30 फीसद’ में ‘गुणवत्तापरक’ सड़क ‘बनाने’ वाले ‘ठेकेदारों’ को मिलेगा ‘ईनाम’!

30 फीसद’ में ‘गुणवत्तापरक’ सड़क ‘बनाने’ वाले ‘ठेकेदारों’ को मिलेगा ‘ईनाम’!

30 फीसद’ में ‘गुणवत्तापरक’ सड़क ‘बनाने’ वाले ‘ठेकेदारों’ को मिलेगा ‘ईनाम’!

-है, कोई जिले में ऐसा, ‘देशभक्त’ ठेकेदार जो ‘घर’ लुटाकर ‘30 फीसद’ में ‘गुणवत्तापरक’ सड़क बना सके

-पीडब्लूडी के दोनों खंडों में 38 फीसद बिलो पर टेंडर क्या निकला, चर्चा का विषय बन गया, मीडिया की ओर से डीएम को जब यह बताया गया कि जब ठेकेदार 38 फीसद बिलो में टेंडर डालेगा, 12 फीसद क्षेत्रीय माननीय को, 10 फीसद विभाग को और 10 फीसद अपना लाभांश सहित कुल 70 फीसद खर्च करेगा तो कैसे 30 फीसद में ठेकेदार सड़क बनाएगा

-कमीशन का प्रतिशत सुनकर डीएम सहित एडीएम, सीआरओ और दो एसडीएम भी सन्न रह गए, डीएम ने कहा कि हमको सड़कों की सूची उपलब्ध कराइए, हम इसकी जांच कराते है। -सच तो यह है, कि 38 फीसद बिलो वाले टेंडर का एग्रीमेंट ही नहीं होना चाहिए, जेई, एई और एक्सईएन को स्पष्ट ठेकेदार से कह देना चाहिए कि इतने कम बिलो पर सड़क बन ही नहीं सकती, इस लिए टेंडर को निरस्त किया जाता

-पीडब्लूडी के इतिहास में पहली बार 38 फीसद बिलो पर टेंडर फाइनल होने जा रहा, अगर टेंडर फाइनल हो गया तो आप समझ सकते हैं, कि सड़कों का क्या होगा? कोई भी ठेकेदार नहीं चाहता कि टेंडर 38 फीसद बिलो पर फाइनल हो,

-भले ही ठेकेदार चाहें जितना भी यह रोए कि हमको तो 38 फीसद बिलो में ठेका मिला, कहां से कमीशन देंगे, ठेकेदार को भले ही चाहें घर को ही गिरवी क्यों न रखना पड़े या फिर सूद पर ही पैसा लेना पड़े, उसे माननीयजी को 12 और विभाग को 10 सहित कुल 22 फीसद कमीशन देना ही पड़ेगा, नहीं देगा तो इतनी जांच हो जाएगी और भुगतान रोक दिया जाएगा, कि उसे देना ही पड़ेगा

-विभाग के लोग भी कहते हैं, कि भले ही आप जो भी कुछ करो, लेकिन कमीशन तो देना ही पड़ेगा और गुणवत्तापरक निर्माण करना ही होगा, लेकिन माननीयगण को गुणवत्तापरक निर्माण कार्य से कोई मतलब नहीं उन्हें तो क्षेत्र में काम करने के लिए जजिया टैक्स तो देना होगा

-माननीयगण अगर बिलो टेंडर पड़ने के मामले में एक्सईएन पर टेंडर निरस्त करने का दबाव बनाते तो सभी खुश होते और टेंडर निरस्त भी हो जाता, लेकिन अगर इस लिए दबाव बनाया जाएगा कि क्यों नहीं उनकी इच्छानुसार ठेकेदारों को ठेका मिला, तो बात नहीं बनेगी, बदनामी अलग से होगी

