होटल मालिक ही नहीं, हास्पिटल मालिक भी जमीर-ईमान बेच पैसा कमा रहें!

होटल मालिक ही नहीं, हास्पिटल मालिक भी जमीर-ईमान बेच पैसा कमा रहें!

होटल मालिक ही नहीं, हास्पिटल मालिक भी जमीर-ईमान बेच पैसा कमा रहें!

-हास्पिटल मालिक/डाक्टरों पर इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी दवाओं से गरीब मरीजों को लाभ हो रहा है, कि नहीं, उन्हें तो सिर्फ करोड़ों के कमीशन से मतलब

-जमीर और ईमान बेचकर पैसा कमाने वाले ऐसे-ऐसे डाक्टर भी है, जो दवा कंपनियों से दवा लिखने के नाम पर दस-दस करोड़ का एग्रीमेंट कर रखा

-जिन दवाओं को लिखने के लिए अगर इतनी बड़ी डील होती है, तो आप समझ सकते हैं, कि उन दवाओं की गुणवत्ता कैसी होगी?

-अंबाला की इस दवा कंपनी की दवा मार्केट में नहीं मिलती, सिर्फ उन डाक्टरों के यहां ही मिलती, जिनसे डील हुआ रहता

-इस कंपनी की दवा लिखने के लिए हर हाल डाक्टर्स को एक करोड़ मिलता, जबकि नियमानुसार दवा कंपनी का स्टाकिस्ट होना चाहिए, दवाएं हर जगह मिलनी चाहिए

बस्ती। अधिक से अधिक पैसा कमाने की होड़ में लोग अपना जमीर और ईमान तक बेच दे रहे हैं। वह लोग अपनी जमीर और ईमान बेच रहें, जिन्हें ना तो पैसे की कोई कमी है, और ना ही नाम की। कुछ नामचीन और पैसे वाले ही पैसे के लिए अपना जमीर और ईमान बेच रहें है। अगर कोई गरीब आदमी अभाव में अपना ईमान और धर्म बेचता हैं, तो बात समझ में आती है, लेकिन वहीं पर अगर कोई करोड़पति व्यक्ति पैसे के लिए जमीर और ईमान बेचता है, तो बात बिलकुल समझ में नहीं आती, ऐसे लोगों को हम और आप क्या कहेंगे और क्या समझेगें? इसका निर्णय आप करें। कहने का मतलब जिसके पास जितना ही दौलत रहता हैं, उसे उतनी ही पैसे की भूख होती है। ऐसे लोग क्या खाते पीते होगें और किस बिस्तर पर सोते होगें, किस सोफा पर बैठते होगें, समझ में नहीं आता। बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और ईमानदारी के बल पर उंचा मकाम हासिल किया, ऐसे लोगों के पास पैसा भी हैं, और नाम भी हैं। यह कहना गलत हैं, कि बड़ा आदमी सिर्फ चोरी और बेईमानी और धोखा देकर ही बना जा सकता हैं। ईमानदारी और मेहनत से भी तरक्की किया जा सकता है, और पैसे से बड़ा आदमी भी बना जा सकता है, ऐसा बस्ती के कुछ कारोबारियों ने करके दिखा भी दिया है। वहीं पर अगर कोई अधिकारी और नेता पैसे से बड़ा आदमी बनता है, तो ऐसे लोगों को जनता क्या कहती है, यह लिखने की नहीं बल्कि समझने की बात है। ऐसे लोगों पर ही सबसे अधिक सवाल उठते है। जिले में ऐसे चोरों और बेईमानों की भरमार है, जिन्होंने जमीर और ईमान बेचकर साम्राज्य खड़ा किया है। सवाल उठ रहा है, कि क्या वेतन से कोई अधिकारी या नेता साम्राज्य खड़ा कर सकता है? जनता का जबाव 100 फीसद ना में होगा। बहरहाल, हम बात कर रहे थे कि जमीर और ईमान बेचकर सिर्फ होटल मालिक ही पैसा नहीं कमा रहे हैं, बल्कि वे लोग भी अपना जमीर और ईमान बेचकर साम्राज्य खड़ा कर रहें, जिन्हें मरीज और परिजन अपना भगवान मानते है।

अब हम आप को बताते हैं, कि मरीजों के भगवान समझे जाने वाले हास्पिटल के मालिक/डाक्टर्स किस तरह अपना जमीर और ईमान बेचकर पैसा कमा रहे है। ऐसे हास्पिटल मालिक/डाक्टरों पर इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी दवाओं से गरीब मरीजों को लाभ हो रहा है, कि नहीं, उन्हें तो सिर्फ करोड़ों के कमीशन से मतलब रहता है। जमीर और ईमान बेचकर पैसा कमाने वाले ऐसे-ऐसे डाक्टर भी है, जो दवा कंपनियों से दवा लिखने के नाम पर दस-दस करोड़ का एग्रीमेंट कर रखा है। जिन दवाओं को लिखने के लिए अगर इतनी बड़ी डील होती है, तो आप समझ सकते हैं, कि उन दवाओं की गुणवत्ता कैसी होगी? अंबाला की इस दवा कंपनी की दवाएं मार्केट में नहीं मिलती, सिर्फ उन डाक्टरों के यहां ही मिलती, जिनसे डील होता। इस कंपनी की दवा लिखने के लिए हर साल डाक्टर्स को एक करोड़ मिलता। जाहिर सी बात हैं, कि अगर आफर इतना आकर्षक होगा तो बहुत से ऐसे डाक्टर्स होगें जो अपना जमीर और ईमान बेचना चाहते होंगे। हालांकि ऐसे डाक्टर्स को अनेक बार मरीजों के उस गुस्से का सामना भी करना पड़ा, जिन मरीजों को उन आठ-दस दवाओं से कोई फायदा नहीं हुआ, ऐसे मरीज डाक्टर्स को अच्छी कंपनियों की दवा लिखने के लिए खरी खोटी सुना चुके हैं। पहले हम लोग अक्सर सुना करते थे, कि डाक्टर्स विदेष टूर पर गएं हैं, टूर पर डाक्टर्स साहब अपने पैसे से नहीं जाते, बल्कि वह कंपनियां उन्हें टूर पर भेजती, जिनकी दवाएं डाक्टर साहब लिखते थे। मंहगें उपहार तक मिलता था। फिर उसके बाद क्लीनिक के एक दो कमरा का निर्माण करने का आफर का दौर चला। लेकिन जब लालची डाक्टर्स ने देखा कि इसमें तो उनका घाटा हो रहा है, और सारी मलाई दवा कंपनिया काट रही है, तो उन लोगों ने तरीका बदल लिया, अब डाक्टर्स और कंपनियों के बीच चार-पांच साल का एग्रीमेंट होने लगा, जिसमें कई ऐसे डाक्टर्स हैं, जिन्होंने इस आफर को हाथों हाथ लिया, क्यों कि इस आफर के तहत एग्रीमेंट करने वाले डाक्टर्स को हर साल एक करोड़ का कमीशन मिलना तय हुआ। हालांकि एग्रीमेंट करने वाले डाक्टर्स अधिक नहीं हैं, एक दो का नाम सामने आ रहा है। यह वह लोग हैं, जिनके पास भगवान की कृपा सेे इतनी दौलत है, कि अगर इनकी बिगड़ी औलादें जीवन भर लुटाती रहें तो भी कम नहीं पड़ेगा। अगर ऐसे डाक्टर्स गरीब मरीजों के जीवन के साथ में खिलवाड़ करके पैसा कमाते हैं, तो इन्हें जाहिर सी बात हैं, कि मरीज खूनचुसवा ही कहेंगंे। मरीजों की माने तो दौलत के चकाचौंध ने डाक्टर्स को भगवान से खूनचुसवा बना दिया। जितनी गिरावट डाक्टरी पेशे में आई हैं, उसे देख हैरानी होती है। ऐसे लोगों को जनता भ्रष्ट अधिकारियों से गंदी निगाह से देखती है। अब आ जाइए नियम कानून पर। औषधि प्रसाधन एवं सामग्री अधिनियम 1940 एवं आवष्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत उसी कंपनियों की दवा डाक्टर्स को लिखनी चाहिए, जिसका स्थानीय स्तर पर स्टाकिस्ट हो एमआर और एरिया मैनेजर हो, और वह दवाएं प्रत्येक मेडिकल स्टोर्स पर उपलब्ध हो। अगर, कोई डाक्टर्स या कंपनी नियमों का पालन नहीं करती तो यह माना जाएगा, कि मरीजों को जो दवाएं दी जा रही है, और लिखी जा रही है, वह अधोमानक हैं, ऐसे दवाओं की लागत भी अधिक होती है। चिकित्सा क्षेत्र में ऐसे को पीडी बेस कारोबार कहा जाता है। अगर ऐसी दवाएं सिर्फ एग्रीमेंट वाले हास्पिटल के मेडिकल स्टोर पर मिलती है, तो समझ लीजिए कि उस हास्पिटल का मालिक/डाक्टर्स जमीर और ईमान बेचकर अपनी तिजोरी भर रहा है। जाहिर सी बात है, तो हर साल जो एक करोड़ का कमीशन मिलता होगा, उसका भुगतान एक नंबर में तो होता नहीं होगा, इसका मतलब यह हुआ कि लालची डाक्टर्स ने ना सिर्फ मरीजों के जीवन के साथ में खिलवाड़ करके पैसा कमाया बल्कि टैक्स की चोरी भी की।

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