33’ रुपये और ‘18’ घंटे, ‘प्रेसर’ के चलते ‘बीएलओ’ कर रहें ‘सुसाइड’?

33’ रुपये और ‘18’ घंटे, ‘प्रेसर’ के चलते ‘बीएलओ’ कर रहें ‘सुसाइड’?

33’ रुपये और ‘18’ घंटे, ‘प्रेसर’ के चलते ‘बीएलओ’ कर रहें ‘सुसाइड’?

-‘फरमान’ः तीसरे ‘नंबर’ में ‘गणना’ पत्रक भरो, ‘जिले’ को नंबरवन ‘बनाओ‘नंबरवन’ बनने के ‘चक्कर’ में ‘बीएलओ’ हो रहे ‘हलकान’, तीन नंबर गेर से जिले को दी स्पीड, अब दोबारा एक-दो पर चलने दे रहे नसीहत, निर्वाचन कार्य में लगे अधिकारियों ने बीएलओ से पहले तीसरे नंबर में भराया एसआईआर

-ग्रुपों में पड़े अधिकारियों के वाईस रिकार्डिंग मैसजे हैं इस बात के साक्ष्य, अब बदल दिया बयान, संशोधित करा रहे डिजटलाइज्ड हुआ एसआईआर

-बढ़ा दी गई बीएलओ की समस्याएं, छांटने में उलझे तीन नंबर में भरा गणना पत्रक, किसी के बूथ पर 1300 तो किसी के बूथ पर 400 मतदाता

-दोनों को प्रतिशत के एक तराजू से आंक रहे अधिकारी और दे रहे सम्म्मान, अधिक डिजिटाइज्ड करने के बाद भी प्रतिशत में पीछे अधिक वोटर बूथ के बीएलओ

बस्ती। जिले को नंबर वन बनाने के लिए निर्वाचन कार्य में लगे अधिकारियों ने बीएलओ के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। यह अधिकारी अगर बीएलओ की पहले सुन लेते तो आज इनके सामने समस्या खड़ी न होती। बीएलओ शुरू से कहते आ रहे कि साहब 2003 की मतदाता सूची ठीक से नहीं खुल रहे है। सूची में नाम होने के बावजूद मतदाता एवं उनके परिवार के लोगों का मैंपिग नहीं हो रहा है। इसे ठीक कराया जाए नहीं तो हमारे लिए कल समस्या खड़ी होगी, नोटिस कटने पर यह लोग हंगामा करेंगे। हम बीएलओ को मारने दौडाएंगे, गाली देंगे। लेकिन अधिकारियों ने इनकी बतों को सुनने और इसका निदान कराने के बजाए अपना फरमान जारी कर दिया। कहा तीसरे नंबर में गणना पत्रक भरो और जिले को नंबर वन बनाओं। बीएलओ और फीडिग कार्य में लगे लोगों ने भी ऐसी ही किया। चार तीन में जिले को प्रदेश में 15 वें स्थान पर पहुंचा था और खूब वाहवाह भी बटोरी। दिन रात बीएलओ और फीडिग में लगे कर्मचारियों से मशीन की तरह कार्य लिया। यहां न सही लेकिन कई जगहों पर बीएलओ इस प्रेसर को झेल नहीं पाए और आत्महत्या करने को विवश हुए । मुकदमा दर्ज कर इन्हंे डराया जा रहा था, बस्ती में भी कई बीएलओ पर मुकदमा दर्ज किया गया है। विकास विभाग के लोगों पर बिना कार्य किए वेतन लेने तक का आरोप लगाया। उन्हें बहुत कुछ कहा गया। एसडीएम सदर की बातों से लग रहा था कि केवल वह और उनका विभाग ही ईमानदार है। जबकि देखा जाए तो सबसे अधिक इसी विभाग के लोगों को विजलेंस कई टीम पकड़ कर ले गई है। धारा 33 तक के मामले वर्षों से लटके पड़े हैं। अपना विभागीय कार्य छोड़ आपका सहयोग कर रहे हैं। वह भी मात्र 33 रुपये में 18 घंटे। दबाव डालकर जिले को तो रफ्तार साहबो ने दे दिया लेकिन कितने प्रतिशत मतदाताओं की मैपिंग हो रही इसे ध्यान देना उचित नहीं समझा ।बस अधिक से अधिक डिजिटाइजेशन कराने में  लगे रहे ।निर्वाचन विभाग के नए अप्लीकेशन में जब बिना मैप वालों के नाम दोबारा दिखने लगे तो इनके स्पीड पर ब्रेक लग गया ।अपना ब्यान बदल दिए ग्रुपों में नया वाईश फरमान जारी कर दिया कि तीन नंबर को अब एक या दो में भरें। यानी दोबारा गणना पत्रक को भरा जाए। जिसे संशोधन का नाम दे दिया गया है। अब बीएलओ अन कलेक्टेड फार्म को कलेक्ट करने के साथ भरे हुए बडल को दोबारा खोलकर छटनी कर रहे हैं ।यह कार्य कहने में तो बहुत आसान हैं लेकिन करना कठिन है। किस क्रमांक का फार्म किस बंडल में और कहां है। इसे ढूढकर दोबारा भरना बीएलओ के लिए मुसीबत का कार्य हो गया है। यदि नहीं करते हैं तो मुकदमा का तोहफा लें। यदि करते हैं तो पूरी रात जगराता करना होगा। सुख दुख नात रिस्तेदार से कुछ दिन की दूरी बनानी होगी।  क्योंकि 2003 की सूची में नाम होने वाले मतदाता या उसके परिवार को नोटिस मिलेगी तो वह बीएलओ का ही सबसे पहले हाल खबर लेगा। अधिकारी तो अपना पलड़ा झाड़ लेंगे। इस लिए कुछ बीएलओ ने अधिकारियों के वाईस मैसेज को सेव करके मोबाईल में सुरक्षित रख लिया है। जिससे वह समय पर दिखा और सुना सकें।

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