चार प्रधानों ने सांसद और विधायक निधि का निकाला टेंडर

चार प्रधानों ने सांसद और विधायक निधि का निकाला टेंडर

चार प्रधानों ने सांसद और विधायक निधि का निकाला टेंडर

-सिडको के लिए रुधौली के बांसखोर कला और नेवादा के प्रधान बने खतरा

-जिले भर की ग्राम पंचायतें कर रही निविदा में खेल, एक भी ग्राम पंचायतें निविदा प्रक्रिया का पालन नहीं कर रही

-सामग्री खरीद के नाम पर हर साल हो रहा 2.50 अरब की हेराफेरी

-जिसने अधिक बखरा दिया, उसी का टेंडर मंजूर कर लिया

-अधिकांश प्रधानों और सचिवों ने अपनी फर्म खोल रखी

-रुधौली के असलम अली की शिकायत पर जांच टीम तो बनी लेकिन चार माह हो गए जांच का पता ही चला

-आखिर आडिट टीम क्या देखती है, क्या इन्हें भी मैनेज कर दिया जाता


बस्ती। अब तो प्रधाने सांसद और विधायक निधि का भी टेंडर निकालने लगी है। यानि प्रधानों ने एक तरह से सीधे सिडको पर हमला बोला है। प्रधानों की मनमानी का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता? वैसे भी 1185 में से एक भी ग्राम पंचायतें निविदा प्रक्रिया का पालन नहीं कर रही है। जिसके चलते अरबों की परियोजनाओं पर ही प्रष्नचिन्हृ लग गया है। जिस भी वेंडर ने सबसे अधिक बखरा दिया, उसे ही सामग्री की आपूर्ति का ठेका दे दिया। अधिकांश प्रधान और सचिवों के खुद के फर्म हैं, जिनपर आपूर्ति हो रही है। जांच में भी इसका कई बार खुलासा हो चुका है। जब इसकी शिकायत रुधौली के असलम अली ने मुख्यमंत्री से की तो वहां से जांच कमेटी बनाकर जांच कराने का आदेश हुआ, डीएम के निर्देश पर दो सदस्यीय जांच कमेटी भी बनी, कमेटी को बने चार माह से अधिक हो गए, लेकिन आज तक जांच का ही पता नहीं चला। सबकुछ मैनेज होने की बाते शिकायतकर्त्ता के द्वारा कही जा रही है। हर साल मनरेगा में लगभग एक अरब 50 करोड़ और प्रथम खाते में एक अरब सात करोड़ की सामग्री खरीदी जाती है। जानकर हैरानी होगी कि ढ़ाई अरब से अधिक सिर्फ सामग्री की आपूर्ति के नाम खर्च हो जाता है, और एक भी आपूर्तिकर्त्ता ने निविदा प्रक्रिया को पूरा ही नहीं किया, अगर निविउा पूरा करती तो दस हजार की सामग्री की आपूर्ति पर एक लाख 76 हजार भाड़ा न देती। पूरे जिले में फर्जी टेंडर पिछले कई सालों से निकाले जा रहे है। सबसे बड़ा उस आडिट टीम पर उठ रहा है, जो हर साल ग्राम पंचायतों की करती है, अगर यह ईमानदारी दिखाती तो नियम विरुद्व अरबों रुपया का टेंडर नहीं हो पाता। इस डर्टी खेल में बीडीओ, प्रधान, सचिव, एडीओ पंचायत और डीपीआरओ के शामिल होने की शिकायत की गई है। निविदा प्रक्रियाओं के 18 बिंदु में से एक भी पालन नहीं हो रहा है, मनमाने तरीके से जिसे चाहा उसे आपूर्ति का ठेका दे दिया, भले ही उसने अपने फर्म का पैन कार्ड दिया हो या न हो, भले ही चाहे उसने धरोहर राशि जमा की हो या न हो। ग्राम पंचायतों ने सामग्री की आपूर्ति करने वाले निविदा को मजाक बनाकर रख दिया, एक भी एडीओ पंचायत और डीपीआरओ ने यह नहीं देखा कि निविदा प्रक्रिया का पालन हो रहा है, कि नहीं? सब लोग अपनी जेबें भरने में लगे हुए है। एक भी ग्राम पंचायत ने न तो निविदा में परियोजनाओं की लागत का उल्लेख किया और न परियोजनाओं का नाम ही लिखा, यह भी नहीं लिखा कि साल भर में कितनी सामग्री का उपयोग होगा। एक भी ग्राम पंचायतें फर्म से फर्म का पैन कार्ड नहीं लेती, अगर लेती तो टीडीएस का पैसा इंकम टैक्स में जाता, व्यक्तिगत नाम से पैन लेकर कोरम पूरा कर दे रही है, व्यक्तिगत पैन कार्ड जानबूझकर लिया जाता है, ताकि टीडीएस का पैसा व्यक्ति के नाम जाए। एक भी ग्राम पंचायतें फर्म का बोनाफाइट प्रमाण-पत्र भी नहीं लेती। फर्म ब्लैक लिस्टेड हैं, कि नहीं, होने का प्रमाण-पत्र नहीं लिया जाता है, एक भी ग्राम पंचायतें निविदा कार्रवाई का रजिस्टर नहीं रखती, ताकि चोरी न पकड़ी जाए। फर्म के द्वारा पीडब्लूडी के मानकों के अनुसार आपूर्ति की जा रही है, कोई देखने वाला नहीं, निविदाताओं के द्वारा हस्ताक्षरित घोषणा-पत्र नहीं लिया जाता। जिन प्रधानों ने सांसद और विघायक निधि का टेंडर निकाला उनमें रुधौली के हसनी, बांसखोर कला, सुरवार कला और पड़री का नाम शामिल है। जिन ग्राम पंचायतों के टेंडर कह जांच के लिए कमेटी बनी थी, उनमें रुधौली के ग्राम पंचायत बखरिया, आमबारी, चंद्रभानपुर, नेवादा, खम्भा, बांसखोर कला एवं पैड़ा, रामनगर के ग्राम पंचायत अतरडीहा एवं साउंघाट के ग्राम पंचायत जमदाषाही का नाम षामिल है। निविदादाता को कार्य लागत का 10 फीसद धरोहर राषि जमा करना होगा। बाक्स में

