जब ‘मोर्चा’ ही नहीं ‘ले’ पा रहंे तो ‘किस’ काम के मोर्चा ‘अध्यक्ष’!

जब ‘मोर्चा’ ही नहीं ‘ले’ पा रहंे तो ‘किस’ काम के मोर्चा ‘अध्यक्ष’!

जब ‘मोर्चा’ ही नहीं ‘ले’ पा रहंे तो ‘किस’ काम के मोर्चा ‘अध्यक्ष’!

-क्या होर्डिगं और पोस्टरों में चिपके रहने के लिए ही पिछड़ा वर्ग, किसान मोर्चा, अल्पसंख्यक मोर्चा, एससी वर्ग मोर्चा, युवा मोर्चा अध्यक्ष बनाए गए? नाम तो इन लोगों को मोर्चा अध्यक्ष, लेकिन लग गया मुर्चा

-जब किसी पार्टी का मोर्चा ही कमजोर होगा, तो वह पार्टी भी कमजोर होगी, क्या इन्हीं असफल मोर्चाओं के अध्यक्षों की बदौलत भाजपा 2027 फतह करेगी?

-जिस वर्ग के अध्यक्ष बनाए गए, उसी वर्ग में मोर्चाओं के अध्यक्षों की पकड़ ढीली, इनका न तो कोई काम दिख रहा और न यह आवष्कता पड़ने में पीड़ित के लिए खड़े रहते

-इन कंमाडरों का चुनाव में भी कोई धमाल नहीं दिखता, सिर्फ पद लेकर घूम रहें, जनता इन्हें कागजी शेर के नाम से बुलाती

-खाद की कालाबाजारी होती रही, किसान एक बोरी यूरिया के लिए रोता रहा, धान का घोटाला हो गया, फिर भी किसान मोर्चा कुछ नहीं कर पाया, जो अध्यक्ष किसानों को एक बोरी यूरिया न दिला सके, उसे इस्तीफा दे देना चाहिए

-पिछड़ा वर्ग, एससी वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों का उत्पीड़न और अत्याचार होता रहा, लेकिन मोर्चाओं के अध्यक्ष लक्जरी वाहनों से घूमते रहें, अपने वर्गो के साथ हो रहे अन्याय के विरोध में आवाज तक नहीं उठाया, न्याय दिलाना तो दूर की बात

-एक भी मोर्चा का अध्यक्ष अपने वर्ग की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा, टारेगेट पूरा करने में सभी वर्गो के अध्यक्ष विफल साबित हो रहे

-अगर जिले में पार्टी को 2027 फतह करना है, तो सबसे पहले सभी वर्गो के अध्यक्षों के कामकाज की समीक्षा करनी होगी और कमजोर एवं असफल अध्यक्षों के स्थान पर काम करने वाले कार्यकर्त्ताओं को कमान संभालना होगा

-एक वर्ग के ऐसे भी अध्यक्ष हैं, जो विधायकी का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहें, जो अध्यक्ष अपनी जिम्मेदारी न संभाल पाया हो, और जनता की अपेक्षाओं पर खरा न उतरा हो, वह जब क्षेत्र में वोट मांगने जाएगें, तो जनता क्या ऐसे लोगों को वोट देना पसंद करेगी?

बस्ती। जिस मकसद से भाजपा ने पिछड़ा वर्ग, किसान मोर्चा, अल्पसंख्यक मोर्चा, एससी वर्ग मोर्चा, युवा मोर्चा सहित अन्य मोर्चा के अध्यक्ष बनाए, वह मकसद पूरा होता नहीं दिख रहा है। न तो पार्टी मजबूत हो रही है, और न पार्टी के साथ वर्ग के लोग ही जुड़ रहे है। हालत यह हो गई कि अब तो पार्टी के लोग मोर्चा अध्यक्ष के काम और उन्हें तलाष कर रहे है। कहना गलत नहीं होगा कि एक भी मोर्चा के अध्यक्ष को पूरी तरह सफल नहीं कहा जा सकता। किसी ने अपने काम को ईमानदारी के साथ पूरा नहीं किया, अगर किए होते तो किसानों को एक बोरी यूरिया के लिए रोना न पड़ता, जिले में करोड़ों रुपये का धान और खाद का घोटाला हो गया, फिर भी किसान मोर्चा के अध्यक्ष खामोश रहें, खाद दिलाना तो दूर की बात किसानों की आवाज तक नहीं उठाया, ऐसे में सवाल उठ रहा है, कि किसान क्यों भाजपा से जुड़े और क्यों उसे वोट दें? असफल मोर्चा के अध्यक्ष को नैतिकता और पार्टी हित में जितना जल्दी हो सके इस्तीफा दे देने में ही पार्टी की भलाई है। किसान संगठनों के लोग तो सामने आ भी गए, लेकिन भाजपा किसान मोर्चा सामने तक नहीं आया। सवाल उठ रहा है, कि क्या होर्डिगं और पोस्टरों में चिपके रहने के लिए ही पिछड़ा वर्ग, किसान मोर्चा, अल्पसंख्यक मोर्चा, एससी वर्ग मोर्चा, युवा मोर्चा अध्यक्ष बनाए गए? नाम तो इन लोगों का मोर्चा अध्यक्ष, लेकिन ऐसा लगता है, कि मुर्चा लग गया है। जब किसी पार्टी का मोर्चा ही कमजोर होगा, तो वह पार्टी भी कमजोर होगी।

