कसम खाइए कि हम किन्नरों के आंतक का खात्मा करके ही रहेगें!

कसम खाइए कि हम किन्नरों के आंतक का खात्मा करके ही रहेगें!

कसम खाइए कि हम किन्नरों के आंतक का खात्मा करके ही रहेगें!

-सरकार ने जैसे ही इनके नेग का रेट तय किया, वैसे ही पूरे प्रदेश में खुशी की लहर दौड़ पड़ी, हर कोई स्वागत और सराहना कर रहा

-भले ही सरकार के लिए यह नोटिकफेशन कोई मतलब न हो लेकिन उन लोगों के लिए एक बहुत बड़ी सौगात हैं, जो इनके आंतक का शिकार होने से बच जाएगें

-अगर किन्नरों के आंतक से बचना और सामना करना है, तो आम लोगों को सरकार के हथियार का इस्तेमाल करना होगा

-रौता पार के एक परिवार का नव..जात बच्चा आईसीयू में मौत और जिंदगी से जूझ रहा था, इन लोगों ने 25 हजार मांगा, नहीं दिया तो सड़क पर ऐसा तांडव किया कि पुलिस को आना पड़ा, पिता दो हजार दे रहा था, एफआईआर भी दर्ज

-जनता परेशान है, कि वह इंकम टेैक्स जमा करे, टीडीएस जमा करे, जीएसटी जमा करे या फिर किन्नरों के जजिया टैक्स को जमा करे  

-भूल जाइए कि यह कोई श्राप दे देगें, किन्नरों की बददुआ से कुछ नहीं होता, बहुत कुछ बदल गया न देवी रहें और न देवता, तो फिर इनसे डरना कैसा?

