वेल ठन आशीष, आपके पीछे पूरा जिला खड़ा

वेल ठन आशीष, आपके पीछे पूरा जिला खड़ा

वेल ठन आशीष, आपके पीछे पूरा जिला खड़ा

बस्ती। आज के दौर में अगर कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ता तो नेता भले ही साथ न दे लेकिन जनता साथ अवष्य देती है। अगर कोई जनता की आवाज बनकर सामने आता हैं, तो जनता उसे सिर आंखों पर उठा लेती है। भ्रष्टाचार और अधिकारी के बेलगाम होने की बाते तो सभी करते हैं, लेकिन सामने आने की हिम्मत बहुत कम लोगों में होती है। जो सामने आता है, वह जनता का हीरो बन जाता है। कुछ इसी तरह का काम भाजपा के आशीष शुक्ल ने उठाया है। धरने पर बैठकर इन्होंने साबित कर दिया कि यह उन नेताओं से अलग हैं, जो बातें तो बहुत करते हैं, लेकिन आवाज नहीं उठाते है। भ्रष्टाचार और मनमानी के खिलाफ जो आवाज विप़क्ष के नेताओं को उठानी चाहिए, वह आवाज सत्ता पक्ष से जुड़े नेता उठा रहे है। आज इनके साथ में भले भीड़ न हो लेकिन जैसे-जैसे आंदोलन बढ़ेगा इनका साथ देने वालों की संख्या दिन-प्रति दिन बढ़ती जाएगी। यह लड़ाई किसी मांग को पूरा करने के लिए नहीं लड़ी जा रही है। बल्कि शासन और प्रशासन को यह एहसास कराने के लिए लड़ी जा रही है, कि जनता भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से कितनी तंग हो चुकी है। यह लड़ाई योगी और मोदी को बताने के लिए लड़ी जा रही है, कि आप लोगों के लिए 27 आसान होने वाला नहीं है। यह लड़ाई उन पुलिस अफसरों को एहसास कराने के लिए हो रही हैं, कि आप का दारोगा और सिपाही आम लोगों और पीड़ितों के कैसा व्यवहार कर रहे है। चूंकि इस तरह की लड़ाई पहली बार लड़ी जा रही हैं, इस लिए इसे जनता का अपार समर्थन और आर्शीवाद मिल रहा है। यह लड़ाई किसी विशेष वर्ग के लिए नहीं लड़ी जा रही हैं, बल्कि उन सभी के लिए लड़ी जा रही हैं, जो कहीं न कहीं कोई पुलिस और कोई प्रशासनिक अधिकारी से पीड़ित है। अगर इसके बाद भी योगी-मोदी और अधिकारी नहीं जागते हैं, तो फिर श्रीकृष्ण भगवान को जमीन पर आना पड़ेगा। मीडिया आज से नहीं सालों से कह रही हैं, कि कुछ गलत हो रहा हैं, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं, आज भी मीडिया कह रही हैं, अगर भाजपा के नेताओं की नींद नहीं खुली तो 27 में बोरिया बिस्तर बांधने के लिए तैयार रहे है। कम से कम बस्ती में तो अगर साफ होने से बचाना है, तो जनता की आवाज को सुनना होगा। नेताओं की मत सुनिए, लेकिन कम स कम से उन लोगों की सुनिए जिन लोगों ने आप लोगों को सत्ता का सुख भोगने का मौका दिया है। ध्यान रहे, यह सुख बार-बार नहीं मिलता। कोई भी सरकार और नेता अधिक दिन और बार-बार जनता को बेवकूफ नहीं बना सकती। बहरहाल, आशीष शुक्ल और उनकी टीम ने जो अलख जलाई हैं, उसे बूझने मत दीजिएगा। अखिलेश मिश्र कहते हैं, कि पुलिस और प्रषासन की गुंडई के खिलाफ आंदोलन जरुरी है। इन लोगों की जो कमरे में नोट भरने की प्रवृत्ति हैं, उसके चलते लोग मौत के मुंह में जा रहे है। इन लोगों का आचारण अपराधियों जैसा होता जा रहा है। अरविंद सोनकर लिखते हैं, कि भाजपा राज में भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है, कि भाजपा के नेता ही सरकारी तंत्र के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे है। आम जनता का क्या होगा? अनिल श्रीवास्तव लिखते हैं, कि जो काम जनप्रतिनिधियों को करना चाहिए, वह काम आशीष शुक्ल कर रहे है, सलूट है, ऐसे कार्य करने वालों को। विष्वनाथ ओझा लिखते हैं, कि असली कर्मयोगी यही लोग हैं, बाकी लोग फोटो खिंचवाने का काम करते हैं, इन बीर बाकुंरों को बार-बार नमस्कार। रविकांत पिंटू दूबे लिखते हैं, कि हरीश द्विवेदी किसी के नहीं है, खाली और खाली पैसे के है। राम कृष्ण सोनी लिखते हैं, कि इतना सबकुछ होने के बावजूद जिले के वर्तमान और पूर्व माननीय शांत बैठे हुए है। जनता के दुखदर्द की किसी को कोई परवाह नहीं।

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