सुधरती नहीं दिख रही किसानों की तकदीर, व्यवस्था बनी बेबस- सुविधाएं कोशों दूर,

सुधरती नहीं दिख रही किसानों की तकदीर, व्यवस्था बनी बेबस- सुविधाएं कोशों दूर,

सुधरती नहीं दिख रही किसानों की तकदीर, व्यवस्था बनी बेबस- सुविधाएं कोशों दूर,

जिस किसान की मेहनत से देश के करोड़ों लोगों का पेट भरता है, वही किसान आज अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहा है। खेतों में दिन-रात पसीना बहाने वाला किसान खुद दो वक्त की रोटी, पानी, इलाज, और शिक्षा के लिए तरस रहा है।

किसानों की आमदनी लागत से भी कम है। महंगे बीज, खाद, कीटनाशक और सिंचाई व्यवस्था का खर्च किसान की कमर तोड़ देता है। जब फसल तैयार होती है, तो उसे सही दाम नहीं मिलता। सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) अक्सर कागजों में ही सिमटा रह जाता है।

बैंकों से कर्ज न मिलने पर किसान साहूकारों से ऊंचे ब्याज पर कर्ज लेते हैं। जब फसल खराब हो जाती है या बाजार में दाम गिर जाते हैं, तो किसान डूब जाता है। कर्ज के बोझ में दबकर कई किसान आत्महत्या तक कर लेते हैं, और यह आंकड़ा हर साल बढ़ता जा रहा है।

गांवों में बिजली, पानी, सड़कों और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है। मौसम की मार, सिंचाई की कमी और तकनीकी जानकारी के अभाव में किसान पीछे छूट जाता है। सरकार की योजनाएं ज़मीन पर बहुत धीरे पहुँचती हैं या पहुँचती ही नहीं।

किसान देश का अन्नदाता है, लेकिन उसका सम्मान केवल भाषणों और विज्ञापनों में दिखता है। असल ज़िंदगी में वह सरकारी दफ्तरों, मंडियों और साहूकारों के चक्रव्यूह में उलझा रहता है।

जब तक देश का किसान सुखी नहीं होगा, देश की असली समृद्धि अधूरी रहेगी। सरकार और समाज दोनों को यह समझना होगा कि किसान केवल अन्नदाता नहीं, राष्ट्र निर्माता भी है। 

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