बस्ती। यूपी सरकार ने किन्नरों का आंतक समाप्त करने के लिए जो छोटा सा नोटिफिकेशन जारी किया हैं, उसने करोड़ों का दिल जीत लिया। भले ही चाहें सरकार के लिए यह कोई कोई मायने न रखता हो, लेकिन करोड़ों लोगों के लिए यह बहुत मायने रखता है। क्यों कि किन्नरों के आंतक और अवैध वसूली से हर कोई परेशान हो चुका था, किन्नरों के आंतक को लेकर पूरे प्रदेश में त्राहि-त्राहि मची हुई है। यह लोग श्राप देने के नाम पर जिस तरह आतंक फैलाकर वसूली कर रहे हैं, उससे आम आदमी का जीवन प्रभावित हो रहा है। भूल जाइए कि यह कोई श्राप दे देगें, किन्नरों की बददुआ से कुछ नहीं होता, बहुत कुछ बदल गया न देवी रहें और न देवता, तो फिर इनसे डरना कैसा? आइए हम सब मिलकर कसम खाते हैं, कि किन्नरों के आतंक को जड़ से समाप्त कर देगें। भूलकर इन्हें अब शादी में 11 सौ और बच्चा पैदा होने पर नेग के रुप में पांच सौ से अधिक मत दीजिएगा, अगर यह लोग नेग के लिए आंतक मजाए, या गाली-गलौज या फिर अपना कपड़ा फाड़कर नौटंकी करे तो भी इन्हें सरकार के द्वारा निर्धारित रेट से अधिक नेग नहीं देना है। अगर कोई टोली जबरदस्ती करती या फिर श्राप देने की धमकी देती है, तो त्वरित 100 डायल करिए, पुलिस आएगी और इन्हें पकड़कर ले जाएगी। रौतापार के हाल की एक घटना से किन्नरों के आतंक का पता चलता है। एक श्रीवास्तव परिवार में लड़का पैदा हुआ, अचानक उसकी तबियत खराब हो गई, उसे आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा पूरा परिवार बव्च्चे की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहा था, मगर जैसे ही किन्नरों को बच्चा पैदा होने का पता चला, टोली श्रीवास्तवजी के घर धमक पड़ी और 25 हजार मांगने लगी। बच्चे के पिता ने बच्चे के बारे में बताया भी, लेकिन टोली 25 हजार पर अड़ी रही। परिवार के लोग दुखी मन से किन्नरों का सम्मान करने के लिए दो हजार दे रहा था, लेकिन टोली 25 हजार से एक रुपया भी कम लेने को तैयार नहीं थी, बात गाली गलौज और हंगामा करने पर आ गई, कपड़ा फाड़कर सड़क पर आ गई, किन्नरों ने खूब हंगामा किया, पुलिस को बुलाना पड़ा, पुलिस के आने के बाद भी यह नहीं डरी, हंगामा करती रही, जब पुलिस ने बल का प्रयोग किया तो चली गई, बाद में एफआईआर भी दर्ज हुआ। किन्नरों ने जाते-जाते कहा कि बच्चा अस्पताल से जिंदा वापस नहीं आएगा ऐसा श्राप भी दिया, लेकिन बच्चा अब पूरी तरह से स्वस्थ है। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, कि अगर किन्नरों के आतंक को समाप्त करना है, तो पुलिस का सहारा लेना पड़ेगा, श्राप के बारे में बिलुकुल ही नहीं सोचना होगा, क्यों कि अब न तो देवी रही है, और न देवता ही रहें, तो श्राप, आर्षीवाद और वरदान कौन देगा? यकीन मानिए, अब जैसे ही यह लोग पुलिस के बुलाने को सुनेगी, भाग खड़ी होंगी। ध्यान रखिएगा, यह ऐसे समाज को डराते, धमकाते और श्राप देने की बात करते हैं, जो समाज इनका मान और सम्मान करता है। तो फिर हम लोग ऐसे लोगों का मान-सम्मान क्यों करें, जो हमारे परिवार को श्राप देकर बर्बाद करने की बाते करता हैं। जिस तरह इन लोगों ने गली मोहल्लों और गांव गढ़ी बाजारों और कस्बों में नेग के नाम पर आतंक फैला रखा है, उससे पूरा हिंदू समाज दुखी और परेषान है। अब जरा अंदाजा लगाइए कि जिस परिवार ने कर्ज लेकर अपने बेटे का विवाह किया होगा, अगर उसी परिवार से यह किन्नर लोग 40-50 हजार और सोने का नेग लेने की मांग करेगें तो उस परिवार पर क्या बीतेगी। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, कि अगर इनके आतंक को जड़ से समाप्त करना हैं, तो इन्हें सबक सिखाना ही होगा, इस मामले में मीडिया भाईयों से भी अपेक्षा है, कि वह अधिक से अधिक किन्नरों के आंतक को समाप्त करने के लिए आम लोगों को जागरुक करें। यह मत भूलिए, किन्नरों के आतंक का षिकार मीडिया के लोग भी हो सकते है। समाज के लोग अब तो इन्हें अघोशित सामाजिक आतंकवादी तक करार दे दिया। पहलगाम के आतंकवादियों से तो बदला ले लिया, घर के सामाजिक आतंकवादी से बदला कब लेगें? क्या कभी आप लोगों ने सोचा कि यह लोग आम धारा में क्यों नहीं शामिल होते? क्यों नहीं यह लोग अन्य की तरह कोई कारोबार या कोई काम करते, मौका मिले तो दरवाजे पर नेग मांगने आए किसी किन्नर से सवाल अवष्य करिएगा। चाहें तो यह लोग काम धंधा करके आम धारा में शामिल हो सकते है। लेकिन यह लोग ऐसा इस लिए नहीं करते क्यों कि इनकी जो कमाई आतंक फैलाकर होती है, उतनी कमाई काम धंधा में नहीं होती, अगर किसी किन्नर की रोज की आमदनी पांच हजार हो तो वह क्यों कोई मेहनत और ईमानदारी वाला काम करेगा। किसी भी देवी-देवता ने इन्हें यह वरदान नहीं दिया होगा कि आंतक फैलाकर जीवन यापन करो। सवाल उठ रहा है, कि कौन इन्हें ईमानदारी से काम करने को रोक रहा है। जब यह चुनाव लड़कर मेयर बन सकती है, तो क्यों नहीं कारोबार करके कोई कारोबारी बनती? जनता परेशान है, कि वह इंकम टैक्स जमा करे, टीडीएस जमा करे, जीएसटी जमा करे या फिर किन्नरों के जजिया टैक्स को जमा करे। सौ फीसद दावा है, कि अगर हम लोग अपनी कसम को पूरा करने में कामयाब हुए तो इन्हें भी हम लोगों की तरह मेहनत करनी पड़ेगी।   

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