बस्ती। इतने सालों में अगर पीडब्लूडी में कुछ नहीं बदला तो वह है, कमीषन का प्रतिशत। माननीयगण ने भले ही जजिया टैक्स को बढ़ा दिया, लेकिन विभाग ने नहीं बढ़ाया। क्यों कि विभाग को कमीशन भी चाहिए और गुणवत्तापरक काम भी। विभाग आज भी 10 फीसद कमीशन लेता, इस मामले में किसी भी ठेकेदार को कोई छूट नहीं मिलती, भले ही ठेकेदार ने चाहें जितना बिलो में टेंडर डाला हो, उसे उसे 10 फीसद कमीशन देना और गुणवत्तापरक निर्माण कार्य करना ही होगा। यह एचएमबी रिकार्ड विभाग में सालों से बजता आ रहा है। जिन ठेकेदारों ने यह कर कमीशन देने से इंकार किया कि बिलो टेेंडर डालने से कुछ नहीं बचा, तो उसे अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, अंत में वही हुआ, जो विभाग चाहा। इसी लिए कहा जाता है, कि अगर भुगतान और जांच से बचना है, तो ठेकेदारों को परम्परागत 10 फीसद कमीशन देना ही होगा। आज चर्चा इस बात की हो रही है, कि कैसे कोई ठेकेदार 38 फीसद बिलो और 22 फीसद कमीशन देकर गुणवत्तापरक सड़क का निर्माण कर सकता हैं? सच तो यह है, कि दुनिया का कोई भी ठेकेदार 70 फीसद खर्च करके 30 फीसद में 100 फीसद कार्य कर सकता। इसी लिए उस ठेकेदार को जनता की ओर से ईनाम देने की बात कही जा रही है, जो 30 फीसद में 100 फीसद का कार्य करेगा। कहा जा रहा है, कोई जिले में ऐसा, ‘देशभक्त’ ठेकेदार हैं, जो ‘घर’ लूटाकर ‘30 फीसद’ में ‘गुणवत्तापरक’ सड़क बना सके?े कोई भी ठेकेदार चाहें जितना बड़ा देशभक्त क्यों न हो? वह 30 फीसद में 100 फीसद का कार्य वह भी गुणवत्तापरक नहीं कर सकता।

पीडब्लूडी के दोनों खंडों में 38 फीसद बिलो पर टेंडर क्या निकला, चर्चा का विषय बन गया, मीडिया की ओर से डीएम को जब यह बताया गया कि जब ठेकेदार 38 फीसद बिलो में टेंडर डालेगा, 12 फीसद क्षेत्रीय माननीय को, 10 फीसद विभाग को और 10 फीसद अपना लाभांश सहित कुल 70 फीसद खर्च करेगा तो वह कैसे 30 फीसद में गुणवत्तापरक सड़क बना पाएगा? कमीशन का प्रतिशत सुनकर डीएम सहित एडीएम, सीआरओ और दो एसडीएम भी सन्न रह गए, डीएम ने कहा कि हमको सड़कों की सूची उपलब्ध कराइए, हम इसकी जांच कराते है। सच तो यह है, कि 38 फीसद बिलो वाले टेंडर का एग्रीमेंट ही नहीं होना चाहिए, जेई, एई और एक्सईएन को स्पष्ट ठेकेदार से कह देना चाहिए कि इतने कम बिलो पर सड़क बन ही नहीं सकती, इस लिए एग्रीमेंट नहीं हो सकता और टेंडर को निरस्त किया जाता। पीडब्लूडी के इतिहास में पहली बार 38 फीसद बिलो पर टेंडर फाइनल होने जा रहा, अगर टेंडर फाइनल हो गया तो आप समझ सकते हैं, कि सड़कों का क्या होगा? कोई भी ठेकेदार नहीं चाहता कि टेंडर 38 फीसद बिलो पर फाइनल हो, इस मामले में ठेकेदार संघ को आगे चाहिए और उन्हें इस मामले में प्रशासनिक और विभागीय अधिकारियों को ज्ञापन देना चाहिए, और बिलो रेट की एक सीमा निर्धारित करने की मांग करनी चाहिए, ताकि गुणवत्तापरक सड़कों का निर्माण हो सके। भले ही ठेकेदार चाहें जितना भी यह रोए कि हमको तो 38 फीसद बिलो में ठेका मिला, कहां से कमीशन देंगे, ठेकेदार को भले ही चाहें घर को ही गिरवी क्यों न रखनी पड़े या फिर सूद पर ही पैसा क्यों न लेना पड़े, उसे माननीयजी को 12 और विभाग को 10 फीसद सहित कुल 22 फीसद कमीशन देना ही पड़ेगा, नहीं देगा तो इतनी जांच होने लगेगी और भुगतान रोक दिया जाएगा, मजबूर होकर ठेकेदारों को 22 फीसद कमीशन देना ही पड़ता है। ठेकेदार को न तो विभाग छोड़ेगा और न माननीयगण। विभाग के लोग भी कहते हैं, कि भले ही आप जो भी कुछ करो, कितना ही बिलो क्यों न डालो, लेकिन कमीशन तो देना ही पड़ेगा और गुणवत्तापरक निर्माण भी करना होगा, यहां पर माननीयगण को गुणवत्तापरक निर्माण कार्य से कोई मतलब नहीं, उन्हें तो क्षेत्र में काम करने के लिए जजिया टैक्स चाहिए। अनेक ठेकेदारों का कहना और मानना है, कि माननीयगण अगर बिलो टेंडर पड़ने के मामले में एक्सईएन पर टेंडर निरस्त करने का दबाव बनाते तो सभी खुश होते और टेंडर निरस्त भी हो जाता, लेकिन अगर इस लिए दबाव बनाया जाएगा कि क्यों नहीं उनकी इच्छानुसार ठेकेदारों को ठेका मिला, तो बात नहीं बनेगी, बदनामी अलग से होगी। अपने ठेकेदारों का नुकसान अलग से होगा।

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