डीएम नहीं बल्कि उनके मातहत कमीशनखोर!
- Posted By: Tejyug News LIVE
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- Updated: 28 May, 2025 21:26
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डीएम नहीं बल्कि उनके मातहत कमीशनखोर!
-डीएम नहीं ले रहें, फिर भी उनके नाम पर अधिकारी और चेयरमैन ठेकेदारों से ले रहें कमीशन
-कोई मनरेगा में तो कोई नगर पंचायत में डीएम के नाम पर ले रहा 10-10 फीसद कमीशन
-भ्रष्टाचारियों ने डीएम को बनाया निषाना, डीएम का नाम लेकर भर रहें तिजोरी
-इससे पहले तत्कालीन डीएम रोशन जैकब के कार्यकाल में भी यही खेल अधिकारी खेल चुकें
-पहले भी मीडिया ने और अब भी मीडिया ने डीएम के सामने किया खुलासा
-किसी भी डीएम को इतना भी सीधा, सरल और ईमानदार नहीं होना चाहिए कि कोई उन्हें ही बेच डाले
-रवीश गुप्त के स्थान पर अगर कोई अन्य डीएम होता तो अब तक कईयों को टांग देता
बस्ती। ऐसे ईमानदार डीएम के होने से क्या फायदा जब उनके ही अधिकारी उनके नाम पर कमीशन ले रहें हैं, कमीशन देने वाला तो यही समझेगा कि बड़े साहब ले रहे है। वह तो मीडिया की तरह डीएम से यह तो पूछने जाएगा नहीं कि साहब आपको कमीशनवा मिला की नाहीं। कोई मनरेगा में तो कोई नगर पंचायत में डीएम के नाम पर कमीशन ले रहा। इसके अतिरिक्त अन्य न जाने कितने ऐसे विभाग होगें जहां के अधिकारी डीएम के नाम पर कमीषन ले रहे होगें। जब अधिकारी, डीएम के नाम पर कमीशन ले सकते हैं, तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वह काम कराने या पत्रावली पर हस्ताक्षर कराने के नाम पर भी ले धन उगाही कर रहे होगें। इन कमीशनखोर अधिकारियों ने डीएम तक को भी नहीं छोड़ा, अपने ही डीएम को भ्रष्टाचारी बनाने की साजिश रच रहे है। किसी भी ईमानदार डीएम के लिए इससे अधिक दुखदाई और पीड़ा का क्षण हो ही नहीं सकता। यह कमीशनखोर अधिकारी उपर भी यही बताते होगें कि डीएम ईमानदार नहीं बल्कि घूसघोर हैं। जबकि पूरा जिला जानता है, कि डीएम नहीं बल्कि उनके मातहत घूसखोर है। डीएम तो ईमानदार बनकर दूसरे को ईमानदारी का पाठ पढ़ाना चाह रहे थे, लेकिन इन्हें क्या मालूम था कि अधिकारी इतने भ्रष्ट हो चुके हैं, कि इन्हें कोई ईमानदार डीएम पाठ ही नहीं पढा सकता। यह लोग ईमानदार डीएम को अपने भ्रष्टाचार के रास्ते का रोड़ा समझने लगते है। इन्हें किसी भी कीमत पर ईमानदार डीएम बिनकुल ही नहीं चाहिए, चाहिए तो बेईमान और भ्रष्ट। नगर पंचायत रुधौली में जिस तरह डीएम के नाम पर पहले चेयरमैन धीरसेन निषाद और फिर बाबू प्रेमचंद्र पटेल ने ठेकेदार नंदलाल से एक-एक लाख कमीशन का लेने का आडियो वायरल हुआ, उसे जिले के लोग बहुत ही गंभीर बता रहे है, और डीएम से इस मामले को गंभीरता से लेते हुए खुद अपनी देखरेख में जांच कराने की मांग कर रहे है। जांच किसी भी हालत में राजस्व के अधिकारियों से नहीं करवाने की सलाह दे रहे है। जब तक नगर पंचायत रुधौली में चेयरमैन और बाबू की जोड़ी रहेगी, तब तक यूंही डीएम पर कमीशन लेने का आरोप लगता रहेगा। इस लिए डीएम को सबसे पहले नगर पंचायत को कठपुतली की तरह नचाने वाले आउटसोर्सिंग बाबू को बर्खास्त करना होगा, क्यों कि आधे से अधिक ठेकेदारी यही अपने लोगों के नाम से करवा रहें हैं। इतना ही नहीं इसके प्रभाव में एकाध को छोड़कर अन्य सपा शासित जितने भी नगर पंचायतें हैं, सब हैं। इस लिए अगर आधे से अधिक नगर पंचायतों के भ्रष्टाचार को कम करना है, तो डीएम को सबसे पहले इसी बाबू को बर्खास्त करना होगा, भले ही चाहें इनके सिर पर विधायक का हाथ है, लेकिन इसके रहने का मतलब धन को लूटने जैसा होगा। वैसे भी काफी अर्से बाद जिले को कोई ईमानदार डीएम मिला। कहा भी जाता है, एक डीएम के ईमानदार होने से क्या होगा जब तक उनकी आंख और नाक कही जाने/माने जाने वाली प्रशासनिक टीम ईमानदार नहीं होगी। यह सही है, कि अगर रवीश गुप्त के स्थान पर कोई और डीएम होता तो अब तक कितने टंग गए होते। यह भी कहा जा रहा हैं, कि किसी भी डीएम को इतना भी सीधा, सरल और ईमानदार नहीं होना चाहिए कि कोई उन्हें ही बेच डाले। उधर सीडीओ भी डीएम की तरह है, लेकिन इनकी ईमानदारी भी जिले वालों के काम नहीं आ रही है, अधिकांश बीडीओ खुलकर जैसे पहले भ्रष्टाचार करते थे, वैसे अब भी कर रहे है। सीडीओ साहब एक दो ग्राम पंचायतों के मनरेगा कार्यो की जांच करने से कुछ नहीं होगा, जबतक जनता को कार्रवाई नहीं दिखाई देगी, दुबौलिया के मामले में आज तक कार्रवाई की गूंज नहीं सुनाई दी। सूरापार और खोरिया की भी कार्रवाई की गूंज नहीं सुनाई दी। अगर डीएम की प्रशासनिक टीम पर ईमानदारी से काम न करने के आरोप लग रहे हेैं, तो वही आरोप सीडीओ के विकास भवन की टीम पर भी लग रहे है।
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