बेलवाडाड़ी’ की ‘घटना’ से ‘आहत’ हुए ‘चित्रगुप्त’ के ‘वंशज’

बेलवाडाड़ी’ की ‘घटना’ से ‘आहत’ हुए ‘चित्रगुप्त’ के ‘वंशज’

बेलवाडाड़ी’ की ‘घटना’ से ‘आहत’ हुए ‘चित्रगुप्त’ के ‘वंशज’

-गलती चाहे जिसकी हो, लेकिन पुलिस को इस घटना को गंभीरता लेना चाहिए, जिस तरह दोनों पक्षों की ओर से सोशल मीडिया पर एक दूसरे के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए, उसे देखते हुए पुलिस को इस मामले में काफी सावधानी बरतनी होगी

-पुलिस और प्रशासन की जरा सा भी असावधानी किसी अप्रिय घटना को अंजाम दे सकती

बस्ती। बेलवाडाड़ी की घटना से सबसे अधिक आहत चित्रगुप्त के वंशज हुएं है। कहा और माना जाता है, कि चित्रगुप्त के वंशज कभी भी हिंसा में विष्वास नहीं करते, इसी लिए इस वर्ग के लोगों को सबसे अधिक शिक्षित, मिलनसार और सरल माना जाता है। यही कारण है, कि जैसे ही घटना की जानकारी लोगों को चली किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था, कि सभ्रंात और शिक्षित कहे जाने वाले इस तरह की घटना को भी अंजाम दे सकते है। दोनों पक्षों की ओर से जो गंभीर आरोप लगाए गए, उसी को लेकर पुलिस प्रशासन को अत्यधिक सावधानी बरतनी पड़ेगी। पुलिस को इसे हल्के में नहीं लेना होगा। पुलिस की जरा सा भी असावधानी किसी अप्रिय घटना को अंजाम दे सकता है। यही बात सबसे अधिक दोनों पक्षों को समझनी और सोचनी होगी। यह भी सोचना होगा कि इस तरह की लड़ाई से किसी को भी फायदा होने वाला नहीं हैं, बल्कि नुकसान होने की संभावना सबसे अधिक बनी रहती है, जनहानि तक की संभावना रहती। मोहल्ले में भाईचारा और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन को विशेष ध्यान रखना होगा। मीडिया दोनों पक्षों से समझदारी से काम लेने की अपील कर रही है। जिस तरह जान लेवा हमला हुआ है, उससे किसी की जान भी जा सकती थी, मोहल्ले वालों को भी मेल मिलाप करने के लिए पहल करना होगा। क्यों कि इस घटना के बाद बदनामी तो बेलवाडाड़ी के लोगों की ही हुई है। नुकसान भले ही चाहेें दोनों पक्षों का हुआ हो लेकिन माहौल तो मोहल्ले का ही खराब हुआ। आवष्यकता और समझदारी तो इसी में हैं, कि मोहल्ले का माहौल पहले जैसा भाईचारा और खुशनुमा हो। पुलिस को इस मामले में मोहल्ले में जाकर पीस कमेटी की बैठक करनी चाहिए, ताकि लोग शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत कर सके, दहशत के माहौल को समाप्त करना होगा। चित्रगुप्त कमेटी को भी इस मामले में अहम भूमिका निभानी होगी। किसी तरह मामले को शांत करना होगा, दोनों पक्षों को सोशल मीडिया पर बयानबाजी करने से बचना होगा। सबसे अधिक आवष्यकता पुलिस को इस मामले में पारदर्शिता लाने की है। किसी पक्ष को यह नहीं लगना चाहिए कि दूसरा पक्ष मजबूत हैं, इस लिए उसकी नहीं सुनी गई। पुलिस को दोनों पक्षों को सुनकर कोई कार्रवाई करनी चाहिए। वैसे भी पुलिस को जब भी इस तरह की घटनाओं का सामना करना पड़ता है, तो मामले को शांत करने के लिए दोनों पक्षों का मुकदमा लिख देती, चूंकि अब क्रास एफआईआर की प्रक्रिया जटिल और एक तरह से समाप्त हो गई हैं, इस लिए पुलिस चाहकर भी क्रास एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती।

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