विगो, दवाओं और सर्जिकल सामानों में भी हो रहा कमीशन कासामानों खेल
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 30 June, 2025 21:52
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विगो, दवाओं और सर्जिकल सामानों में भी हो रहा कमीशन कासामानों खेल
-इस खेल में जिला और महिला अस्पताल के डाक्टर्स और वार्ड व्याय तक शामिल
-डाक्टर्स साहब छोटी पर्ची देते हैं, और कहते हैं, उसी दुकान से लेना जहां हमने बताया
-पेटेंट दवाओं के नाम पर 50 फीसद कमीशन वाला जेनरिक दवाएं ही मरीजों का दी जाती
-जिला अस्पताल में डेली चार लाख तो महिला में दो से तीन लाख की 50 फीसद कमीशन वाली दवाओं का होता धंधा
-एक हजार की दवा चार हजार में बेची जा रही, यह चैन पीएचसी और सीएचसी तक फैला हुआ
-जिस डाक्टर को एक लाख की दवा लिखने पर 40 हजार कमीशन मिलता हो वह तो लिखेगा ही, डेली जिला और महिला अस्पताल के डाक्टरों की जेबों में जाता लगभग तीन लाख ब
स्ती। जब प्राइवेट अस्पताल के डाक्टर्स नकली और जेनरिक दवाओं का कारोबार करके सौ करोड़ कमा सकते हैं, तो सरकारी अस्पताल के डाक्टर्स और वार्ड व्याय क्यों पीछे रह जाए, आखिर इनके भी मंहगें शोक हैं, इन्होंने भी मंहगी गाडियों में घूमते और विदेश की सैर करने का सपना पाल रखा होगा। जिला अस्पताल और महिला अस्पताल में विगो, जेनरिक दवाओं और सर्जिकल के सामानों पर कमीशनबाजी का बहुत बड़ा खेल हो रहा है। अब तो इस खेल की बीमारी पीएचसी और सीएचसी के डाक्टर्स को भी लग गई है। कहने का मतलब सभी लोग गरीब मरीजों को ही अपना निशाना बना रहे है। डाक्टर्स इन्हें इस लिए आसानी से बेवकूफ बना लेते हैं, क्यों कि यह लोग आज भी डाक्टर्स को भगवान का रुप में मानते है। मगर भगवान रुपी यह डाक्टर्स उन्हीं गरीब मरीजों का खून चूसते है। जिन्हें वह लोग भगवान मानते है। गांव गढ़ी और ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों को पेटेंट दवाओं और जेनरिक दवाओं की कीमतों में कितना अंतर होता हैं, उसे पता नहीं होता इसी का फायदा डाक्टर्स उठाते है। यह लोग तो झट से उसी दुकान पर दवा लेने चले जातें है, जिसे डाक्टर्स ने कहा, डाक्टर्स मरीजों से यह कहना नहीं भूलते कि दवा दिखा देना, इसके पीछे डाक्टर्स की मंशा यह देखते की रहती है, कि मरीज ने कौन सी दवा ली, पेटेंट वाली या फिर जेनरिक वाली, अगर किसी ने भूल से या जिद्व करके पेटेंट वाली दवा ले लिया तो उसे वापस करवा दिया जाता हैं, और कहा जाता है, वही दवा लाना जो हमने कहा और लिखा है। क्यों कि डाक्टर्स को पेटेंट दवाओं पर उतना कमीशन मेडिकल स्टोर वाले नहीं देते जितना जेनरिक दवाओं पर देते है। डाक्टर्स साहब की छोटी सी पर्ची पर ही शाम को हिसाब होता हैं। अगर किसी डाक्टर्स ने एक लाख की दवाओं वाली पर्ची लिखी तो शाम को उनके जेब में मेडिकल स्टोर वाला 40 हजार रख देता है। अगर कहीं डाक्टर्स साहब ने नकली दवा लिखा तो 40 हजार से बढ़कर 50-60 हजार हो जाता है। अगर कहीं पीडी वाली दवा लिखी तो उनका मकान बन सकता है, जमीन उनके नाम हो सकती है, वह और उनका परिवार विदेश भी घूम सकता हैं। लालची और खून चुसवा डाक्टर्स के सामने कमाई करने के कई आप्सन है। कौन कितना बेईमान और भ्रष्ट बनना चाहता हैं, यह उसका पर निर्भर करता है। कहने का मतलब अधिकांष डाक्टर्स मरीजों की सेवा करने के बजाए सेवा के नाम पर तिजोरी भर रहे है। अगर एक हजार की दवा चार हजार में बेची जाएगी तो जाहिर सी बात हैं, आलीशान महल भी बनेगा और पोर्टिकों में मंहगी कार भी खड़ी मिलेगी। तभी तो मेलकाम जैसी दवा बनाने वाली पीडी कंपनी का कारोबार करके एक डाक्टर्स की संपत्ति 250-से 300 करोड़ तक पहुंच गई। घूमने वाली कुर्सी पर डाक्टर्स मरीजों की सेवा नहीं करते बल्कि अपनी तिजोरी भरते है। बहुत से ऐसे डाक्टर्स हैं, जिन्हें आज भी मेलकाम जैसी पीडी कंपनी खरीद नहीं सकी। ऐसे भी डाक्टर्स हैं, जिनके पास नकली दवाओं का कारोबार करने वाले जाने से डरते हैं, कारोबार करना तो बहुत दूर की बात है। ऐसे डाक्टर्स को समाज की बहुत आवष्यकता है। वहीं पर कुछ ऐसे भी लालची और खून चुसवा डाक्टर्स हैं, जो पीडी जैसी कंपनियों वालों का वार्म वेलकम करतें हैं। लोग छोला छाप डाक्टर्स के बारे में नाहक ही अनाप शनाप बोलते रहते हैं, मीडिया भी इनके बारे में अधिक लिखती रहती है, और ऐसे लोगों के पास डीआई भी सबसे अधिक जाते हैं। सवाल उठ रहा है, कि क्यों नहीं मीडिया उन प्राइवेट अस्पतालों के खून चुसवा डाक्टर्स की पोल खोलते जो गरीब मरीजों को मारते रहते है। क्यों नहीं डीआई उन बड़े-बड़े नर्सिगं होम में जाते हैं, जहां के मेडिकल स्टोर पर नकली दवाओं का जखीरा रहता है। कुछ ऐसे अस्पताल भी हैं, जो अपने नर्स और अन्य को वेतन तक नहीं दे पाते। इस लिए यह नहीं दे पाते क्योंकि इनके पास ईमानदारी हैं, मरीजों की सेवा के प्रति यह समर्पित रहते हैं। सह अपने बच्चों को यह सीखाना नहीं चाहते हैं, कि पैसे के लिए अपना ईमान बेचों और मरीजों की जान लो। अगर यह लोग भी चाहें तो 100 तो नहीं लेकिन 25-50 करोड़ के क्लब में आसानी से शामिल हो सकते है। ऐसे अस्पतालों में भर्ती मरीज से अधिक मरीजों की सेवा करने वाले रहते है।
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