आरकेवीवाई का धन डकारने वाले सचिव क्यों चैन की नींद सो रहें?
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 27 May, 2025 20:51
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आरकेवीवाई का धन डकारने वाले सचिव क्यों चैन की नींद सो रहें?
-जिन भ्रष्ट प्रभारी सचिवों के खिलाफ विधिक से लेकर रिकवरी तक की कार्रवाई करनी चाहिए, उन्हें अधिकारी अभयदान दे रहें
-सच्चाई यही है, कि अगर एआर और डीआर भ्रष्ट सचिवों के खिलाफ कार्रवाई करते रहे तो न धान का घोटाला होगा और न कोई सचिव आरकेवीवाई का धन हड़प पाएगा
-बाकनर शोभनपार के प्रभारी सचिव टीडी प्रसाद ने आरकेवीवाई का पांच लाख वेतन में खारिज कर दिया, समिति की महिला अध्यक्ष ने एआर और डीआर को लिखकर दिया कि सचिव ने प्रस्ताव पर धोखे से हस्ताक्षर करवा लिया, पांच साल हो गए, न एफआईआर हुआ और न धन की रिकवरी ही हुई
-मुंडेरवा समिति के प्रभारी सचिव ने धान गबन का 43 लाख तो जमा कर दिया लेकिन आरकेवीवाई का पांच लाख डकार लिया, अगर एआर और डीआर आरकेवीवाई के मामले में कार्रवाई कर देते तो धान गबन नहीं होता
-जो प्रभारी सचिव धान/गेहूं का लाखों गबन कर रहा है, वही सचिव आरकेवीवीई का धन भी हड़प रहा, और जिम्मेदार कार्रवाई करने के बजाए बचाव में लगें
-जो डीसीबी ने खाद उठाने के लिए सचिवों को पैसा दिया उस पैसे को खाद और बीज का कारोबार न करके बकाए आरकेवीवाई में जमा कर रहें, बैंक को इसके प्रति सावधान हो जाना चाहिए
बस्ती। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि आरकेवीवाई का करोड़ों डकारने वाले समितियों के प्रभारी सचिवों के खिलाफ क्यों नहीं अभी तक एआर और डीआर की ओर से प्राथमिकी दर्ज करवाई गई? और क्यों नहीं धन की रिकवरी करवाई गई? कहा भी जाता है, जिस विभाग के अधिकारी ईमानदार नहीं होते उस विभाग का बाबू से लेकर चपरासी और सचिव तक भ्रष्टाचार में लिप्त रहते है। अधिकारी इस लिए कोई कार्रवाई नहीं करते क्यों कि वह भी भ्रष्टाचार की कमाई का हिस्सेदार जो होतें है। यह बात सौ फीसदी सही है, कि अगर एआर और डीआर ने अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी पूर्वक निभाया होता तो प्रभारी सचिव लोग मंडल में इतना बड़ा धान घोटाला न करते और न मंडल की पूरे प्रदेश
में बदनामी ही होती। बर्खास्त पीसीएफ के डीएस अमित कुमार चौधरी को एआर और डीआर ने नोट छापने वाली मशीन समझकर बचाते रहें, उनकी कमियों पर पर्दा डालते रहें। इसी लिए एआर और डीआर के खिलाफ भी कार्रवाई करने की मांग उठ रही है। इसी लिए कहा जा रहा है, कि दोनों के खिलाफ कार्रवाई के बिना धान घोटाला एपीसोड अधूरा रहेगा।
क्या एआर और डीआर यह बताएगें कि बाकनार षोभनपार के प्रभारी सचिव टीडी प्रसाद के द्वारा आरकेवीवाई का पांच लाख में से चार लाख क्यों वेतन में खारिज कर दिया गया और क्यों नहीं प्रभारी सचिव के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाया गया? अवशेष एक लाख का अता पता नहीं। जबकि वर्तमान एआर तत्कालीन एआर रहे। समिति की महिला अध्यक्ष के यह लिखकर देने के बाद कि सचिव ने प्रस्ताव पर उनसे धोखे से हस्ताक्षर करवा लिया, फिर भी कोई कार्रवाई क्यों नहीं एआर और डीआर ने इतने गंभीर मामले को संज्ञान में लेकर लिया? अब तो सचिव रिटायर हो चुके हैं, आखिर इस पांच लाख का जिम्मेदार कौन होगा? नियमानुसार धन की रिकवरी तो एआर और डीआर के वेतन से होनी चाहिए। क्यों कि इन्हीं दोनों की मिली भगत से आरकेवीवाई का पांच लाख डूब गया, सचिव को पेंशेन तो मिलता नहीं कि पेंशन से रिकवरी करवाई जा सकें। इसी तरह अगर मुंडेरवा समिति के प्रभारी सचिव के खिलाफ आरकेवीवाई का पांच लाख जमा न करने या डकारने के आरोप में विधिक कार्रवाई एआर कर देते तो इस समिति के प्रभारी सचिव 43 लाख के धान का घोटाला न करते, जेल जाने के डर से इन्होंने वह 43 लाख अपने जेब से जमा कर दिया किया, जिसका भुगतान इन्होंने किसानों को किया, अब यह भी सवाल उठ रहा है, कि आखिर 43 लाख आया कहां से आया? अगर इसकी आईटी से जांच हो जाए तो इनकी चढढी और बनियाईन दोनों उतर जाएगी, क्यों कि एक नंबर का 43 लाख का हिसाब किताब देना किसी भी समिति के प्रभारी सचिव के खिलाफ आसान नहीं होगा, भले ही चाहें इन्होंने अचल संपत्ति बेचकर जमा किया, लेकिन क्यों जमा किया, इसका जबाव इनके पास नहीं होगा? एआर और डीआर ने यह जरुरी नहीं समझा कि यह पूछ ले कि जब 43 लाख जमा कर सकते हो तो आरकेवीवाई का पांच लाख क्यों नहीं जमा कर रहे हो? मुंडेरवा से धन भी नहीं आया और कार्रवाई भी जीरो रहा। क्या इसी तरह आरकेवीवाई के धन की वापसी होगी? कहा भी जा रहा है, कि आखिर एआर और डीआर क्यों नहीं धान के गबन का पैसा जमा कराने जैसी कार्रवाई आरकेवीवाई का पैसा जमा करवाने में कर रहे है? अब सुनने में आ रहा है, कि डीसीबी ने जो समितियों को खाद और बीज का कारोबार करने के लिए ऋण दिया, उसका पैसा आरकेवीवाई में जमा किया जा रहा हैं, अगर इस मामले में डीसीबी प्रबंधन ने सजगता नहीं दिखाया तो आरकेवीवाई की तरह बैंक का करोड़ों फंस सकता है। आरकेवीवाई का कितना पैसा और किन-किन सचिवों पर बकाया है, इसकी जानकारी भी मांगने के बाद नहीं दी जा रही हैं, न जाने क्यों इसे इतना गोपनीय रखा जा रहा है, जबकि इसे सार्वजनिक करना चाहिए, सार्वजनिक होगा तो बदनामी होगी, और जब बदनामी होगी तो पैसा भी जमा होगा। यह उन सचिवों के लिए है, जिन्हें समाज और परिवार में अपनी इज्जत का ख्याल रहता है, उन सचिवों के लिए यह फारमूला नहीं हैं, जो लाखों का धान/गेंहू, आरकेवीवाई का गबन करके सीना चौड़ा करके चलते है। लगता ही नहीं कि इन लोगों ने गबन भी कभी किया होगा।
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