भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने को मिली मौत?

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने को मिली मौत?

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने को मिली मौत?


योगीजी बताइए क्या आप के राज में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को मौत की सजा मिलती?

-मारने आए थे पिता को मार दिया 16 साल के बच्चे को पिता और पुत्र की कद काठी एक जैसी होने और  अंधेरे के चलते पुत्र अशोक कुमार यादव के गर्दन में सटाकर मार दी गोली

-हत्या का कारण प्रधान और सचिव के भ्रष्टाचार की शिकायत डीएम और लोकायुक्त से करने का बना

-मृतक अशोक कुमार यादव के पिता संतोष कुमार यादव चिल्लाते रह गए कि प्रधान राम उजागिर और ग्राम विकास अधिकारी विनय कुमार शुक्ल हम परिवार की जान लेना चाह रहे, लेकिन किसी ने नहीं सुनी

-16 जून 25 को एसपी, प्रमुख सचिव गृह एवं गोपन, अपर पुलिस महानिदेशक एवं पुलिस उप महानिरीक्षक को पंजीकृत पत्र के जरिए लिखा कि अगर उनके और उनके परिवार के साथ कोई अप्रिय घटना घटित होती है, उसका सारी जिम्मेदारी प्रधान और सचिव की होगी

-परिवार के सुरक्षा की मांग आज से 17-18 दिन पहले ही शिकायतकर्त्ता संतोष कुमार यादव ने मांगी थी, लेकिन नहीं दी गई

-उन नेताओं को सुरक्षा मिल जाती है, जिन्हें कोई खतरा नहीं रहता, लेकिन उन आम नागरिकों को नहीं मिलती जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते

-अगर शिकायतकर्त्ता की पुकार सुनकर प्रधान और सचिव के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गया होता तो आज एक नाबालिग की जान बच जाती, दुबौलिया थाने ने भी कोई कार्रवाई नहीं, यहां की पुलिस तब जागी जब हत्या जैसी घटना हो गई

-सवाल उठ रहा है, कि क्या योगीजी अपने उन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई करेंगे जिन्होंने शिकायतकर्त्ता की फरियाद को अनसुना कर दिया

-सवाल यह भी उठ रहा है, कि योगीजी की सरकार में क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की सजा मौत होती