टेंडर निकालना कोई ग्राम पंचायत तरकुलवा तिवारी से सीखे

बस्ती जिले के प्रधान और सचिव अगर ईमानदार होते तो जिला महराजगंज के विकास खंड परतावल के ग्राम पंचायत तरकुलहवा तिवारी के टेंडर की तरह निविदा आमंत्रित करते। मामला सबकुछ ईमानदारी और बेईमानदारी पर ही आकर टिक जाती है। अब सवाल उठ रहा है, कि क्या हमारे जिले में एक भी ईमानदार प्रधान और सचिव नहीं हैं, जो निविदा प्रक्रिया का पालन कर सके। अगर होते तो ग्राम पंचायत माडल बन जाती। तरकुलहवा तिवारी के टेंडर में निविदा की सभी प्रक्रिया को पूरा किया गया। सभी परियोजनाओं का नाम लिखा गया, लगात लिखी गई। निविदा में जीएसटी के साथ नंबर एवं टैन नंबर की छाया प्रति लगाना अनिवार्य कर दिया, ताकि टीडीएस की चोरी न हो। निविदा के साथ दो फीसद कार्य लागत का एफडीआर, टीडीआर जो राष्टीयकृत बैंक द्वारा जारी किया गया हो तथा सचिव के नाम बंधक हो लगाना अनिवार्य होगा। प्रधान और सचिव लोग जब कागत के टुकड़े पर निविदा प्रकाशित करवाएगें तो बेईमानी होगी ही। कहा भी जाता हैं, कि जिसकी बुनियाद ही बेईमानी यानि निविदा पर टिकी हो उस भवन को आज नहीं तो कल ढ़हना ही है। जब से प्रधान और सचिव ने निविदा के प्रकाशन में बखरा लेना शुरु किया तब से निविदा में भ्रष्टाचार का जन्म हुआ।

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