अगर बच्चों की जिंदगी प्यारी तो, उनकी इच्छानुसार शादी करिए

अगर बच्चों की जिंदगी प्यारी तो, उनकी इच्छानुसार शादी करिए

अगर बच्चों की जिंदगी प्यारी तो, उनकी इच्छानुसार शादी करिए

-जहां लड़का और लड़की चाहे उनकी शादी वहीं करिए, जबरदस्ती मत करिए, नहीं तो पछताना पड़ेगा

-जबरदस्ती करके माता-पिता एक तरह किसी अनहोनी को दावत दे रहे हैं, यह सोचकर जबरदस्ती विवाह मत करिए कि शादी के बाद सबकुछ ठीक हो जाएगा

-ठीक होने के बजाए और खराब हो जाता, समझौता करने का समय लड़का और लड़की का नहीं रहा, बल्कि माता-पिता का रहा

-हाल ही कुछ घटनाओं को देख लोगों की समझ में ही नहीं आ रहा है कि लड़कों को शादी की बधाई दें या सतर्क रहने की सलाह

-अगर माता-पिता ने समझदारी से काम नहीं लिया बच्चों से हाथ भी धोना पड़ सकता

बस्ती। समय के साथ लड़का और लड़की के माता-पिता को बदलने का समय आ गया। अगर माता-पिता ने समझदारी से काम नहीं लिया और बच्चों पर विवाह के लिए अपनी मर्जी थोपा तो बच्चों के साथ कुछ भी हो सकता है, यहां तक कि बच्चों के हाथ भी धोना पड़ सकता है। इा लिए अगर बच्चों की जिंदगी प्यारी है, तो वे जहां चाहते हें, और जिसके साथ चाहते हैं, उनका विवाह कर दिजीए। इसी में परिवार और बच्चों की भलाई है। जिन माता-पिता ने बच्चों पर अपनी मर्जी को जबरदस्ती थोपा उन्हें पछताना पड़ रहा है। अब वह जमाना चला गया, जिसमें यह कहा जाता था, कि शादी के बाद सबकुछ ठीक हो जाएगा। ठीक होने के बजाए और खराब हो जाता, समझौता करने का समय लड़का और लड़की का नहीं रहा, बल्कि माता-पिता का है। हकीकत तो यह है, कि अब पहले जैसे बच्चे नहीं रहें, जो माता-पिता के लिए अपनी इच्छाओं को कुर्बान कर देते थे। इच्छा विरुद्व की गई या फिर कराई गई शादी का भविष्य कभी भी सुखमय नहीं रहा। बच्चे उस बात को नहीं भूल पाते, जिसमें उनकी शादी उनकी इच्छा के विरुद्व कराई गई। सीधी सी बात हैं, माता-पिता अगर अपने बच्चे को खुश देखना चाहते हैं, उनकी शादी वहीं करिए जहां वे चाहते है। जिस तरह महिलाएं अपने प्रेमी के लिए पतियों की हत्या कर रही है, उससे पता चलता है, कि आज के बच्चों को न तो मां-बाप और न समाज की कोई परवाह है। दिल सोचकर ही घबड़ा जाता है, कि कोई पत्नी अपने पति की हत्या भी कर सकती या फिर करवा सकती है। पहले मुस्कान के द्वारा सौरभ हत्याकांड और अब सोनम के द्वारा राजा हत्याकांड ने पूरे देश के पुरुष समाज को शोक की गहरी खाई में धकेल सा दिया है। अब तो लोगों को समझ में ही नहीं आ रहा है कि लड़कों को शादी की बधाई दें या सतर्क रहने की सलाह। हालिया के इन दोनों घटनाओं ने पूरे समाज को हिलाकर रख दिया है। यह घटनाएं केवल अपराध नहीं, समाज की बदलती मानसिकता और गिरते मूल्यों की चेतावनी हैं। जहां एक ओर हमें महिलाओं की सुरक्षा और स्वतंत्रता सुनिश्चित करनी चाहिए, वहीं दूसरी ओर पुरुषों के अधिकार और संरक्षण की भी उतनी ही जरूरत है। ऐसे अपराधों से निपटने के लिए न्याय व्यवस्था, सामाजिक जागरूकता और पारिवारिक संवाद को प्राथमिकता देनी चाहिए। अब वह जमाना चला गया, जब बच्चे मां-बाप की इज्जत के खातिर सिर झुका कर विवाह कर लेते थे। अब बुजुर्गो के जबान और अपनों से किए गए वादे का कोई मोल नहीं रह गया। समझ में नहीं आता कि कौन सही है, और कौन गलत? क्या बच्चे सही है, या माता-पिता गलत? इस सवाल का जबाव समाज को तलाशना होगा।

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