लाखों की संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं, लेकिन कभी कोई भगदड़ नहीं होती

लाखों की संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं, लेकिन कभी कोई भगदड़ नहीं होती

लाखों की संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं, लेकिन कभी कोई भगदड़ नहीं होती.

महाकुंभ हर बारह साल पर, अर्धकुंभ छह साल पर और हर साल संगम पर स्नान जिसमें लाखों की संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं, लेकिन कभी कोई भगदड़ नहीं होती.

इस वर्ष मकर संक्रांति के स्नान में करीब एक करोड़ लोगों के स्नान करने की संभावना है लेकिन स्थानीय लोग मानते हैं कि भगदड़ नहीं होगी.

वैसे इलाहाबाद के कुंभ में वर्ष 1954 में एक बार भगदड़ मची थी जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोग मारे गए थे. इसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि भगदड़ नहीं हुई.

तो क्या प्रशासन इतना चाक-चौबंद है या फिर कोई दैवीय ताकत, जिसके कारण भगदड़ नहीं मचती?

पहला कारण

मेला के प्रमुख अधिकारियों में से एक और इलाहाबाद मंडल के आयुक्त देवेश चतुर्वेदी कहते हैं कि मेले का क्षेत्र बहुत बढ़ गया है और घाट भी कई हैं, जिसके कारण भीड़ बंट जाती है.

इस समय करीब 5,700 वर्ग किलोमीटर में मेला लगता है. जबकि पहले इससे बहुत कम इलाक़े में मेला लगता था.

ज्यादा जगह और घाट की वजह से लोगों को स्नान करने के लिए अतिरिक्त जगह मिल जाती है और भीड़ एक जगह नहीं जुटने पाती.

दूसरा कारण

सर्कुलेशन एरिया यानी भीड़ नियंत्रण के लिए बांसों का घेरा.

बड़े से मैदान को बांसों से घेर दिया जाता है ताकि भीड़ अधिक हो तो उसे इन बल्लियों के भीतर लाइन में रख दिया जाए.

इसकी ज़रूरत अभी तक नहीं पड़ी है लेकिन इसे भीड़ नियंत्रण का एक प्रमुख उपाय माना जाता है.

तीसरा कारण

पुलिस का बेहतरीन रवैया भी भगदड़ होने से रोकने में बड़ी भूमिका अदा करता है.

कुंभ के दौरान पुलिस वाले बेहद नरमी से पेश आते हैं और लोगों को स्नान के लिए रास्ता बताने में कोई तुनकमिजाजी नहीं होती है.

कुंभ में पुलिस वालों का यह रवैया आपको हैरान कर सकता है.

चौथा कारण     कहते हैं कि वर्ष 1954 में प्रधानमंत्री नेहरु कुंभ में किसी शाही स्नान के दौरान आए थे और संभवत इसी के कारण भगदड़ मची थी.

इसके बाद नेहरु जी ने अपील की थी कि कोई नेता शाही स्नान के दिन कुंभ न जाए.

ऐसी ही अपील यहां अधिकारी आज भी करते हैं और शाही स्नान के दिनों में कोई नेता संगम नहीं जाता.

अगर कोई जाए तो आम आदमी की तरह ही स्नान करता है. यानी नेता-आम आदमी बराबर, जिससे बहुत फायदा हो जाता है.

पांचवा कारण

वैसे सभी लोग इस कारण को नहीं मानते लेकिन अधिकारियों का कहना है कि आस्था के इस मेले में दैवीय प्रभाव होता है जो कोई अनिष्ट नहीं होने देता.

ये कितना सही है, ये कहना मुश्किल है लेकिन ये सोचकर कि एक दिन जिस जगह एक करोड़ लोग जमा हों और कोई घटना न हो तो लगता है कि कुछ न कुछ तो बात ज़रूर होती होगी.

Comments

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *