आखिर’ नेता ‘क्यों’ नहीं ‘दिपावली-होली’ की मिठाई लेकर ‘कार्यकर्त्ताओं’ के घर ‘जाते?
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 22 October, 2025 19:03
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‘आखिर’ नेता ‘क्यों’ नहीं ‘दिपावली-होली’ की मिठाई लेकर ‘कार्यकर्त्ताओं’ के घर ‘जाते?
ंबस्ती। दिपावली के अवसर पर सोशल मीडिया पर कार्यकर्त्ताओं और नेताओं को लेकर एक बहस छिड़ी हुई, सवाल किया जा रहा है, कि आखिर कार्यकर्त्ता ही क्यों दिपावली और होली की मिठाई का डिब्बा लेकर नेताओं के आवास पर बधाई देने जाता? क्यों नहीं नेता खाटी और छोटे कार्यकर्त्ताओं के घरों में मिठाई का डिब्बा लेकर बधाई देने जाते? नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि अनेक ऐसे कार्यकर्त्ता हैं, जिनके पास अपने बच्चों और परिवार को अच्छी मिठाई खिलाने के लिए पैसा नहीं होता, ऐसे में अगर कोई नेता, कार्यकर्त्ता के घर मिठाई का डिब्बा लेकर पहुंच जाए तो परिवार यह सोचकर खुश हो जाएगा कि चलो नेताजी के चलते बच्चों को मिठाई खाने को तो मिला। नेताओं के घरों में दिपावली और होली के अवसर पर इतने मिठाई के डिब्बे और उपहार आते हें, कि अगर नेता उन्हीं मिठाई के डिब्बों और उपहार को कार्यकर्त्ताओं के घर ले जाकर दे दें, तो उन्हें खरीदना नहीं पड़ेगा। दिपावली और होली ऐसा त्योहार होता है, जिसमें हर कोई मिठाई खाने और उपहार की अपेक्षा अपनों से बड़ों से करता। नेताओं के पास इतना अनापशनाप पैसा होता है, कि अगर उसमें से .000 फीसद भी पैसा कार्यकर्त्ताओं पर खर्च कर दे तो कार्यकर्त्ता हमेशा के लिए मुरीद हो जाएगा। मिठाई का डिब्बा या फिर उपहार पाकर दिपावली और होली में सबसे अधिक वह परिवार खुश होता है, जो सक्षम नहीं होता। मिठाई का डिब्बा और उपहार सबसे अधिक नेताओं और अधिकारियों के यहां जाता है। नेताओं के यहां तो अधिकारियों का डिब्बा और उपहार आता है, लेकिन बहुत कम ऐसे नेता होगें जो अधिकारियों को उपहार देते होगें, मिलकर या फिर फोन से शुभकामना और बधाई देकर का काम चला देते है। बड़ा सवाल यह उठ रहा है, कि कितने ऐसे सत्ता और विपक्ष के नेता होगें तो कार्यकर्त्ताओं के घरों में जाकर मिठाई का डिब्बा देकर गए होगें, यही नेता है, जब चुनाव आता है, तो नगें पैर भागे-भागे कार्यकर्त्ताओं के घरों में मदद के लिए चले जाते है। हाथ जोड़ते हैं, पैर तक पकड़ते हैं। इस स्थित का सामना उन नेताओं को करना पड़ता है, जो दिपावली और होली के अवसर पर भी कार्यकर्त्ताओं के घर नहीं जाते। कार्यकर्त्ताओं के घर मिठाई लेकर जाना तो दूर की बात, मोबाइल से भी बधाई, देना जरुरी नहीं समझतें, नेता उन बड़े और मालदार कार्यकर्त्ताओं के घर मिठाई लेकर जाना पसंद करते, जिनसे चुनाव में वोट और नोट दोनों मिलने की संभावना रहती है। अधिकांष नेता खाटी और छोटे कार्यकर्त्ताओं के घर जाना अपनी षान के खिलाफ समझते, इस लिए भी नहीं जाते, ताकि उन्हें हजार दो हजार की मदद न करनी पड़े, लेकिन जब चुनाव आता है, तो दौड़े-दौड़े कार्यकर्त्ताओं के घर चले जातें है। खाटी और वफादार कार्यकर्त्ता दूसरे के दरवाजे पर नहीं जाएगा, वह अपनों की प्रतीक्षा करेगा, बिडंबना यह हैं, कि अपने जातें नहीं, राजनीति बहुत क्रूर हो गई, इतनी क्रूर की गर्ज पर ही याद करते है। जब नेताओं को कार्यकर्त्ताओं की आवष्यकता पड़ती है, तो उन्हें कब्र से भी निकालने की सोचते, लेकिन जब कार्यकर्त्ताओं की जरुरत पड़ती तो नेता कमरे से बाहर ही नहीं निकलते, आज नेता कार्यकर्ताओं के घर नहीं जा रहा, कार्यकर्त्ता नेता की दरबारी करने पर मजबूर है। कहा जा रहा है, कि कार्यकर्त्ता जब नेता के घर खुद जाता है, तो नेताओं को कार्यकर्त्ताओं के घर जाने और उन्हें बधाई देने की क्या आवष्यकता? नेता के घर जाकर लोग मिल रहें, एक डिब्बा मिठाई ला रहें। पवन मिश्र कहते हैं, कि बहुत कम ऐसे कार्यकर्त्ता हैं, जो चंद रुपयों के लिए नेताओं के घर जाकर फोटो न खिंचवाते हों, कौन नहीं जानता कि नेताजी क्यों दीपावली के अवसर पर बड़े कार्यकर्त्ताओं से मुलाकात करने गए। मुकेश मिश्र लिखते हैं, कि पटवाजी हमारे क्षेत्र में घर-घर जाकर अपने छोटे भाई से मिठाई और शुभकामना भेजें। उमेष यादव लिखते हैं, कि कार्यकर्त्ताओं को पहले नेताओं को एहसास कराना होगा, तब जाकर नेता, कार्यकर्त्ताओं के घर मिठाई लेकर जाएगें, लेकिन जब कार्यकर्त्ता ही मिठाई का डिब्बा लेकर पहुंचा रहेगा तो नेता क्यों घर जाएगें? पत्रकार हरीश ओझा कहते हैं, कि मरे हुए लोगों की बात मत करें...। अनिल उपाध्याय लिखते हैं, कि भाईजी यहां जिसको आखों पर बिठाकर परिवार से उपर उठकर माना, वो फोन पर ही शुभकामना दे रहें हैं, घर पर आने की बात तो दूर है, इस लिए केवल मित्रों और परिवार को तव्वजो दो बस नेताओं की चमचागिरी बंद करो, मैं देख रहा हूं, सब मिठाई लेकर और अंगवस्त्र पहनाकर फोटो खिचवाकर फेस बुक पर लगा रहें। अगर यही दिपावली चुनाव के दौरान होती तो कार्यकर्त्ताओं के घरों पर नेताओं की लाइन लगी रहती। अगर नेताओं को कार्यकर्त्ता और उनके परिवार का आशीर्वाद लेना है, तो मिठाई का डिब्बा लेकर पहुंच जाइए, या फिर किसी अपनों के हाथों से पहंुचा दीजिए, कार्यकर्त्ताओं के बच्चे इंतजार कर रहे है।

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