वकील साहब, मान जाइए, नहीं तो सब्जी के लाले पड़ जाएगें!
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 19 June, 2025 21:16
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वकील साहब, मान जाइए, नहीं तो सब्जी के लाले पड़ जाएगें!
-हर्रैया के अधिवक्ताओं को वहां के वादकारी सलाह दे रहे हैं, कि बहुत लड़ाई-झगड़ा और कार्य बहिष्कार हो चुका, अब मुकदमों पर ध्यान दीजिए ताकि वादकारियों को कचहरी से मुक्त मिल सके
-इसी लड़ाई-झगड़े के चलते पूरे जिले में सबसे सबसे अधिक 6116 मुकदमें हर्रैया के राजस्व न्यायालयों में सालों से लंबित
-लंबित मामलों के निस्तारण में न तो अधिवक्तागण और न अधिकारी रुचि ले रहे हैं, रुचि लेते तो इतने मामले पंेडिगं न रह जाते
-वकील और साहब लोग उन्हीं मामलों रुचि और जल्दबाजी दिखाते हैं, जिन मामलों में सौदेबाजी हो चुकी होती
-अधिकारियों से अधिक अधिवक्ताओं को वादकारियों के बीच छवि सुधारने की आवष्यकता हैं, क्यों कि इन्हें वादकारियों के बीच 365 दिन रहना, अधिकारी आज है, कल चले जाएगें
-वादकारियों का कहना है, कि अगर वकील साहब तारीख पर नहीं आएगें तो उनके घर सब्जी कैसे जाएगी, और कैसे वह डेली बचत कर पाएगें?
बस्ती। कार्य बहिष्कार करने वाले हर्रैया के अधिवक्ताओं को उनके ही क्लांइट सलाह दे रहे हैं, कि वकील साहब जब आप तारीख पर नहीं आएगें जो क्लांइट से फीस कैसे लेगें? और जब फीस नहीं लेगें तो सब्जी कैसे घर जाएगी? और कैसे डेली बचत खाते में पैसा जमा करेगें? इस लिए आप लोगों से प्रार्थना है, कि लड़ाई-झगड़ा और कार्य बहिष्कार छोड़िए, मुकदमों के निस्तारण में लग जाईए, आप का और हमारा बहुत नुकसान हो चुका है। आप लोगों की बड़ी बदनामी हो रही है। वैसे भी पूरे जिले में सबसे अधिक 6116 मुकदमें तहसील हर्रैया के विभिन्न राजस्व न्यायालयों में लंबित है। इनमें एक साल से तीन साल तक केे 979, तीन से पांच साल के 179 और पांच साल से 10-15 साल तक लंबित रहने वाले मुकदमों की संख्या 173 है। यह आकड़े पहली जनवरी 25 से 17 जून 25 तक के है। वैसे इस तहसील में कुल एक लाख 20 हजार 174 वाद दाखिल हुए जिसमें एक लाख 14 हजार 058 मुकदमें निस्तारित हुए। यह वह आकड़ा है, जो फीड हैं, जो फीड नहीं हैं, उसकी तो बात ही मत करिए। संख्या सबसे अधिक मुकदमें 937 तहसीलदार न्यायिक, 801 एनटी हर्रैया, 796 में तहसीलदार, 779 एनटी सदर, 772 एनटी गौर, 554 एसडीएम, 540 एनटी विक्रमजोत और 521 मुकदमों की फाइल एसडीएम न्यायिक न्यायालय में धूल फांक रही है। वादकारियों की माने तो इसके लिए अधिक उनके वकील साहब जिम्मेदार है। कहते हैं, कि ऐसा लगता है, कि मानो हमारे वकील साहब लोगों को अपनी जिम्मेदारी का जरा भी एहसास नहीं रह गया। कहते हैं, कि जिस दिन वकील साहब लोग चाह जाएगें, उस दिन लंबित मुकदमों की संख्या जिले भर में सबसे कम हर्रैया में हो जाएगी, लेकिन इसके लिए इन्हें बार-बार और जरा-जरा सी बात पर कार्य बहिष्कार के रर्वैए को छोड़ना होगा, इन्हें यह समझना होगा कि क्लाइंट इन्हें अपने मुकदमों की लड़ाई के लिए फीस देती है, न कि अधिकारियों से लड़ाई लड़ने के लिए।
यह सही है, कि लंबित मामलों के निस्तारण में न तो अधिवक्तागण और न अधिकारीगण ही रुचि ले रहे हैं, अगर रुचि लेते तो इतनी बड़ी संख्या में मुकदमें पंेडिगं नहीं रह जाते। यह लोग उन्हीं मामलों में रुचि और जल्दबाजी दिखाते हैं, जिन मामलों में इन्हें कुछ मिलने की संभावना रहती है। इसी लिए वादकारी बार-बार कह रहा है, कि अधिकारियों से अधिक अधिवक्ताओं को अपनी छवि सुधारने की आवष्यकता हैं, क्यों कि इन्हें वादकारियों के बीच 365 दिन रहना, अधिकारी आज है, कल नहीं रहेगें, लेकिन क्लाइंट और अधिवक्तागण तो रहेगें। अधिकारी तो मलाई काटने के लिए ही आते है। आते हैं, हाथ झुलाते और जब जाते हैं, तो हाथों में नोटों से भरा ब्रीफकेस रहता है। लेकिन अधिवक्तता तो क्लांइट का केस लड़ने के लिए आते है। हर्रैया तहसील के अधिवक्तताओं के बारे में अक्सर कहा जाता है, कि यहां पर वही वकील सॅफल हैं, जिनका उठना-बैठना और दोस्ती अधिकारियों से रहती है। क्लांइट भी ऐसे वकील साहब लोगों के पास केस लेकर जाना पसंद करते हैं, जिनकी अधिकारियों के साथ सेटिगं रहती है। वकील साहबों की सारी सफलता और असफलता सेटिगं पर ही टिकी रहती है। वैसे भी कामयाब और सफल अधिवक्ता उसी को वादकारी मानते हैं, जो अधिक से अधिक केस क्लांइट के पक्ष में कर/करवा सके। कहते भी हैं, कि इस तहसील में कोई भी और बड़े से बड़ा सही/गलत काम करवाना मुस्किल नहीं रहता। अब किसी भी मुवक्किल को साहबों के कमरे में जाने से डर नहीं लगता। पहले के लोग कमरे में जाने को कौन कहे, कोर्ट बाबू से भी सही/गलत काम कराने के लिए कहने से डरते थे। लेकिन आज एक भूमाफिया भी निडर होकर बिना ‘मे आई कमिगं सर’ कहे, चला जाता है। लेन-देन की बात करता है। ऐसे लोग अपने वकील साहब को साइड में कर देते है। न्यायिक अधिकारियों में इतनी गिरावट इससे पहले कभी नहीं देखा गया। अगर गिरावट न होता तो एसडीएम थप्पड़ न खाते। गुण-दोष के आधार पर निर्णय होना तो मानो सपने जैसा हो गया। अब तो लेन-देन के आधार पर निर्णय होता हैं, और इस लेन-देन में जीत हमेषा पैसे वाले क्लाइंट की होती रही है। वकील साहब लोग साक्ष्य और सबूत को लेकर कोर्ट में चिल्लाते रह जाते हैं, लेकिन उनकी सारी बहस और सबूत लेन-देन के आगे बेकार चली जाती है। जिस केस को ईमानदारी के बल पर जीतना चाहिए, उसे बेईमानी और पैसे के बल पर जीता जा रहा है। ईमानदार क्लांइट रोता हुआ कोर्ट से बाहर निकलता हैं, और बेईमान क्लाइंट मुस्कराता और चिढ़ाता हुआ जीत के साथ लेकर कोर्ट से निकलता है, और बाहर आकर सबको मिठाई भी खिलाता हैं, वकील साहब को विषेष उपहार देना नहीं भूलता। बहुत से ऐसे वकील साहब हैं, जो अपने गरीब क्लांइट का केस इस लिए हाथ में लेते हैं, क्यों कि उन्हें जीत का पक्का भरोसा रहता हैं, लेकिन उनका भरोसा तब टूटता हैं, जब साहब नोटों के वजन के आधार पर निर्णय सुनाते है।
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