‘कलंक’ हैं, ‘एमपी’ के नाम पर, होना, न होना ‘बराबर’!

‘कलंक’ हैं, ‘एमपी’ के नाम पर, होना, न होना ‘बराबर’!

‘कलंक’ हैं, ‘एमपी’ के नाम पर, होना, न होना ‘बराबर’!

-बस्ती में कोई इस लेबिल का नेता नहीं जो जिले का विकास कर सके, बस्ती से पलायन रोक सके, बंद पड़ी चीनी मिलों को चला सकें

बस्ती। अभी कुछ दिनों पर पहले सोशल मीडिया पर एक बहस हुई थी, जिसमें वर्तमान सांसद के कार्यकाल को लेकर सवाल किए गए थे, प्रतिशत में सहमति और असहमति पूछा गया था। जानकार हैरानी होगी कि एक हजार से अधिक लोगों ने अपनी राय जिले के सांसद सहित अन्य सपा के विधायकों के बारे में जाहिर किया था। अधिकतर राय जाति पर आधारित रहा। जाहिर सी बात हैं, सहमति और सबसे अधिक प्रतिशत भी इन्हीं के पक्ष में रहा। खुलकर जिस तरह लोगों ने जिले के सांसद के बारे में अपनी राय रखी, उसपर सांसदजी को अवष्य मंथन करना चाहिए। क्यों कि अधिकांश जो मत प्रकट किए गए, उसे किसी भी हालत में वर्तमान सांसदजी के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता। दुर्भाग्य यह होता आया कि माननीयों ने जनता की सहमति/असहमति पर विशेष ध्यान नहीं देते रहें। कहा भी जाता है, कि जो नेता अपनी कमियों को नहीं सुधारता उसे उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। इसे पूर्व सांसद के रुप में देखा जा सकता है। नेताओं को जाति-पाति से उपर उठकर विकास करना चाहिए और यह सोचकर चुनाव में जाना चाहिए, कि वह किसी विशेष वर्ग के बदौलत चुनाव नहीं जीतता, बल्कि सर्वसमाज के बदौलत जीतता है। बहरहाल, हम आप को सबकी राय तो नहीं बता सकते हैं, लेकिन जितना भी बता रहे हैं, वह किसी नेता के दिमाग को खोलने के काफी होगा।

रोहित सनातनी हिंदु कहते हैं, कि तारीफ कंरु तो क्या उसकी जिसने इन्हें बनाया धन्य हैं, बस्ती की जनता और धन्य है, पूर्व से लेकर वर्तमान सांसद, अगला कौन होगा देखा जाएगा।

