है’, कोई ‘शुरमा’ जो ‘खाद’ के ‘चोरों’ को ‘जेल’ की ‘हवा’ खिला ‘सके’, हो ‘तो’ सामने ‘आए’!

है’, कोई ‘शुरमा’ जो ‘खाद’ के ‘चोरों’ को ‘जेल’ की ‘हवा’ खिला ‘सके’, हो ‘तो’ सामने ‘आए’!

है’, कोई ‘शुरमा’ जो ‘खाद’ के ‘चोरों’ को ‘जेल’ की ‘हवा’ खिला ‘सके’, हो ‘तो’ सामने ‘आए’!

-कहने को किसानों के तो सब हितैशी, मगर एक बोरी खाद नहीं दिला पा रहें, यह है, जिले के नेताओं और प्रशासन के अधिकारियों का सच

-किसानों के नाम और उनके वोटों पर राज करने वाले जिले के जनप्रतिनिधियों में भी इतना दमखम नहीं जो किसानों को खाद दिला सके

-जनप्रतिनिधि जब किसानों को खाद नहीं दिला सकते तो वह कालाबाजारी कैसे रोकेगें, अब तो यूरिया के बाद डीएपी का संकट गहरा गया

-जिले में खुले आम जिला कृषि अधिकारी, एआर और पीसीएफ के डीएस खाद पर डकैती डाल रहे हैं, लेकिन इन्ीें रोकने वाला कोई

-नए डीएम से किसानों को जो उम्मीद बंधी थी, वह भी पूरा नहीं हो पा रही, लिखा-पढ़ी तो बहुत हो रही है, चेतावनी भी दी जा रही है, लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही, जिसके चलते खाद की चोरी करने वालों का हौसला बुंलद

बस्ती। जिले के किसानों को नवागत डीएम और जनप्रतिनिधियों से जो उम्मीदें थी, वह रबी सीजन में भी पूरी नहीं हो पा रही। किसानों की माने तो न तो खाद किसानों को मिल रहा है, और न खाद की चोरी ही रुक रही है। जिले के हजारों किसान यह सवाल कर रहे हैं, कि क्या खाद की चोरी करने वाले या कराने वाले प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से इतना मजबूत हैं, कि वह जो चाह रहें हैं, वह कर ले रहें हैं? एक तरह से खाद के चोरों ने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों दोनों को खुली चुनौती है, कि रोक सको तो रोक कर दिखाओ।  

का करिहैं विधाता हमरो बुझाता। कहने को किसानों के तो सब हितैशी हैं, मगर एक बोरी खाद नहीं दिला पा रहें, यह है, जिले के नेताओं और प्रषासन के अधिकारियों का सच। किसानों के नाम और उनके वोटों पर राज करने वाले जिले के जनप्रतिनिधियों में भी इतना दमखम नहीं जो किसानों को खाद दिला सके। जनप्रतिनिधि जब किसानों को खाद नहीं दिला सकते तो वह कालाबाजारी कैसे रोकेगें? अब तो यूरिया के बाद डीएपी का संकट गहरा गया है। किसानों का कहना है, कि जिले में खुले आम जिला कृषि अधिकारी, एआर और पीसीएफ के डीएस खाद पर डकैती डलवा रहे हैं, लेकिन इन्हें रोकने वाला कोई नहीं। नए डीएम तो लिखा-पढ़ी तो बहुत हो कर रही है, चेतावनी भी दे रही है, लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही, जिसके चलते खाद की चोरी करने वालों का हौसला बुंलद है।  

भाकियू भानु गुट के मंडल प्रवक्ता चंद्रेश प्रताप सिंह का कहना है, कि यूरिया के बाद अब डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) की मारामारी। नेताओं की चुप्पी-गुप्पी के कारण किसानों को खरीफ और रबी दोनों सीजन में आखिर क्यों खून के आसूं बहाने पड़ रहें हैं? खरीफ में यूरिया ने रुलाया और रबी की बुआई में डीएपी रुला रही है, क्या किसानों की किस्मत में रोना ही लिखा है? सवाल करते हैं, कि आखिर क्यों नहीं खाद की कालाबाजारी कराने वाले जिला कृषि अधिकारी, एआर और पीसीएफ के डीएस के खिलाफ कार्रवाई हो रही है? क्यों इन तीनों लुटेरों को खुला छोड़ दिया गया? क्यों नहीं इन तीनों अधिकारियों पर लगाम लगाया जा रहा है? कहते हैं, कि अगर इन्हीं तीनों अधिकारियों को प्रषासन काबू कर ले तो जिले का एक किसान खाद के लिए खून का आसूं नहीं रोएगा। कहते हैं, गेहूं के बीज का संकट भी किसान झेल रहा है, प्राइवेट दुकानों पर छापा पड़ रहा है, ब्लाक के कृषि गोदम प्रभारी खुले आम 936 रुपए की जगह 1050 रुपए प्रति बोरी गेहूं का बीज बेच रहे हैं, और यह डकैती जिला कृषि अधिकारी एवं जिला कृषि रक्षा अधिकारी के बगल बने बीज वितरण केंद्र से शुरु हो कर हर ब्लाक तक डाली जा रही है। कहते हैं, कि डीएम और कमिष्नर को इस की जांच उन 20 किसानों से करानी चाहिए, जिन्होंने कृषि बीज वितरण गोदाम से बीज खरीदा। डीएपी और यूरिया की किल्लत पर वर्तमान सांसद व निवर्तमान सांसद दोनों चुप्पी गुप्पी साधे हुए हैं, निवर्तमान सांसद ने तो डीएम का औपचारिक रुप से पत्र भी लिखा, लेकिन वर्तमान सांसद तो ऐसे चुप है, मानो उन्हें किसानों की समस्या से कोई सरोकार नही। आलम यह है कि विगत वर्ष से अधिक बीज वितरण हो गया लेकिन समस्या जस की तस बना हुआ है। जबकि विगत वर्ष जितना बीज आया था उतना वितरण करने के बाद भी बच गया था, खरीफ की बुआई में यूरिया विगत वर्ष से दुगुना से अधिक आया उसके बाद भी किसानों को रोना पड़ा। अब डीएपी के लिए मारामारी है, कहते हैं, कि क्या मोदीजी का विकसित भारत व योगीजी का विकसित उत्तर प्रदेश बनाने का सपना किसानों की दुर्दशा करने से साकार होगा? नेताओं की चुप्पी और अधिकारियों की उदासीनता से किसान रो रहा। कहते हैं, कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में अगर किसानों को खाद और बीज के लिए रोना पड़े तो फिर ऐसे देष का भगवान ही मालिक। जो लोग यह कहते हैं, कि भारत की आत्मा गांव में बसती हैं, उन्हें गांव में आकर अवष्य यह देखना चाहिए कि जब भारत की आत्मा गांव में बसती है, तो फिर गांव क्यों विराम और उजड़ रहें? क्यों गांव का किसान खाद और बीज के लिए रो रहा?

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