आस्तीन की सांप हैं, सीएम के अधिकारीःकैबिनेट मंत्री
- Posted By: Tejyug News LIVE
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- Updated: 22 May, 2025 20:29
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आस्तीन की सांप हैं, सीएम के अधिकारीःकैबिनेट मंत्री
-कहा कि किसी मंत्री का अपमान हो कोई मतलब नहीं पार्टी गर्त में जाए कोई मतलबःडा. संजय निषाद
-सरकारी सम्मान न मिलने से मंत्रीजी ने अधिकारियों पर निकाला गुस्सा, सहयोगी दलों के विधायक और मंत्री अपमानित होते रहते, लेकिन अफसरों पर कोई फर्क नहीं
-सहयोगी दलों के विधायकों और मंत्रियों की हालत एक आम आदमी से भी बदतर हो गई, अधिकारी आम आदमी की सुन लेता, लेकिन सहयोगी दलों के विधायकों और मंत्रियों की नहीं सुनते
-सहयोगी दलों के विधायक और मंत्री अपमानित और बेइज्जत होते रहते हैं, फिर भी अधिकारियों के सामने हाथ जोड़कर खड़े रहते, इतनी भी नैतिकता नहीं कि सरकार से अपना समर्थन वापस ले लें
बस्ती। अगर कोई कैबिनेट मंत्री योगीजी के दुलारे अधिकारियों के बारे में यह कहे, कि अधिकारी आस्तीन की सांप है। तो यह समझ लेना चाहिए, कि प्रदेश में नेताओं का नहीं बल्कि अधिकारियों का राज चल रहा है। इसके लिए सहयोगी और विपक्षी दल सिर्फ और सिर्फ योगीजी को ही जिम्मेदार मान रहे हैं, कह रहे हैं, कि अधिकारियों के चलते लोकसभा में भाजपा और सहयोगी दलों की हार हुई। कहते हैं, कि जब सहयोगी दल का कैबिनेट मंत्री अपने कार्यकर्त्ताओं का काम नहीं करवा सकता, जनता का काम नहीं करवा सकता हैं, फिर उन्हें चुनाव में वोट कौन देगा और कौन कार्यकर्त्ता उनके लिए लड़ेगां? जिले के प्रभारी मंत्री को जब पुलिस के आला अधिकारी से जान का खतरा हो सकता है, तो फिर आम आदमी कितना सुरक्षित हैं, इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। महाकुंभ मेले में अधिकारियों की लापरवाही के चलते न जाने कितने श्रद्धालुओं की मौत हो गई, लेकिन योगीजी ने एक भी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं किया, भाजपा के न जाने कितने विधायक लिख और बयान दे चुके हैं, कि अफसरशाही के चलते सरकार की छवि खराब हो रही है। तेजतर्रार एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह भी योगीजी को लिख चुके हैं, अगर अफसरों ने अपनी आदतों में सुधार नहीं किया तो इसका खामियाजा 2027 में भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। यह सही है, कि अगर भाजपा 2027 में सत्ता में नहीं आती तो इसके लिए किसी और को नहीं बल्कि योगीजी और उनके अधिकारियों को जिम्मेदार माना जाएगा। अधिकारियों की जन विरोधी कार्य के चलते न जाने कितने भाजपा के विधायक और सांसद चुनाव हार चुके है। ओमप्रकाश राजभर, आशीश पटेल और डा. संजय निशशद जैसे अनेक मंत्री और विधायक न जाने कितनी बार सरकारी विरोधी बयान दे चुके है। अगर विपक्ष का सांसद और विधायक यह कहें कि इस सरकार में अधिकारी उनकी नहीं सुन रहे हैं तो बात समझ में आती, लेकिन अगर सत्ता पार्टी के विधायक और सहयोगी दल के मंत्री और विधायक रोना रोए तो किसी की समझ में नहीं आएगा। योगीजी ने अपने जनप्रतिनिधियों और सहयोगी दलों के मंत्रियों और विधायकों को इतना कमजोर और महत्वहीन बना दिया कि वह अपने कार्यकर्त्ताओं और जनता के सामने अपने आप को लज्जित और असहज महसूस कर रहे है। महादेवा के विधायक दूधराम एक भ्रष्ट सचिव का तबादला करवाने के लिए न जाने कितने अधिकारियों को पत्र लिखा विभागीय मंत्री और राजभर पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर से भी शिकायत किया, लेकिन वह तबादला नहीं करवा पाए। एक दिन पहले जिस तरह केैबिनेट मंत्री डा. संजय निशाद को प्रोटोकाल के तहत सुविधा नहीं दी गई, और उसके बाद जो उन्होंने मीडिया में बयान दिया, वह काफी चौकाने वाला रहा। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी मैं कई बार कह चुका हूं कि अधिकारी आस्तीन की सांप है। लेकिन योगीजी उनकी बात को सुन ही रहे है। कहते हैं, कि सबसे बड़ा नुकसान भाजपा के साथ-साथ सहयोगी दलों का हो रहा है। सहयोगी दल और भाजपा कमजोर होती जा रही है। कहते हैं, कि इसी लिए अब कोई फरियादी उनके पास फरियाद लेकर ही नहीं आता, क्यों कि उसे मालूम हैं, कि योगीजी के राज में मंत्रियों की हैसियत एक चपरासी से भी बदतर हो गई। विधायकों के जनता दरबार में फरियादी से अधिक ठेकेदार नजर आते है। विधायकों और मंत्रियों की इससे पहले इतनी दुर्दशा कभी नहीं हुई होगी। एक कैबिनेट मंत्री जिले में आतें और उसके साथ प्रोटोकाल नहीं निभाया जाता, गार्ड आफ आनर तक नहीं दिया जाता तो आप समझ सकते हैं, कि योगीजी ने सहयोगी दलों के मंत्रियों और उनके विधायकों की क्या हालत कर दी? अब तो कई मंत्री दौरे पर जाना ही नहीं चाहते। अगर किसी सहयोगी दल को सत्ता में रह कर भी लाभ नहीं मिलता तो वह क्यों नहीं सत्ता दल से नाता तोड़ देते हैं? सहयोगी दल का हर मंत्री और विधायक अपमान के जहर का घूंट पीकर रह जा रहा है, लेकिन सत्ता का मोह नहीं छोड़ पा रहा है। यही वह कमजोरी का नस है, जिसे योगीजी दबाना अच्छी तरह जानते हैं। राजनीति अगर किसी नेता की कमजोरी बन जाए तो समझ लेना चाहिए कि नेता कमजोर है। सहयोगी दल के एक मंत्री का कहना है, कि अगर यही हाल सहयोगी दलों के मंत्रियों और विधायकों का रहा है, तो उन्हें अपनी सीट बचाना मुस्किल हो जाएगा। तब इसका सबसे अधिक लाभ विपक्ष यानि सपा को मिलेगा। लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद नेताओं को लगने लगा था, कि योगीजी में उनके प्रति कोई बदलाव आएगा और अफसरशाही पर शिकंजा कसेगें, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
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