एतिहासिक निर्णयः कोर्ट ने डीआईओएस की संपत्ति को किया कुर्क!

एतिहासिक निर्णयः कोर्ट ने डीआईओएस की संपत्ति को किया कुर्क!

एतिहासिक निर्णयः कोर्ट ने डीआईओएस की संपत्ति को किया कुर्क!

-कोर्ट ने अमीन से कहा कि अगर आठ मई 25 तक संपत्ति को कुर्क कर पैसा न्यायालय में जमा करे, ताकि रिटायर प्रवक्ता चंद्रशेखर सिंह के बकाए का भुगतान किया जा सके

-कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते प्रवक्ता की पत्नी का इलाज के अभाव में कैंसर से निधन हो गया, खुद बिस्तर पकड लिया

-सब जगह से हारने के बाद भी डीआईओएस नेषनल इंटर कालेज हर्रैया में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत चंद्रशेखर सिंह को 20 साल से वेतन नहीं दे रहें

-वेतन की आस लिए प्रवक्ता 2009 में रिटायर भी गए, 27 साल से यह वेतन की लड़ाई डीआईओएस से लड़ रहे थे, बखरा न देने से नहीं मिल रहा था वेतन

-एतिहासिक निर्णय देने वाली सिविल जज जू.डि. सोनाली मिश्रा की जयजयकार हो रही

-प्रवक्ता की ओर से अधिवक्ता अतुल संचय भटट ने कानूनी लड़ाई लड़ी

बस्ती। भले ही नेशनल इंटर कालेज हर्रैया के अर्थषास्त्र के प्रवक्ता रहे चंद्रशेखर सिंह को 27 साल बाद न्याय मिला, लेकिन सिविल जज जू.डि. सोनाली मिश्रा ने जो इस मामले में डीआईओएस की संपत्ति जिसमें भवन एवं जमीन दोनों शामिल है, को जिस तरह कुर्क करने का निर्णय सुनाया वह एतिहासिक रहा। कोर्ट ने अमीन को स्पष्ट निर्णय दिया है, कि आठ मई 25 तक डीआईओएस की संपत्ति कुर्क कर उसका पैसा न्यायालय में जमा करें, ताकि वेतन का भुगतान किया जा सके। पूरे प्रदेश में पहली बार किसी न्यायालय के द्वारा डीआईओएस की संपत्ति को कुर्क करने का आदेश दिया गया। इस निर्णय की हर ओर सराहना हो रही है, और कहा जा रहा है, कि निर्णय हो तो ऐसा हो। चंद्रशेखर सिंह के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता अतुल संचय भटट भी बधाई के पात्र है। 27 साल तक हक की लड़ाई लड़ने वाले प्रवक्ता का घर और जमीन दोनों बिक गया, इलाज के अभाव में कैंसर पीड़ित पत्नी का निधन हो गया, खुद बिस्तर पकड़ लिया। यह 2009 में रिटायर हुए। 2005 में इन्होंने कानूनी लड़ाई जीती, लेकिन लालची डीआईओएस कार्यालय के लोगों ने केस हारने के बाद भी वेतन का भुगतान इस लिए नहीं किया क्यों बखरा नहीं मिला। वेतन से अधिक डीआईओएस ने कोर्ट में खर्चा कर दिया, लेकिन वेतन नहीं दिया। डीआईओएस के खिलाफ कोर्ट का अवमानना करने के आरोप में अवमानना वाद 2006 में दाखिल हुआ। अगर डीआईओएस केस हारने के बाद 2005 में ही वेतन का भुगतान कर देते तो इन्हें केस लड़ने के लिए सरकार का लाखों खर्च न करना पड़ता, और न कुर्क का आदेश ही होता। कोर्ट का यह निर्णय 28 अप्रैल 25 को आया। कोर्ट के इस निर्णय के बाद पूरे प्रदेश में इसकी चर्चा हो रही हो, हर कोई अब तक के डीआईआएस को इसके लिए जिम्मेदार मान रहा है। कोर्ट के आदेश के बाद अगर 2005 में डीआईओएस वेतन का भुगतान कर देते तो पूरे प्रदेश में इतनी बदनामी न होती। इसे देखते हुए विभाग से इस केस में लिप्त सभी डीआईओएस को निलंबित करने की मांग उठ रही है। डीआईओएस कार्यालय में अगर भ्रष्टाचार का बोलबाला न होता तो एक प्रवक्ता को 27 साल तक वेतन के लिए कोर्ट कचहरी का चक्कर न लगाना पड़ता। ऐसा लगता है, मानो इस कार्यालय के अधिकारियों और बाबूओं की संवेदनषीलता पूरी तरह मर चुकी है। अगर मरी नहीं होती तो चंद्रशेखर सिंह और उसकी कैंसर से पीड़ित पत्नी का दर्द अवष्य दिखाई देता। जो निर्णय डीआईओएस को लेना चाहिए वह कोर्ट ले रही है, इससे पता चलता है, कि निर्णय लेने में अधिकारी कितना अक्षम है। जो कार्यालय बाबूओं के इशारे पर चलता हो, वहां के अधिकारियों पर सवाल उठते रहते है। अगर रिटायर होने से पहले यानि 2005 में कोर्ट के आदेश पर अगर डीआईओएस वेतन का भुगतान कर देते तो शायद पत्नी का समुचित ईलाज हो जाता है, और खुद बिस्तर न पकड़ते।

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