धान घोटाले में सिद्धार्थनगर के दो एआर दोषी हो सकते हैं, तो बस्ती के क्यांें नहीं?
- Posted By: Tejyug News LIVE
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- Updated: 17 May, 2025 23:52
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धान घोटाले में सिद्धार्थनगर के दो एआर दोषी हो सकते हैं, तो बस्ती के क्यांें नहीं?
-डीसीबी के चेयरमैन राजेंद्रनाथ तिवारी ने सिद्धार्थनगर की तरह बस्ती के एआर और डीआर के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा
-डीएस अमित कुमार चौधरी के बर्खास्तगी वाले पत्र में स्पष्ट रुप से धान घोटाले के लिए एआर वकील वर्मा और एवं प्रभारी एआर रमेश कन्नौजिया को दोषी माना
-चूंकि सिद्धार्थनगर के डीएम ने जांच करवा लिया तो दोनों एआर दोषी पाए, अगर बस्ती के डीएम ने भी जांच करवाई होती तो यहां के एआर भी दोषी पाए जाते
-डीएस के टर्मिनेशन लेटर ने खोली करोड़ों रुपये के धान घोटाले की पोल, ईमानदार अधिकारियों के चेहरे हुए बेनकाब
-धान क्रय नीति को सहकारिता के भ्रष्ट सचिवों को किया बर्बाद, साइकिल या मोटर साइकिल से चलने वाले सचिव के गले में पांच लाख का चैन और 15 लाख की गाड़ी कहां से आई
बस्ती। इसी को कहते हैं, समय का चक्र। जिस पीसीएफ के जिला प्रबंधक अमित कुमार चौधरी की तूती बोलती थी, और जिसने न जाने कितने एआर, डीआर और सचिवों को फर्श से अर्श तक पहुंचाया, आज उसी डीएम का कोई नाम लेना इस लिए पसंद नहीं करता, कि कहीं उनका भी नाम डीएस के साथ न जोड़ दिया जाए। सिर्फ धान/गेहूं खरीद ने डीएस, एआर, डीआर और भ्रष्ट सचिवों की तिजोरी भर दी। डीएस की गिनती करोड़पति में नहीं अरबपति में होती है, और जो अरब पति हो उसके पीछे तो सभी भागेंगे। जो डीएस अपनी वाहन चालक को धान क्रय केंद्र बनवाकर करोड़ों का धान हजम कर सकता हैं, वह कुछ भी कर सकता है। डीएस और उसके गैंग के लोगों ने सिर्फ सरकारी धन को लूटने का ही काम किया। अब जरा अंदाजा लगाइए कि यह सिद्धार्थनगर का धान अपने गृह जनपद महराजगंज के चावल मिलों से कूटने का आदेश फूड कमिश्नर के यहां से पारित करवा लिया। कहने का मतलब इन्होंने अपने जिले के चावल मिलों को भी लूटने का मौका दिया। यह जो चाहते हैं, उसे वह अधिकारियों से पैसे के बल करवा लेते थे। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि जब एक ही साल में धान खरीद के घोटाले में जनपद सिद्धार्थनगर के एआर वकील वर्मा और रमेश कन्नौजिया दोषी पाए जा सकते हैं, तो बस्ती के एआर क्यों नहीं? दोनों के बार में स्पष्ट लिखा है, कि वकील वर्मा और रमेष कन्नौजिया के द्वारा की गई लापरवाही, शिथिलता एवं मनमानेपन एवं धान क्रय केंद्र प्रभारियों के दुर्भिसंधि से 11 करोड़ नौ लाख से अधिक का शासकीय धन की क्ष्ीति हुई। जिसके लिए डीएस के साथ दोनों एआर भी दोषी है। तीनों अधिकारियों के चलते संघ की छवि भी खराब हुई। इसी लिए कहा जा रहा है, कि बस्ती के एआर को भी दोषी मानते हुए इनके खिलाफ कार्रवाई हो। क्यों कि बस्ती में सबसे अधिक सहकारिता के क्रेद्रों पर धान का घोटाला हुआ। डीसीबी के चेयरमैन राजेंद्रनाथ तिवारी ने सिद्धार्थनगर की तरह बस्ती के एआर और डीआर के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अपर मुख्य सचिव सहकारिता को पत्र लिखा है।
टर्मिनेशन लेटर में जिस घोटाले की शुरुआत ही बस्ती के घोटाले से की गई, उसके बाद भी अगर बस्ती के एआर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है, तो माना जाता है, कि इन्हें बचाने के लिए पूरा सरकारी तंत्र लग गया। घोटाले का दोषी होते हुए भी अगर इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है, तो यह मान लिया जाएगा, कि सीएम योगी का जीरो टालरेंस नीति बस्ती में बिक चुका हैं। कहा गया कि बस्ती में 23-24 में 34688 एमटी धान की खरीद हुई। लेकिन राइस मिलों को 2424 एमटी धान की डिलीवरी नहीं कराई गई, ध्यान देने वाली बात यह है, कि क्रय नीति में धान की डिलीवरी कराने की जिम्मेदारी एआर और डीआर दोनों की है। इस तरह पांच करोड़ 88 लाख का धान खुले बाजार में सहकारिता के सचिवों ने बेच दिया। इसके लिए डीएस को चेतावनी और कारण बताओ नोटिस तक विभाग की ओर से जारी हुआ। फिर भी इन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। जब इन्हें दो अगस्त 24 को अंतिम पत्र जारी किया तो इन्होंने आनन-फानन में तीन करोड़ 34 लाख सचिवों से जमा करवा दिया। चार करोड़ 87 लाख जमा नहीं करा पाए, यानि चार करोड़ 87 लाख का सचिवों और डीएस ने मिलकर भोजन कर लिया।
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