संतोष पांडेय का कहना है, कि सांसदजी का कार्यकाल इतना सुंदर हैं, कि जीतने के बाद गाड़ी का शिशा नीचे नहीं हुआ, यह जिस रास्ते से अपने घर जाते हैं, उस रास्ते पर पक्कवा बाजार भी पड़ता, आज तक उस चौराहें की दुर्दशा नहीं दिखा सांसदजी को। रणधीर सिंह कहते हैं, कि यह सांसद हैं, क्या इनके जैसा एक व्यक्ति अभी कुछ दिन पहले जूता पहनकर जगदंबा मां सरस्वती की पूजा कर रहा था, ये वही हैं, क्या? प्रमोद कुमार/अभिषेक सिंह लिखते हैं, कि पता नहीं चलता कि बस्ती में सांसद भी हैं, बहुत कठिन है, कोई इनका एक काम गिना दें, बड़े नेता होने से क्या फायदा जब अपने जिले को कुछ न दिलवा सके।:अमित मिश्र कहते हैं, कि 23 साल कप्तानगंज और बीच का पांच साल सीपी शुक्ल की तुलना में शुक्लजी का काम सरायनीय रहा, हर गांव में चौधरी साहब का दलाल बैठा, इनसे अधिक तो प्रधानजी काम करते। अमित श्रीवास्तव लिखते हैं, कि यह तो हरीश द्विवेदी और दयाराम चौधरी की देन है, अगर यह दोनों कुछ किए होते तो कैसे फायदा इनको मिलता, आजतक कभी सपा को वोट नहीं दिया, गुस्से में सपा को वोट दिया, वह भी बर्बाद चला गया। अविनाश शुक्ल/कृष्ण कुमार श्रीवास्तव कहते हैं, कि इन्होंने सिर्फ एक काम किया अपने पुत्र को विधायक बना दिया, बिलकुल सरल, बना न सके तो बिगाड़ने का हुनर नही। रवि राज अंबेडकर कहते हैं, कि जब से चुनाव खत्म हुआ, आज तक नहीं दिखे, आए दिन बच्चिओं के साथ में घटनाएं हो रही, जो लोग धरना दे रहेें, उनके सपोर्ट में भी नहीं गए, और कहते हैं, कि हम दलितों के नेता। सुनील कुमार/काशीनाथ कहते हैं, कि बस्ती मंडल का दुर्भाग्य है, जो बस्ती को बस्ती रहने देने में अपना योगदान दिया, जिले के नेताओं ने केवल पार्टी बदलकर मलाई खाया जनता और बस्ती को दो फीसद भी नहीं दिया, जीत कर बैठ जाते हैं, किसी के पिछवाड़े अंगुली नहीं करते, यही इनकी बड़ी खासियत। पं. रामेष्वर पांडेय विपुल लिखते हैं, कि चार विधायक एक सांसद जीते, अगर थोड़ा बहुत काम दिखता है, तो वह महेंद्रनाथ यादव का, बाकी जितने भी सभी अपना घर भरने में लगें, विकास के नाम पर जीरो रहें। अखिलेश शुक्ल कहते हैं, कि बस्ती की जनता को काम करने वाला नेता नहीं, जाति वाला नेता चाहिए, अगर ऐसा नहीं होता तो जगदंबिका पाल एक हैवी वाहन क्लीनर से न हारते, यही हाल इस चुनाव में रहा जाति हाबी रहा विकास दूर। गुलाब यादव/आलोक पांडेय कहते हैं, कि कभी दिखते नहीं, काम क्या घंटा करेगें, खुद लूट खा रहें, अभी बारिष का मौसम है, नेताजी नहीं दिखते, क्यों कि कपड़े गंदे हो जातें। संजय पाठक, नरोत्तम वर्मा, पवन मौर्य, भारत चंद्र कहते हैं, कि सांसदजी केवल निमंत्रण खाना पसंद करते, काम नहीं, रामप्रसाद चौधरी के कार्यकाल से हम 99 फीसद सहमत, कलंक है, एमपी के नाम पर, नेताजी से विकास के बारे में बात मत करिए जाति की बात करिए, बस्ती की किस्मत में यही सब लिखा। राजकुमार वर्मा कहते हैं, कि बाप और बेटे दोनों मिलकर विधायक और सांसद निधि को लूट रहे हैं, कुर्मी के नाम पर जीत जाते, पब्लिक को चुतिया बनाते, अब की बार इन्हें पता चलेगा। सिंगर सुभाष अहीर कहते हैं, कि दलबदलू है, बाकी जिस क्षेत्र से जीतते हैं, अगर वहां की रोड और नाली देख लो गाली देते हुए जाना पड़ेगा, यह वोट से नहीं जीत सकते बस्ती में कोई इस लेबिल का नेता नहीं जो जिले का विकास कर सके, बस्ती से पलायन रोक सके, बंद पड़ी चीनी मिलों को चला सकें। आरिफ खां लिखते हैं, कि कोई भी सांसद हो, किसी भी पार्टी का हो, सब बस्ती में विकास के नाम पर जीरो है। अमन पांडेय कहते हैं, कि रुधौली के विधायक और सांसद दोनों ने बोर्ड लगाने का काम किया, जो रोड बन गया, उसी रोड को फलाने के रोड का बोर्ड लग गया। गोलू कलेक्षन त्रिलोकपुर तिवारी कहते हैं कि जाएं देव संसद में सोने जाते हैं, दुर्भाग्य बस्ती का इनके जैसा सांसद मिला। न किसी काम के और न किसी काज के। अमर चौधरी लिखते हैं, कि यह गरीबों के लिए जीरो और पूंजीपतियों के लिए 100 फीसद सहयोग करते। खलिक खान लिखते हैं, कि नगर पंचायत नगर बाजार में विकास कार्य और सांसदजी दोनों नहीं दिखाई दे रहे है। षषिकांत नायक लिखते हैं, कि इन्हें किसी पार्टी को टिकट नहीं देना चाहिए। यह दलबदलू नेता है। इन्हें समाज से कोई मतलब नहीं खुद का जेब भरना जानते है। अभय चौरसिया लिखते हैं, कि जिनका मकसद ही पार्टी बदल-बदलकर सत्ता हासिल करना हो, वह जिले का क्या विकास करेगा। अभी भी वही वीरान बस्ती अपनी बदहाली को तरस रहा। कुलदीप राज-राज लिखते हैं, कि जाति और नाम चलता, काम जीरो है, विधायकजी का भी सांसदजी का भी। दीपक कुमार वर्मा लिखते हैं, कि कोई बड़ा काम खोजने पर भी नहीं मिलेगा, फिर इतने दिनों तक सांसद और विधायक कैबिनेट मंत्री रहने का क्या फायदा, समर्थन इस लिए किया कि जाति के हैं, इनके यहां जाने पर चाय-पानी तो मिल जाएगा, लेकिन काम नहीं हो पाएगा। यही इनकी सच्चाई है। बीपी लहरी लिखते हैं, कि अगर जनता सहमति होती तो जगह-जगह कोठियां, कालेज, आधुनिक कारें, कारखाने और पर्याप्त खेती और आय के तमाम साधन न होते। इतना होने पर भी यह अतृप्त और अशांत है।

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