डीएम साहब, मनोज प्रकाश एसडीएम बनने लायक नहीं!

डीएम साहब, मनोज प्रकाश एसडीएम बनने लायक नहीं!

डीएम साहब, मनोज प्रकाश एसडीएम बनने लायक नहीं!

-कहा कि साहब यूंही नहीं वकील साहब ने एसडीएम को थप्पड़ मारा था, साहब यह कोर्ट में फैसले की बोली लगाते

-कहा कि एसडीएम साहब पांच-पांच सौ रुपये पकड़ते हैं, अपर उपजिलाधिकारी रहते डीएम के सामने एसडीएम पर 40 हजार लेने का आरोप लगाया, जिसका वीडियो भी हाल में ही में वायरल हो चुका

-एसडीएम जैसे अन्य दंडाधिकारी को थप्पड़ कांड से बचना हैं, तो उन्हें कम से कम चेंबर और कोर्ट में घूस लेने या बोली लगाने से बचना होगा,

-अगर घूस लेना बहुत ही जरुरी है, तो आवास पर लेना चाहिए, कम से कम वहां पर थप्पड़ खाने के चांसेज तो नही रहेगें

बस्ती। डीएम के जनता दरबार में एसडीएम हर्रैया से पीड़ित एक फरियादी ने डीएम से सीधे कहा कि साहब मनोज प्रकाश हर्रैया के एसडीएम बनने लायक नहीं है। कहा कि वकील साहब ने यूंही एसडीएम साहब को थप्पड़ नहीं मारा था। कहा कि खुले आम कोर्ट में यह बोली लगाते है। पांच-पांच सौ रुपया पकड़ते है। कहा कि इनके भ्रष्टाचार के चलते पूरा तहसील भ्रष्टाचार करने लगा, तहसील के सारे लेखपाल इन्हीं के नक्षेकदम पर चल रहे है। आज जो लेखपाल एसडीएम के समर्थन में धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, वे सभी भ्रष्टाचार में डूबे हुए है। यह लोग इस लिए एसडीएम के पक्ष में सामने आएं, ताकि बाद में जमकर भ्रष्टाचार किया जा सके। कहा कि इससे पहले के डीएम पिं्रयका निरंजन के जनता दरबार में जब यह अपर उपजिलाधिकारी थे, तो डीएम के सामने एक फरियादी ने कहा कि साहब इन्होंने हमसे 40 हजार घूस लिया, और काम भी नहीं किया। थप्पड़ कांड के बाद वीडियो वायरल हुआ।

जिस एसडीएम पर कोर्ट में ही फैसले के नाम पर बोली लगाने का आरोप लग रहा हो, उस एसडीएम पर जनता भरोसे करे तो कैसे करें? कोई डीएम के नाम पर कमीशन मांगने का आरोप लगा रहा है, तो कोई एसडीएम पर न्याय बेचने के नाम पर बोली लगाने का आरोप लगा रहा है। इसी लिए जनता बार-बार कह रही है, कि योगी के अधिकारी बेलमाम हो गएं है। इन्हें किसी का डर नहीं रह गया। हालांकि पूर्व सांसद स्पष्ट कर चुके हैं, कि अधिकारी इस लिए बेलगाम हो गए हैं, क्यों कि जिले के एमपी, एमएलए और एमएलसी अक्षम है। अगर यह योगीजी तक बात पहुंचाते तो अधिकारी बेलगाम न होते। सवाल उठ रहा है, कि किसे सच माना जाए जनता को या नेता को। कोर्ट में न्याय की बोली लगाने का कार्य तो हर्रैया सहित पूरे जनपद के चकबंदी न्यायालयों में हो रहा है। लेकिन अब तो यह रोग तहसीलों में भी लगने लगा है। नायब तहसीलदार और तहसीलदार पर अगर न्याय बेचने का आरोप लगता है, तो बात समझ में आती है, लेकिन, अगर एसडीएम पर यही आरोप लगता है, तो जनता इसे नहीं समझ पा रही है। अगर, एसडीएम रैंक के दंडाधिकारी पर न्याय की बोली लगाने का आरोप लगता है, तो योगीजी को सोचना होगा, कि आखिर यह सब उनके राज क्या हो रहा? रही बात भाजपा के नेताओं की तो अगर इन्हें आपस में लड़ने से फुर्सत मिले तब तो यह सोचे कि यह उनके क्षेत्र और जिले में हो क्या रहा है? क्यों सरकार की छवि अधिकारी खराब कर रहे है? बहरहाल, अगर एसडीएम जैसे अन्य दंडाधिकारी थप्पड़ कांड से बचना चाहते हैं, तो उन्हें ईमानदारी दिखानी होगी, कम से कम चेंबर और कोर्ट में घूस लेने या बोली लगाने से बचना होगा, अगर घूस लेना बहुत ही जरुरी है, तो आवास पर लेना चाहिए, कम से कम वहां पर थप्पड़ खाने के चांसेज तो नहीं रहेगंे।

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