आखिर ‘एआर’ के चलते ‘डीएम’ क्यों बार-बार ‘अपमानित’ हो ‘रहें’?

आखिर ‘एआर’ के चलते ‘डीएम’ क्यों बार-बार ‘अपमानित’ हो ‘रहें’?

आखिर ‘एआर’ के चलते ‘डीएम’ क्यों बार-बार ‘अपमानित’ हो ‘रहें’?

-कभी प्रभारी मंत्री तो कभी डिप्टी सीएम तो कभी दिशा की बैठक में एआर और सचिवों के भ्रष्टाचार के चलते डीएम को अपमानित होना पड़ रहा

-बैठकों में सीधे तौर पर डीएम को निशाना बनाया जा रहा है, और सवाल किया जा रहा है, कि डीएम साहब जब हमने खाद की कालाबाजारी के साक्ष्य दिए तो क्यों नहीं समित के सचिवों के खिलाफ कार्रवाई की गई

-अगर किसी डीएम को एआर और सचिवों के चलते भरी बैठक में अपमानित होना पड़े, और उसके बाद भी कोई कार्रवाई न हो तो सवाल तो डीएम पर भी उठेगें

-कहा भी जा रहा है, कि किसी भी डीएम को इतना सरल नहीं होना चाहिए कि पूरी व्यवस्था पगूं हो जाए, और भ्रष्टाचारी उसका लाभ उठाने लगें

-इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, कि बस्ती को सिद्वार्थनगर जनपद के जैसा डीएम चाहिए, जो भ्रष्टाचारियों को बंद कमरे में पिटे भी और उनके खिलाफ बर्खास्तगी जैसी कार्रवाई भी कराए

-इसके लिए जनता जिले के माननीयों को भी जिम्मेदार मानती है, आखिर उनका भी तो भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का दायित्व

बस्ती। जिले में पहली बार किसी डीएम को एआर और उनके भ्रष्ट सचिवों के चलते कभी प्रभारी मंत्री तो कभी डिप्टी सीएम तो कभी दिषा की बैठक में अपमानित होना पड़ रहा है।   अब तो बैठकों में सीधे तौर पर डीएम को निषाना बनाया जा रहा है, और सवाल किया जा रहा है, कि डीएम साहब जब हमने खाद की कालाबाजारी के साक्ष्य दिए तो क्यों नहीं समिति के सचिवों के खिलाफ कार्रवाई की गई? कहा भी जा रहा है, कि अगर किसी डीएम को एआर और सचिवों के चलते भरी बैठक में अपमानित होना पड़े, और उसके बाद भी कोई कार्रवाई न हो तो सवाल तो डीएम पर भी उठेगें? यह भी कहा जा रहा है, कि किसी भी डीएम को इतना सरल भी नहीं होना चाहिए कि पूरी व्यवस्था ही पगूं हो जाए, और जिले को भ्रष्टाचारी चलाने लगें। इसी लिए जिले की जनता बार-बार कह रही है, कि बस्ती को सिद्वार्थनगर जैसा डीएम चाहिए, जो भ्रष्टाचारियों को बंद कमरे में पिटे भी और उनके खिलाफ बर्खास्तगी जैसी कार्रवाई भी कराए। जनता इसके लिए जिले के माननीयों को भी जिम्मेदार मानती है, और कहती है, कि आखिर उनका भी तो भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करवाने का कोई दायित्व हैं, कि नहीं?

एक दिन पहले हुई दिशा की बैठक में जिस तरह डीएम को खाद की कालाबाजारी को लेकर एआर और सचिवों के चलते अपमानित होना पड़ा, उसे किसी भी दशा में अच्छा नहीं माना जा रहा है। मीडिया बार-बार यह कहती आ रही है, कि डीएम साहब एआर को संभालिए, नही ंतो जिला लुट लाएगा, लेकिन न जाने क्यों अनसुना कर दिया जाता रहा, धान घोटाले से ही डीएम को आगह किया जा रहा है, कि अगर नहीं संभाला तो खाद घोटाला हो जाएगा, और वही हुआ, जिसका डर था, जिन भ्रष्ट सचिवों ने धान और गेहूं में घोटाला किया, उन्हीं लोगों ने खाद का भी घोटाला किया, और अब धान के घोटाले करने की साजिश रची जा रही है, डीएम को आगाह करने के बाद भी एआर और पीसीएफ के डीएस ने भारी रकम लेकर एक-एक भ्रष्ट सचिवों को चार-चार सेंटर का प्रभार दे दिया। मीडिया और किसान चिल्लाते रह गए, लेकिन न तो डीएम ने और न ही एडीएम ने सुनी। क्यों नहीं सुनी यह सवाल बना हुआ है। सारे नियम कानून तोड़कर ऐसे सचिवों को समिति का नाम बदलकर धान का क्रय प्रभारी बना दिया गया, जिन्होंने 40-40 लाख के धान का गबन किया, बाद में यही लोग यूरिया का भी घोटाला किया। एक अधिकारी जो सारे नियम कानून तोड़कर गृह जनपद में दो-दो बार एआर बनकर आता है, अगर उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है, तो माना जाता है, कि घोटाले का पैसा हर जगह जाता है। किसान नेता दीवान चंद्र चौधरी ने जिस तरह दिशा की बैठक में एआर और सचिव को लेकर डीएम पर हमला बोला उसे इतिहास में लिखा जाएगा। इस तरह का आरोप सीधे तौर पर डीएम पर इससे पहले किसी ने भी नहीं लगाया था। हरीश सिंह भी बार-बार यूरिया की कालाबाजारी को लेकर डीएम पर निशाना साध रहे हैं, और पूछ रहे हैं, कि क्यों नहीं एक भी समिति के सचिव, एडीओ, एडीसीओ और एआर के खिलाफ कार्रवाई हुई? आजतक किसी ने इस बात का जबाव नहीं दिया कि नौ लाख बोरी यूरिया गई कहां? दीवान चंद्र चौधरी ने पूछा भी था, कि जब जिले को डेढ़ गुना यूरिया अधिक मिली तो किसान क्यों रोता रहा? कहा कि अगर यही रर्वैया एआर को लेकर डीएम का रहा तो रबी फसल में किसानों को एक बार फिर रोना पड़ेगा, तब फिर भाजपा विधायक अजय सिंह को किसानों से माफी मांगनी पड़ेगी।

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