शासन और पोर्टल रिपोर्ट की जांच में फंस सकतें कई अधिकारी!

शासन और पोर्टल रिपोर्ट की जांच में फंस सकतें कई अधिकारी!

शासन और पोर्टल रिपोर्ट की जांच में फंस सकतें कई अधिकारी!

-खाद की उपलब्ध्ता और वितरण की जो रिपोर्ट जिला कृषि अधिकारी शासन, डीएम और जेडीए को भेज रहे हैं, और जो उपलब्धता पोर्टल पर दिख रही, उसमें 40 फीसद का अंतर

-सवाल, जब पोर्टल पर हर दुकान और हर समिति पर खाद उपलब्ध है, तो फिर किसानों को क्यों नहीं मिल और क्यों उन्हें अधिक दाम देकर खाद को खरीदना पड़ रहा

-सूत्रों का दावा है, कि अगर पोर्टल और शासन की रिपोर्ट जांच हो जाए, तो जिला कृषि अधिकारी, डीडीए और जेडीए की नौकरी पर आंच आ सकती

-आखिर पोर्टल पर खाद की उपलब्ध्ता फर्जी क्यों दिखाई दे रही हैं, और शासन को जो रिपोर्ट भेजी जा रही वह सही क्यों?

-विभाग खाद की उपलब्धता के मामले में कागजों में बहुत बड़ा हेराफेरी कर रहा, ताकि अधिक से अधिक खाद की कालाबाजारी करके माल कमाया जा सके

बस्ती। यूंही नहीं खाद वितरण से जुड़े अधिकारी, कर्मचारी और सचिव खाद उत्सव मना रहे है। जिला कृषि अधिकारी, डीडीए, जेडीए, एआर और सचिवों पर नीजि लाभ के लिए खाद वितरण व्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त करने का आरोप लग रहा है। खाद की कालाबाजारी करने के लिए जिला कृषि अधिकारी पर आकड़ों में हेराफेरी करने तक का आरोप लग रहा है। पैसा कमाने के लिए शासन और अधिकारियों को जो रिपोर्ट भेजा रही है, और एफएमएस पोर्टल पर जो खाद की उपलब्धता दिखती है, उसमें भारी अंतर है। जब कि दोनों की रिपोर्ट में एक भी बोरी का अंतर नहीं होना चाहिए। लगभग 40 फीसद आकड़े फर्जी बताए जा रहे है। जेडीए और डीडीए भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकते, क्यों कि मानिटरिगं करने की जिम्मेदारी इन दोनों अधिकारियों की ही है। एक तरह से दोनों अधिकारियों ने जिला कृषि अधिकारी की हेराफेरी वाली रिपोर्ट पर मोहर लगा दिया। होता यह है, कि पहले यह लोग खाद को रिटेलर्स या फिर किसानों को ब्लैक में बेच देते हैं, बाद में उसे फर्जी खारिज कर देते है। कहने का मतलब पोर्टल पर तब तक खाद उपलब्ध रहेगा, जब तक खारिज नहीं हो जाता। खारिज करने में कुछ दिन भी लग जाता है। मगर जैसे ही खारिज हो जाता हैं, पोर्टल पर खाद की उपलब्धता शून्य हो जाती है, और जो शासन को रिपोर्ट भेजी जा जाती हैं, वह खारिज होने के बाद वाली भेजी जाती है, खारिज ो पहले वाली नहीं भेजी जाती है। जानकारों का दावा हैं, कि इसकी रैंडम जांच हो सकती है, यानि किसी एक दिन की उस रिपोर्ट को मंगा लिया जो शासन को भेजा गया होगा, फिर उसके बाद पोर्टल वाली रिपोर्ट को देख ली जाए, तो हेराफेरी पकड़ में आ सकता है। किसानों का कहना है, कि खाद मंहगा बेचना उतना दोष नहीं जितना खाद को ही गायब कर देना, खाद रहेगा तो जरुरतमंद किसान अधिक दाम देकर खरीद सकता है, लेकिन जब खाद ही नहीं रहेगा, नेपाल और बगल वाले जनपदों बमें चला जाएगा तो किसानों को अधिक पैसे पर खाद नहीं मिलेगा। हो सही रहा है, समितियों से जितनी भी खाद ब्लैक में रिटेलर्स को दी जा रही है, वह खाद ही जिले से गायब हो जा रही है। खाद की क्राइसिस का एक बहुत बड़ा कारण हो सकता। अगर वही खाद रिटेलर्स अपने जिले के किसानों को बेचता भले ही चाहेें अधिक रेट पर बेचता तो कम से कम खाद की क्राइसिस तो नहीं होती। कहने का मतलब खाद की कालाबाजारी और जिले से खाद गायब होने के लिए पूरी तरह एआर और उनके सचिवों को जिम्मेदार माना जा रहा है, जिस तरह यह लो टक का टक खाद रिटेलर्स को बेच दे रहे हैं, उससे जिले के किसान खाद से वंचित हो जा रहे हैं, फिर उन्हें अगर चार सौ रुपया में भी खाद खरीदनी पड़े तो वे खरीदेगें।

भाकियू भानु गुट के मंडल प्रवक्ता चंद्रेष प्रताप सिंह ने सीएम और डीएम को ट्यूट करते हुए लिखा कि पूरे जिले में यूरिया की भारी किल्लत है। जिन दुकानदारों के पास यूरिया है वो 360-400 रुपया प्रति बोरी बेच रहे हैं। किसानों के साथ घोर अन्याय। ब्लेैक में खाद बिक रहा है। कृषि विभाग के अधिकारी आंख मूंदे हुए हैं। गौर टिनिच हरदी दुबौला जलेबीगंज आमा सहित जिले भर में यूरिया की कालाबाजारी हो रही है। किसानों के साथ उत्पीड़न कृषि विभाग के अधिकारी जांच के नाम पर कर रहें है। विभाग के अधिकारी बाबू और चपरासी से वसूली करवाते है।

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