कौन है, ‘टाउन क्लब’ के ‘अरबों’ की ‘संपत्ति’ का असली ‘मालिक’?

कौन है, ‘टाउन क्लब’ के ‘अरबों’ की ‘संपत्ति’ का असली ‘मालिक’?

कौन है, ‘टाउन क्लब’ के ‘अरबों’ की ‘संपत्ति’ का असली ‘मालिक’?

-काफी दिनों से बीडीए टाउन क्लब के स्वामित्व की तलाश कर रहा, मगर मिल नहीं रहा, किसी को जानकारी हो तो बता दीजिए, बीडीए के लोग काफी परेशान

-अगर कोई बीडीए को स्वामित्व के बारे में बता देता तो बीडीए यहां पर बेसमेंट में पार्किगं,  भूतल पर व्यावसायिक, प्रथम तल पर मल्टीपर्पज, कार्यालय एवं कांसफ्रेंस रुम, द्वितीय तल पर गेस्ट हाउस का निर्माण करा देता, बीडीए की ओर से 20 करोड़ का डीपीआर भी बन चुका

-एसडीएम सदर भी बीडीए को स्वामित्व के बारे में नहीं बता पा रहें, बीडीए इसके बारे में एसडीएम को पत्र भी लिख चुका

बस्ती। सुनने में अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच है, कि बीडीए वालों को यह तक नहीं मालूम कि टाउन क्लब का स्वामित्व किसके पास, फिर भी प्रस्तुत कर दिया 20 करोड़ का डीपीआर। अगर किसी को स्वामित्व का पता हो तो कृपया करके इसकी जानकारी बीडीए को अवष्य दे दीजिए, ताकि बीडीए यहां पर बेसमेंट में पार्किगं, भूतल पर व्यावसायिक, प्रथम तल पर मल्टीपर्पज, कार्यालय एवं कांसफ्रेंस रुम, द्वितीय तल पर गेस्ट हाउस का निर्माण करा सके। बीडीए, सदर के एसडीएम को भी स्वामित्व की जानकारी देने के लिए लिख चुका, लेकिन एसडीएम साहब भी नहीं बता पा रहे हैं, सवाल उठ रहा है, आखिर अरबों रुपये की संपत्ति का असली मालिक कौन हैं? पुरानी खतौनी में पालिका के नाम स्वामित्व होना बताया जा रहा, तहसील वाले अपना बता रहें, गीता सिंह ने स्वामित्व के लिए हाईकोर्ट में गीता सिंह बनाम सरकार के नाम से अलग से मुकदमा कर रखा है। किस तरह संपत्ति को अपना बताकर लूटा गया, और किस तरह और किनके सहयोग से टाउन क्लब को खाली करवाया गया, यह सभी को मालूम हैं, लेकिन इस संपत्ति का असली मालिक कौन है? यह अभी तक पता नहीं चल सका। इसका खुलासा उस समय बीडीए की बैठक में हुआ, जब यह जानना चाहा गया कि जो 20 करोड़ का डीपीआर बना था, उसका क्या हुआ, पहले तो बीडीए के अधिकारियों ने यह कह कर रोना रोया, कि बीडीए के पास इतनी बड़ी धनराशि खर्च करने के लिए नहीं, फिर कहा गया कि चलो ठीक हैं, पैसा नहीं हैं, तो, पीपीपी मोड पर प्रोजेक्ट के लिए डीपीआर प्रस्तुत किया जाए। तब यह कहा गया कि निर्माण हो तो कैसे? जब इसके स्वामित्व का पता ही नहीं, फिर कहा गया कि एसडीएम सदर को पत्र लिखा जाए, एसडीएम को पत्र भी लिखा गया, लेकिन एसडीएम साहब भी स्वामित्व की जानकारी नहीं दे सके। कहने का मतलब टाउन क्लब में बेसमेंट में पार्किगं, भूतल पर व्यावसायिक, प्रथम तल पर मल्टीपर्पज, कार्यालय एवं कांसफ्रेंस रुम, द्वितीय तल पर गेस्ट हाउस का निर्माण का सपना अधूरा रह जाएगा, और न जाने कितने सालों तक लोगों को पार्किंगं की समस्या से जूझते रहने पड़ेगा। यह सही है, कि इस संपत्ति के खेवटदार सरकार यानि डीएम हैं, कुछ साल पहले पालिका को संपत्ति की देखरेख करने को कहा गया। किस तरह दस दुकानों पर से कब्जा हटवाया गया, वह किसी से छिपा नहीं। भाजपा नेता राजेंद्रनाथ तिवारी के प्रस्ताव पर तत्कालीन डीएम वामसीजी ने यहां पर बेसमेंट में पार्किगं, भूतल पर व्यावसायिक, प्रथम तल पर मल्टीपर्पज, कार्यालय एवं कांसफ्रेंस रुम, द्वितीय तल पर गेस्ट हाउस का निर्माण करवाने का निर्देश दिया विज्ञप्ति भी जारी हुई, बीडीए ने काम करना भी शुरु किया, लेकिन मामला आकर स्वामित्व पर ठहर गया। सवाल उठ रहा है, कि बिना स्वामित्व की जानकारी के बीडीए ने कैसे 20 करोड़ का डीपीआर प्रस्तुत कर दिया? डीएम ने बीडीए के एक्सईएन को इस पूरे मामले में विशेष रुचि लेने का निर्देश दिया था। विधि के जानकारों का कहना है, कि अगर बीडीए प्रशासन वाकई टाउन क्लब का विकास करना चाहता है, तो सबसे पहले हाईकोर्ट में चल रहे मुकदमें का निस्तारण कराना होगा, क्यों कि पैरवी के अभाव में मामला लंबित होता जा रहा। बिना निस्तारण के कोई निर्माण हो ही नहीं सकता। रही बात मालिकाना हक की तो इसे प्रशासन एक मिनट में तय का सकता।

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