आखिर कैसे इतनी निर्दयी हो सकती, डा. रेनू राय?

आखिर कैसे इतनी निर्दयी हो सकती, डा. रेनू राय?

आखिर कैसे इतनी निर्दयी हो सकती, डा. रेनू राय?

-जिस कोख में मरे हुए बच्चे की डिलीवरी कराने के लिए 35 हजार मांगा, वह कैली में निःशुल्क हो गया -पहले तो मरीज के पति को कुल सात हजार का खर्चा बताया गया, मगर जब एडमिट कर दिया तो कुल खर्चा 35 हजार बताया -2300 रुपया जांच के नाम पर जमा करवा लिया, जब मरीज ने कहा कि मैडम मैं बहुत गरीब हूं, इतना पैसा मेरे पास नहीं फिर भी डा. रेनू राय का दिल नहीं पिघला -तब मरीज के पति ने कहा कि मैडम मेरा जांच का 2300 रुपया वापस कर दीजिए, मैं सरकारी अस्पताल में डिलीवरी करवा लूंगा -मैडम ने न तो 2300 वापस किया और न ही जांच रिपोेर्ट ही दिया, कहा कि पीएमसी का नियम है, कि जो पैसा जमा हो जाता, उसे वापस नहीं किया जाता -जब पत्रकार राजकुमार पांडेय गए और उन्होंने भी पैसा वापस करने की बात कही तो वही दोहरा दिया, जो मरीज से कहा था -पीएमसी में वैसे भी जांच के नाम पर सबसे अधिक वसूली होती, और जांच रिपोर्ट भी नहीं दिया जाता -भारत कौटिल्य फाउंडेशन के अध्यक्ष राजेंद्रनाथ तिवारी ने इसकी शिकायत सीएम से करते हुए जांच कराने और डा. रेनू राय का लाइसेंस निरस्त करने की मांग की बस्ती। पीएमसी की डा. रेनू राय के व्यवहार को देखकर कोई यह नहीं कह सकता है, कि यह इतने बड़े नर्सिगं होम की महिला डाक्टर होगी। जो व्यवहार इन्होंने हरदी की मरीज सबिना और उसके पति मो. अशरफ के साथ किया वह किसी अमानवीय से कम नहीं था। जिन डाक्टर्स को मरीज भगवान का दर्जा देता है, अगर उसी मरीज के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाए तो इसे हम और आप क्या कहेंगे? पैसे के लिए डा. रेनू राय इस हद तक जा सकती है, अगर यह मरीज को पहले मालूम होता तो शायद वह कभी पीएमसी न जाता, मरीज तो अपने भगवान के पास इस आस को लेकर गया था, कि मैडम बड़े दिल के होने का परिचय देंगी। रेनू राय ने एक ऐसी गर्भवती महिला के साथ अमानवीय व्यवहार किया, जिसका बच्चा पेट में ही मर चुका था, और मेैडम यह अच्छी तरह जानती थी, कि पेट में बच्चा मरा हुआ हैं, ऐसे में कोई भी डाक्टर ऐसे मरीज के साथ संवेदनशीलता का परिचय देती हैं, लेकिन जिस तरह सौदेबाजी की गई, वह किसी अमानवीय व्यवहार से कम नहीं था। पीड़ित महिला का परिवार जिंदगी भर यह नहीं भूल पाएगा, कि एक महिला डाक्टर ने सिर्फ और सिर्फ पैसे के लिए उन लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार किया। सवाल उठ रहा हैं, कि क्या पैसा ही सबकुछ हैं, क्या खून चुसवा डाक्टर्स के पास मानवता नहीं होता। अगर यही व्यवहार कोई इनके साथ करें तो इन्हें कैसा लगेगा? मरीज के पति का कहना है, कि वह अपनी पत्नी को डा. रेनू राय के पास 17 जून 25 को डिलीवरी के लिए ले गया, कहा कि जब हमने मैडम से पूछा कि कुल कितना खर्चा आएगा, तो मैडम ने बताया कि सात हजार। हामी भरने के बाद पत्नी को एडमिट कर दिया, फीस 500 लेने के बाद मरीज को देखा। 800 की दवा भी दिया। फिर कहा कि जांच के लिए 2300 जमा कर दो, 2300 जमा भी कर दिया, कुछ देर बाद स्टाफ ने कहा कि 7500 रुपया और जमा करो। तब पति ने मैडम से कहा कि उसका जांच और अन्य के नाम पर पहले ही 3600 खर्चा हो चुका है, और अब आप 7500 रुपया और जमा करने को कह रही है। जब कि पहले ही आप ने कुल खर्चा 7000 बताया था। अगर मैं 7500 और जमा कर दूं तो कुल 11000 हो जाएगा। कहा कि मैडम मेरे पास इतना पैसा नहीं है। कहा कि मैडम आपने जितना बताया था, उसकी व्यवस्था करके आया हूं। तब मैडम ने कहा कि अभी और पैसे की व्यवस्था कर लो क्यों कि अभी तो दवा और बेड का भी पैसा देना पड़ेगा। जांच में और भी पैसा लग सकता है। आपरेशन भी करना पड़ सकता है, कुल 14000-15000 का खर्चा और आएगा। यानि कुल 35 हजार खर्च होगा। जब पति ने अपने लोगों और पत्रकार राजकुमार पांडेय से संपर्क किया और उन्हें पीएमसी में बुलाया और कहा कि पत्नी का पूरा जांच भी नहीं हुआ और 2300 भी जमा करवा लिया गया। पति ने पत्रकार से कहा कि मेरा पैसा वापस करवा दीजिए। जब पत्रकार ने मैडम से जांच के नाम पर लिए गए 2300 वापस करने को कहा तो कहने लगी कि हमारे यहां जो पैसा जमा हो जाता है, वह वापस नहीं होता। तब कहा कि कम से कम जांच रिपोर्ट तो दे दीजिए पर कहने लगी कि नहीं मिलेगा, जो करना हो कर लो। इसके बाद पत्रकार पति और पत्नी को लेकर कैली चला गया, जहां पर डा. वंदना ने नार्मल डिलीवरी कर दिया। एक भी रुपया डिलीवरी का नहीं लगा, यह है, सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के डाक्टरों के बीच का अंतर और व्यवस्था का सच। जो डिलीवरी डा. रेनू राय 35 हजार में करने वाली थी, वह डिलीवरी कैली अस्पताल में निःशुल्क हो गया। डा. रेनू राय ने ऐसी माता के प्रति कोई दया नहीं दिखाई, जिसका बच्चा कोख में ही मर गया था। क्या आप ऐसे डाक्टर को भगवान का दर्जा देगें?

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