जनता भाजपा के नेताओं से सवाल कर रही है, कि क्या इन्हीं असफल मोर्चाओं के अध्यक्षों की बदौलत 2027 फतह करने जा रहें हैं? अगर जिले में पार्टी को 2027 फतह करना है, तो सबसे पहले सभी वर्गो के अध्यक्षों के कामकाज की समीक्षा करनी होगी और कमजोर एवं असफल अध्यक्षों के स्थान पर काम करने वाले कार्यकर्त्ताओं को कमान सौंपना होगा। क्यों कि जिस वर्ग के अध्यक्ष बनाए गए, उसी वर्ग में अध्यक्षों की पकड़ ढीली, इनका न तो कोई काम दिख रहा और न यह आवष्कता पड़ने में पीड़ित के लिए खड़े ही रहते है। इन कंमाडरों का चुनाव में भी कोई धमाल नहीं दिखता, सिर्फ पद लेकर घूम रहें, जनता इन्हें कागजी षेर के नाम से बुलाती है। जिस मोर्चा अध्यक्ष के राज में खाद की कालाबाजारी होती रही, किसान एक बोरी यूरिया के लिए रोता रहा, धान का घोटाला हो गया, फिर भी किसान मोर्चा कुछ नहीं कर पाया, जो अध्यक्ष किसानों को एक बोरी यूरिया न दिला सके, वह अध्यक्ष किस काम का। पूरे जिले में कहीं पिछड़ा वर्ग, तो कहीं एससी वर्ग तो कहीं अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों का उत्पीड़न और अत्याचार हो रहा, लेकिन मोर्चाओं के अध्यक्ष लक्जरी वाहनों से घूम रहें, अपने वर्गो के साथ हो रहे अन्याय के विरोध में आवाज तक नहीं उठाया, न्याय दिलाना तो दूर की बात है। एक भी मोर्चा का अध्यक्ष अपने वर्ग की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा, लक्ष्य पूरा करने में सभी वर्गो के अध्यक्ष विफल साबित हो रहे है। पार्टी और ओबीसी के लोगों को जिस अध्यक्ष से सबसे अधिक उम्मीद थी, वह भी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे। रुधौली के सफल कार्यक्रम को अगर छोड़ दिया जाए तो इनके खाते में और कोई ऐसी उपलब्धि नहीं हैं, जिससे पार्टी ओर ओबीसी वर्ग को लाभ पहुंचा हो। रही बात अल्पसंख्यक और एससी वर्ग के अध्यक्षों की तो इनकी उपलब्धि षायद उसे भी मालूम नहीं होगा, जिसने इन्हें अध्यक्ष बनाया। अब आ जाइए, भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष की तो यह भ्रष्टाचार के खिलाफ साक्ष्य के साथ आवाज तो उठाते हैं, लेकिन पार्टी के जिम्मेदारों का साथ न मिलने के कारण, इनकी आवाज ही दबकर रह जा रही है। यह आठ माह से अधिकारियों से चिल्ला रहे हैं, कि नूर अस्पताल के अनियमित कार्यो की जांच की जाए और अस्पताल का लाइसेंस निरस्त किया जाए, इसके लिए इन्होंने फर्जी फिजिसीएन इम्तियाज का सबूत भी दिया, लेकिन आज तक कार्रवाई नहीं हुई, ऐसा लगता है, कि मानो पार्टी वाले ही नहीं चाहते कि अमित गुप्त कार्रवाई करवाकर हीरो बन जाए। एक वर्ग के ऐसे भी अध्यक्ष हैं, जो विधायकी का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहें है। सवाल उठ रहा है, कि जो अध्यक्ष अपनी जिम्मेदारी न संभाल पाया हो, और जनता की अपेक्षाओं पर खरा न उतरा हो, ऐसे में अगर वह क्षेत्र में वोट मांगने जाएगें, तो जनता क्या ऐसे लोगों को वोट देना पसंद करेगी?

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