बस्ती। 16 साल के बच्चे को खोने वाले विकास खंड दुबौलिया के ग्राम पंचायत पिठिया लस्करी निवासी संतोष कुमार यादव, योगीजी सहित पक्ष और विपक्ष के जनप्रतिनिधियों से सवाल करते हैं, कि क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की सजा मौत होती? कहा कि उनकी गलती सिर्फ इतनी भर थी, कि उन्होंने प्रधान राम उजागिर और ग्राम विकास अधिकारी विनय कुमार शुक्ल के भ्रष्टाचार की शिकायत डीएम और लोकायुक्त से की, कहते हैं, कि अगर उन्हें यह मालूम होता कि योगी के राज में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की सजा मौत होती है, तो वह कभी भी आवाज न उठाते, कम से कम उनका 16 साल का होनहार बच्चा तो जीवित रहता। भले ही चाहें गांव लुट जाए। अशोक कुमार यादव की हत्या पूरी व्यवस्था पर एक करारा चोट है, और उन जिम्मेदारों के लिए एक सवाल है, जो खुद तो भ्रष्टाचार नहीं मिटा सकते हैं, लेकिन अगर कोई आम व्यक्ति पहल करता है, तो उसे उसकी कीमत उसके बच्चे के जान के रुप में चुकानी पड़ती है। कहा जाता है, कि कि जब योगीजी और उनके अधिकारियों की फौज मिलकर एक व्यक्ति की जान को नहीं बचा सकते तो ऐसे फौज के होने से क्या फायदा? और ऐसे मुख्यमंत्री के होने से क्या फायदा जो अपनी जनता के जान की हिफाजत न कर सके। जिस तरह भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले को गोलियों से भून दिया जाता है, उससे लगता है, कि भाजपा की पूरी सरकार और योगीजी की टीम कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार के मामले में फेल है। निर्दोष बालक की हत्या ने पूरे जन मानस को झकझोर दिया है, और इस घटना के बाद शायद ही कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए कोई आगे आएगा, और यही भ्रष्टाचारी भी चाहते है।  दुबौलिया पुलिस चाहती तो इस हत्या को रोक सकती थी, पहली बार जब पहली जून 25 को भ्रष्टाचारियों ने भूसा रखने वाले गोदाम में आग लगाया था, उस समय भी जानबूझकर बिजली को गुल कर दिया गया, और जो हत्या की घटना पहली जुलाई को हुई, उस समय भी बिजली को गुल कर दिया गया, ताकि कोई पहचान न सके कि हत्या किसने किया। पुलिस अगर आग लगने वाली घटना को लेकर सक्रिय होती और दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर देती तो शायद हत्या नहीं होती। हत्या रोकने के लिए पुलिस के पास एक और मौका था, जब शिकायतकर्त्ता ने 16 जून को एसपी, प्रमुख सचिव गृह एवं गोपन, अपर पुलिस महानिदेशक एवं पुलिस उप महानिरीक्षक को पंजीकृत पत्र के जरिए लिखा था, और कार्रवाई करने के लिए थाने में पत्र आया। आला अधिकारियों को लिखे पत्र में बेटे को खोने वाले पिता ने स्पष्ट लिखा है कि अगर उनके और उनके परिवार के साथ कोई अप्रिय घटना घटित होती है, उसकी सारी जिम्मेदारी प्रधान और सचिव की होगी, क्यों कि यह लोग कई दिनों से जान से मारने का मौका तलाश रहे हैं, तभी से मैं और मेरा परिवार दहशत में जी रहा है। ऐसे में परिवार की सुरक्षा की व्यवस्था की जाए, सुरक्षा की व्यवस्था तो नहीं की गई, अलबत्ता हत्या करने वालों को मौका अवष्य दिया गया। बताते हैं, कि अभी सचिव के निशाने पर बरदिया लोहार के शिकायतकर्त्ता सूरज सिंह और उनका परिवार, रामनगर के वीरेंद्र उपाध्याय और उनका परिवार एवं ग्राम पंचायत हेंगापुर के शिकायकर्त्ता मुंशीराम और उनका परिवार है। क्यों कि इन सभी के शिकासत पर संबधित ग्राम पंचायतों के प्रधानों और सभी गांवों के सचिव विनय कुमार शुक्ल के भ्रष्टाचार की जांच लोकायुक्त से की, और जिसकी जांच चल रही है। बरदिया लोहार में तो डीएम की जांच में प्रधान और सचिव दोनों दोषी पाए गए, नोटिस भी जारी हुआ। शिकायतकर्त्ताओं का कहना है, कि सचिव पिछले कई सालों से सारीे नियम कानून तोड़कर चारों ग्राम पंचायत में धन और बल के चलते बने रहकर लूटपाट कर रहे है। कहते हैं, कि प्रधान सचिव की आरती उतारते है। इन्होंने करीब चार से पांच करोड़ बनाया होगा। अगर यह निलंबित न होते तो इनका तबादला भी परसरामपुर न होते है। कहते हैं, कि जांच अधिकारियों को मैनेज करने इनके बाएं हाथ का खेल है। यह जिला विकास अधिकारी कार्यालय के सबसे अधिक चहेते और दुलारे ग्राम विकास अधिकारी माने जाते है। शिकायतकर्त्ता संतोष कुमार यादव के बेटे की जान लेने वाले को किसी न किसी रुप में या तो उन्हें या फिर उनके परिवार को खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा। तब उनकी हराम की कमाई गई दौलत भी काम न आएगी।

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