पत्रकारों की सूची देख डाक्टर साहब ने जोड़ा हाथ

पत्रकारों की सूची देख डाक्टर साहब ने जोड़ा हाथ

पत्रकारों की सूची देख डाक्टर साहब ने जोड़ा हाथ

बस्ती। उन पत्रकारों के बारे में बार-बार लिखना भले ही कुछ पत्रकारों को अच्छा नहीं लग रहा होगा, जो लोग पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हैं, लेकिन बात जब पत्रकार जगत के बदनामी की आ जाती है, तो लिखना ही पड़ता। लिखने के पीछे पत्रकारों को अपमानित करना या उनकी मंषा को धूमिल करना नहीं, बल्कि यह बताना रहता है, कि कुछ पत्रकारों की वजह से पूरे पत्रकार जगत को कितनी षर्मिंदगी उठानी पड़ती है। क्लार्क इन होटल और ओमनी स्कूल की घटना को बीते अभी अधिक दिन नहीं हुआ कि एक और पत्रकारों के लिए षर्मसार करने वाली घटना सामने आ गई। हुआ यह कि कृष्णा मिषन अस्पताल से निकले एक डाक्टर ने बड़ेबन में खुद का क्लीनिक खोला। दो दिन पहले उसका उदघाटन हुआ। उदघाटन में डाक्टर साहब ने एक भी पत्रकार को आमंत्रित नहीं किया। उदघाटन समाप्त होते ही डाक्टर साहब को एक नामी गिरामी फोटोग्राफर ने 35 पत्रकारों की सूची थमाने हुए, उसके आगे 35 गुणा 500 लिखकर दे दिया। यानि डाक्टर साहब को 500 रुपये के हिसाब से 17500 रुपया फोटो खींचने और उदघाटन का कवरेज करने के लिए देना था। डाक्टर साहब ने जब एमाउंट देखा तो वह परेषान हो गए, बाहर आए और सभी पत्रकारों से हाथ जोडकर माफी मांगते हुए कहा कि अभी-अभी तो उनकी नौकरी गई हैं, किसी तरह क्लीनिक खोला हूं, मेरे पास आप लोगों को देने के लिए इतना पैसा नहीं है। नाराज होकर 35 पत्रकारों की टोली वापस चली गई। उदघाटन के बाद डाक्टर साहब ने मेडिकल से जुड़े एक दोस्त से कहा कि जब हमने किसी पत्रकार को बुलाया नहीं तो कैसे इतनी बड़ी संख्या में पत्रकार आ धमके? दोस्त ने डाक्टर से कहा कि यह करामात उसी पत्रकार की है, जिस अस्पताल से आप निकलकर आए है। सवाल उठ रहा है, कि अगर एक पत्रकार अपनी कीमत 500 रुपया आकेंगा तो पत्रकारों की क्या कीमत रह जाएगी? बताया जाता है, कि 35-40 पत्रकारों की एक टोली हैं, जिसके मुखिया ऐसे पत्रकार हैं, जिन्होंने कभी ‘की बोर्ड’ पर अंगुली तक नहीं चलाया होगा, लेकिन हर माह वह पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित होते रहते हैं, इन्हें इतनी बार सम्मानित किया जा चुका है, जितनी बार डाक्टर वीके वर्मा को नहीं किया गया होगा। हैरान करने वाली बात यह है, कि यह लोग एक काल में पांच मिनट में पहुंच जाते है। ऐसा लगता है, कि मानो यह लोग मुखिया के काल के आने के इंतजार में रहते है। पत्रकारों को उस समय षर्मिदंगी का सामना करना पड़ता जब लोग यह कहते हैं, कि आज का पत्रकार तो पांच-पांच सौ रुपये में बिकता है। यह भी कहते हैं, कि अगर पत्रकारों को बिकना ही है, तो अच्छी कीमत पर बिके, ताकि सामने वाले को एहसास तो हो कि पत्रकारों की कितनी कीमत है। ़यही हालत ब्रेकिगं न्यूज चलाने वाले कुछ पत्रकारों की है। इनकी पत्रकारिता ब्रंेकिगं न्यूज तक चलाने में रह जाती है, जैसे ही इनका मकसद पूरा हो जाता है, यह ब्रेंकिग न्यूज चलाना बंद कर देते है, कुछ तो ऐसे भी हैं, जब तक उनका मकसद पूरा नहीं होता ब्रेकिगं न्यूज चलाते ही रहते है। ऐसे पत्रकारों की अंगुली हमेषा मोबाइल पर रहती है। इस तरह के अधिकतर पत्रकार ग्रामीण क्षेत्र में पाए जाते है। अब तो यह बीमारी षहरी क्षेत्र के कुछ पत्रकारों को भी लग गई।

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