बस्ती स्वयं में आध्यात्म, साहित्य और प्रगति के विविध आयाम समेटे हुएःडा. वर्मा

बस्ती स्वयं में आध्यात्म, साहित्य और प्रगति के विविध आयाम समेटे हुएःडा. वर्मा

बस्ती स्वयं में आध्यात्म, साहित्य और प्रगति के विविध आयाम समेटे हुएःडा. वर्मा

-बस्ती जनपद के 160 वे स्थापना दिवस पर संगोष्ठी में विमर्श

बस्ती। मंगलवार को वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति द्वारा कलेक्टेªट परिसर में वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा के संयोजन में बस्ती जनपद का 160 वां स्थापना दिवस संगोष्ठी के साथ मनाया गया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ चिकित्सक, साहित्यकार डा. वी.के. वर्मा ने  कहा कि बस्ती स्वयं में आध्यात्म, साहित्य और प्रगति के विविध आयाम समेटे हुये है। सन् 1801 में बस्ती तहसील मुख्यालय बना और फिर 6 मई 1865 को जनपद मुख्यालय बनाया गया।  इसके बाद सन् 1988 में उत्तरी हिस्से को काटकर सिद्धार्थनगर जिला बनाया गया जिसे पहले डुमरियागंज नाम से जाना जाता था,  इस जिले में बांसी और नौगढ़ भी आते हैं, यहां कपिलवस्तु भी हैं, जहां बुद्ध ने अपने जीवन के शुरुआती समय व्यतीत किये थे, यहां से 10 किलोमीटर पूर्व लुंबनी में बुद्ध का जन्म हुआ था। कहा कि  बस्ती स्वयं में कई संस्कृतियों को समेटे हुये है। सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णदेव मिश्र, समिति के अध्यक्ष बी.एन. शुक्ल ने बस्ती के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला।  ने कहा कि कभी ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कहा था कि बस्ती को बस्ती कहूं तो काको कहूं उजाड़’ आज यही बस्ती निरन्तर विकास की ओर है। कहा कि बस्ती का इतिहास बहुत समृद्ध है और मखौड़ा, छावनी शहीद स्थली के साथ ही अनेक पौराणिक स्थल हैं जो इसकी पहचान है। कहा कि सन् 1997 में पूर्वी हिस्से को काटकर संतकबीरनगर जिला बनाया जिसे खलीलाबाद के नाम से भी जाना जाता है, यहां महात्मा कबीर ने प्राण त्यागे थे।  इसके बाद जुलाई 1997 में बस्ती मंडल मुख्यालय बना दिया गया।  फिलहाल इस मंडल में बस्ती, संतकबीरनगर और सिद्धार्थनगर जनपद आते हैं। जनपद निरन्तर प्रगति की ओर है। कार्यक्रम संयोजक वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि बस्ती का इतिहास जहां समृद्ध है वहीं वर्तमान प्रगति की ओर है। प्राचीन काल में बस्ती को भगवान राम के गुरु वशिष्ठ ऋषि के नाम पर वाशिष्ठी के नाम से जाना जाता रहा।  कहा जाता है कि उनका यहां आश्रम था, अंग्रेजों के जमाने में जब यह जिला बना तो निर्जन, वन और झाड़ियों से घिरा था, लोगों के प्रयास से यह धीरे-धीरे बसने योग्य बन गया। इस संगोष्ठी मंें डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ पं. बी.के. मिश्र, ओम प्रकाश धर द्विवेदी,  डा. वाहिद सिद्दीकी, डा. अफजल हुसेन अफजल, राघवेन्द्र शुक्ल, डा. विकास भट्ट, अजीत श्रीवास्तव, सुशील सिंह पथिक, डा. राजेन्द्र सिंह राही, पं. सदानन्द शर्मा, जगदम्बा प्रसाद भावुक, आचार्य छोटेलाल वर्मा सुशील सिंह पथिक, बालकृष्ण चौधरी एडवोकेट आदि ने बस्ती के इतिहास पर रोशनी डाली। कार्यक्रम में मुख्य रूप से लालजी पाण्डेय, कृष्णचन्द्र पाण्डेय, दीनानाथ यादव, सामईन फारूकी, नेबूलाल चौधरी, श्रीकान्त तिवारी, रामयज्ञ मिश्र, गणेश प्रसाद, राजेन्द्र प्रसाद बरनवाल, प्रदीप श्रीवास्तव एडवोकेट के साथ ही अनेक लोग उपस्थित रहे।

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