‘इज्जत’ घर होता ‘था’, ‘इज्जत’ न ‘जाती’

‘इज्जत’ घर होता ‘था’, ‘इज्जत’ न ‘जाती’

‘इज्जत’ घर होता ‘था’, ‘इज्जत’ न ‘जाती’

-लड़की को बहलाफुसला कर उस समय लड़का भगा ले गया जब लड़की रात साढ़े 11 बजे खुले में शौच को जाती

-शौचालय पर अरबों खर्च करने के बाद भी सरकार एक लड़की और उसके परिवार की इज्जत नहीं बचा सकी

-अभी तक तो खुले में शौच जाने वाली महिलाओं और लड़कियों के साथ अप्रिय घटनाएं होती रही, लेकिन पहली बार शौच को गई लड़की को कोई बहला फुसलाकर ले गया

बस्ती। सुनकर भी हैरानी होती है, कि सरकार ने अरबों रुपया तो जिले में शौचालय के नाम पर तो खर्चा कर दिया, जिला ओडीएफ भी घोषित हो गया, उाके बाद भी लोग खुले में शौच जाने को मजबूर है। इससे पता चलता है, कि शौचालय का अधिकांश पैसा प्रधान और सचिव ने मिलकर खा लिया, कहना गलत नहीं होगा कि जिले में शौचालय के नाम पर 95 फीसद प्रधान और सचिव करोड़पति हो गए। एक-एक सचिवों ने 70-70 लाख का गबन प्रधान के साथ मिलकर किया। सवाल उठ रहा है, कि कैसे जिले के अधिकारियों ने जिले को ओडीएफ घोषित कर दिया, जबकि आज भी अनेक महिलाओं और लड़कियों की इज्जत इस लिए सुरक्षित नहीं हैं, क्यों कि इज्जत घर नहीं बना, बना तो कागजों में बना, जाहिर सी बात हैं, जब कागजों में इज्जत घर बनेगा तो किसी परिवार तो इज्जत जाएगी ही।

अगर किसी परिवार की इज्जत इस लिए जाती है, कि उसके पास शौचालय नहीं था, सवाल उठ रहा है, कि जब लोग लाखों रुपया मकान निर्माण में लगा सकते हैं, तो दस बीस हजार खर्च करके शौचालय का निर्माण क्यों नहीं कराते? क्यों सरकार के भरोसे रहते है? रही बात  गांव के प्रधान की तो जब उसे ही अपने गांव की महिलाओं और लड़कियों की इज्जत का ख्याल नहीं है, तो सचिव क्यों ख्याल करे? अधिकांश प्रधानों को गांव की महिलाओं और लड़कियों की इज्जत जाने के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। सरकार ने तो शौचालय के लिए खजाना खोल रखा है, पैसा भी गांव में जाता है, लेकिन प्रधान और सचिव मिलकर आधे से अधिक बंदरबांट कर लेते है। अगर बंदरबांट न करते तो दुबौलिया थाना क्षेत्र की एक लड़की को उस समय भगाकर नहीं ले जाते, जब वह रात में शौच करने को गई थी। सवाल उस परिवार पर भी उठ रहा हैं, जिस परिवार की लड़की इज्जत चली गई, क्यों परिवार पे रात 11.30 बजे अकेली लड़की को खुले में शौच को जाने दिया? क्यों नहीं साथ में किसी महिला को इतनी रात में भेजा। बहरहाल, पुलिस ने इस मामले में रंजीत पुत्र रामू प्रजापति सा0 मसहा, सन्तोष पुत्र शिवकुमार चौधरी भिखरिया थाना दुबौलिया एवं बुद्धेस पांडे पुत्र अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। एक बार मीडिया फिर उन संपन्न लोगों को सलाह दे रही है, कि मकान तो अवष्य बनाइए लेकिन शौचालय बनान मत भूलिए,शौचालय के लिए सरकार और प्रधान के भरोसे मत रहिए, नहीं तो किसी दिन इज्जत चली जाएगी। उन प्रधानों से भी मीडिया अपील कर रही है, जो शौचालय का पैसा सचिव के साथ मिलकर खा जाते है। उस व्यक्ति को प्रधान बनने और कहलाने का कोई हक नहीं जो पैसे के लिए अपने गांव की महिलाओं और लड़कियों की इज्जत को दांव में लगा देते है। प्रधानजी गांव में अगर सिर उठाकर चलना है, तो शौचालय का पैसा मत खाइए। मनरेगा और निधि का पैसा चाहें जितना खाइए, लेकिन शौचालय का पैसा मत खाइए, क्यों कि इसमें गरीबों की इज्जत छिपी हुई है।

Comments

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *