‘दोे’ साल से ‘असलहा’ कांउटर पर पड़ा ‘अकाल’

‘दोे’ साल से ‘असलहा’ कांउटर पर पड़ा ‘अकाल’

‘दोे’ साल से ‘असलहा’ कांउटर पर पड़ा ‘अकाल’

-तत्कालीन डीएम के पास जो कोई असलहा के लाइसेंस के लिए सिफारिश लेकर जाता, तो कहते कि सुरक्षा दे दूंगा, जिस व्यक्ति से खतरा उसे जेल भेजवा दूंगा, लेकिन लाइसेंस नहीं दूंगा, तबादला होने के दिन बैक डेट में यह पूर्व सांसद के 10 लोगों का लाइसेंस जारी करके गए

-वर्तमान डीएम के पास जो व्यक्ति असलहे का लाइसेंस के लिए जाता, कहते हैं, कि जब भी किसी का करुंगा, आप का सबसे पहले करुगंा, हो सकता है, कि वर्तमान डीएम भी जाते-जाते नेताओं के लोगों का लाइसेंस जारी करके जाएं, दोनों डीएम के टालने का अपना-अपना तरीका

-दोनों के कार्यकाल में न जाने कितने आवेदन का समय सीमा समाप्त हो गया, सैकड़ों आवेदन वापस कर दिए गए, एसपी और एसडीएम ने यह कर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया, कि जब डीएम ही असलहा जारी नहीं कर रहे तो मैं जारी करके क्या करुंगा

-असलहा जारी न होने से राजस्व, पुलिस और कलेक्टेट वालों के सामने चाय-पानी का भी संकट खड़ा हो गया, सैकड़ों लोगों का रिवाल्वर लटका कर चलने का सपना अधूरा ही रह जा रहा

-एक बार की फाइल बनवाने में कम से कम दस हजार का ऐसा खर्चा आता है, जिसकी कोई सरकारी रसीद नहीं मिलती। यानि लाइसेंस के शोकीन लोगों का दो करोड़ से अधिक डूब गया

बस्ती। सुनने में अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच है, कि कलेक्टेट स्थित जिस असलहा काउंटर पर भीड़ लगी रहती है, वह काउंटर पिछले दो सालों से सूना पड़ा हुआ है, लगता मानो अकाल पड़ा हुआ हैं, जिसके चलते बाबूओं के सामने चाय-पानी और सब्जी तक का संकट खड़ा हो गया, पहले की तरह अब कोई बाबू को किनारे ले जाकर उनसे लेन-लेन या फिर जुगाड़ की बात नहीं करता, हकीकत यह हैं, कि जब किसी का लाइसेंस ही जारी नहीं हो रहा है, तो कौन बाबू को पूछेगा। बाबू की आवभगत तभी होती है, जब डीएम चाहते है। पिछले दो सालों में लगभग दो सौ से अधिक आवेदन इस लिए रिजेक्ट कर दिए गए, क्यों कि आवेदन करने और लाइसेंस जारी करने के बीच जो समय रहता, वह पूरा हो गया, यानि अब इनमें किसी को फिर से लाइसेंस के लिए आवेदन करना है, तो वही प्रक्रिया अपनानी होगी, जो पहले अपनाई गई थी, यानि फिर तहसील, थाना और एसपी कार्यालय की भागदौड़ करनी पड़ेगी, बताते हैं, कि एक बार की फाइल बनवाने में कम से कम दस हजार से अधिक का ऐसा खर्चा आता है, जिसकी कोई सरकारी रसीद नहीं मिलती। यानि लाइसेंस के शोकीन लोगों का दो करोड़ से अधिक डूब गया। असलहा का लाइसेंस एक तरह से रोजगार साबित होता रहा हैं, क्यों कि एक फाइल के पूरा होने में फाइल बनवाने वाले से लेकर लेखपाल के रिपोर्ट लगाने और थानों से सत्यापन से लेकर एसपी और एसडीएम कार्यालय तक के लोग षामिल रहते है। हर किसी का अपना-अपना मेहनताना बंधा हुआ हैं। कहने का मतलब एक फाइल से कई घरों का खर्चा चलता है। इनमें एक भी ऐसा काउंटर नहीं जहां पर आप को मेहनताना देने से फुर्सत मिलने वाली है। चूंकि असलहा का लाइसेंस लेने वाला कोई गरीब व्यक्ति होता नहीं हैं, इस लिए असलहा का फाइल तैयार करवाने से लेकर लाइसेंस लेने तक में पानी की तरह वह पैसा बहाता है। बस्ती महोत्सव के दौरान के डीएम साहब ने खुला आफर देकर रखा था, दो लाख चंदा दो लाइसेंस ले जाओ। उसके बाद ऐसा कोई भी डीएम नहीं आएं जिन्होंने खुला आफर दिया हो। एक डीएम ऐसे भी रहे, जिन्होंने कैंप लगाकर जरुरतमंदों को लाइसेंस जारी किया। अब तो बिना नेताओं के सिफारिश के कोई सुनता ही नहीं, अब कोई डीएम को छोटी सी पर्ची नहीं थमाता, और न धीरे से कुछ कहता ही है।

अब जरा अंदाजा लगाइए कि पिछले दो सालों से अधिक समय से एक भी असलहा का लाइसेंस जारी नहीं हुआ। तत्कालीन डीएम वामसीजी के पास अगर कोई जाता तो वह यहते थे, कि दो सुरक्षा गार्ड उपलब्ध करा दूंगा, लेकिन लाइसेंस जारी नहीं करुंगा, यह भी कहते थे, कि उस व्यक्ति का नाम बताओ जिससे आप को जान का खतरा हो, उस व्यक्ति को जेल भेजवा दूंगा, लेकिन लाइसेंस जारी नहीं करुंगा, लेकिन जब इनका तबादला हुआ तो इन्होंने पूर्व सांसद के 10 लोगों के नाम का लाइसेंस जारी किया, और बाबू से कहा था, कि किसी को बताना नहीं कि हमने लाइसेंस जारी किया है। वर्तमान डीएम साहब यह कह कर टालते हैं, कि जब भी किसी का करुंगा, सबसे पहले आपका करुंगा। अब देखना यह है, कि यह जाते-जाते किसी नेता का करते हैं, कि नहीं? करने का मतलब अधिकारियों को कोई भी वसूल असलहा का लाइसेंस जारी करने के मामले में नहीं होता, चूंकि इसमें कोई नियम कानून नहीं चलता और न डीएम को बाउंड ही किया जा सकता हैं, यह पूरी तरह डीएम के विवेक पर आधारित होता है। जब एसपी साहब ने देखा कि डीएम साहब लोग लाइसेंस जारी नहीं कर रहे हैं, तो उन्होंने भी हस्ताक्षर करना बंद कर दिया। अगर डीएम चाहे तो खड़े-खड़े किसी का लाइसेंस जारी कर सकता है। कहने का मतलब जो लोग रिवाल्वर लटका कर चलने का सपना पाले हुए हैं, उन्हें अभी इंतजार करना पड़ेगा, कितना इंतजार करना पड़ेगा, यह असलहा बाबू तक नहीं बता पाएगें। इस लिए आवेदन मत करिए और समय का इंतजार करिए, वरना आप का हजारों रुपया पानी में चला जाएगा।

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