करने वाला माना जाता है। कृषि विभाग के भ्रष्टाचार की बात किसी से छिपी नहीं हैं। जिस विभाग के मंडलीय अधिकारी को हर तीन माह में 80 हजार और उपनिदेशक कृषि को इस लिए 50 हजार, जिला कृषि अधिकारी कार्यालय के द्वारा दिया जाता हो, ताकि भ्रष्टाचार पर पर्दा पड़ा रहे और भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो, उस विभाग के लोगों से ईमानदारी की उम्मीद किसान करे तो कैसे करें?। जहां पर सरकार किसानों को लाभ देने और उनकी आय को दोगुना करने के लिए योजनाएं बनाती है, वहीं पर इस विभाग के लोग योजना का अधिक से अधिक दुरुपयोग कर लाभ उठाने के लिए रणनीति बनाते है।

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