सूर्या एक्सरे वाले शर्माजी तो सबके फादर निकले!

सूर्या एक्सरे वाले शर्माजी तो सबके फादर निकले!

सूर्या एक्सरे वाले शर्माजी तो सबके फादर निकले!

-इन्होंने अवैध कमाई करने के लिए दुनिया का नायाब तरीका निकाला, 50 फीसद मुनाफा वाले दवाओं की सूची बनाई, दवा लिखना भूल न जाए, इस लिए उन दवाओं को नियम विरुद्व पर्चे पर प्रिंट करवा दिया

-इनके नर्सिगं होम से पर्चा निकालने के लिए पत्रकार को मरीज बनकर जाना पड़ा और 500 का पर्चा कटवाना पड़ा, तक जाकर षर्माजी के कालेकारनामें का खुलासा हुआ

-अंग्रेजी दवा बताकर षार्ट में जेनरिक की लिखते हैं, मरीजों को एमआरपी पर बेचते, जबकि खुले बाजार में 50 फीसद कम दाम पर दवाएं मिलती, मेडिकल स्टोर को लेकर 70 फीसद लाभ यह दवाओं पर कमाते

-प्रतिदिन तीन लाख दवाओं की विक्री होती, इस तरह तीन लाख की दवाओं पर इनकी जेब में 2.10 लाख गया, 25 दिन के ओपीडी में इनकी जेब में 53 लाख गया, यानि हर साल छह करोड़ से अधिक इनकी कमाई सिर्फ जेनरिक दवाओं से होती

-अगर 500 रुपया फीस, आपरेशन, जांच और एक्सरे का छोड़ दिया जाए तो इनकी कमाई डा. एसके गौड़ से अधिक होगी

-न्यूरो की डिग्री न होने के बाद भी यह न्यूरो का आपरेशन करते, 70 फीसद आर्थो और न्यूरो का आपरेषन असफल रहता, मरीजों के मरने का औसत भी इनका और डा. एसके गौड़ का बराबर

-मालवीय रोड पर एक बड़े डाक्टर भी कमीशन का खेल में फंसे इनका मेलकाम नामक दवा की कंपनी से टाईअप, इनकी भी दवाएं शर्माजी की तरह सीधे कंपनी से आपूर्ति होती, कोई ऐसा पर्चा नहीं रहता जिसमें इस कंपनी की चार से छह दवाएं न लिखी जाती

-इस कंपनी को जिले में कोई स्टाकिस्ट नहीं, यह दवाएं सिर्फ और सिर्फ इसी नर्सिगं होम के मेडिकल पर मिलती, डेली की कमाई 30-35 लाख, डेढ़ से दो करोड़ माह और 20 करोड़ सालाना कमाई

-पता नहीं यह सबकुछ डीएलए और डीआई को क्यों नहीं दिखाई दे रहा, इन्हें दिखाई तक देखा जब यह महीना लेना बंद का देगें

-मानव कर सेवा का संकल्प लेने वाले आईएमए के पदाधिकारियों को मरीजों का आर्थिक और जनहानि का नुकसान नहीं दिखाई दे रहा

बस्ती। जिला अस्पताल के करीब सूर्या सर्जिकल एंड स्पाइनल सेंटर के शर्माजी अवैध कमाई करने के लिए दुनिया का नायाब तरीका निकाला, 50 फीसद मुनाफा वाले दवाओं की सूची बनाई, दवा लिखना भूल न जाए, इसके लिए इन्होंने दवाओं को नियम विरुद्व पर्चे पर प्रिंट करवाया। इनके नर्सिगं होम से पर्चा निकालने के लिए पत्रकार को मरीज बनकर जाना पड़ा और 500 का पर्चा कटवाना पड़ा, तक जाकर षर्माजी के कालेकारनामें का खुलासा हुआ। इन्होंने खास-खास 27 दवाओं को पर्चे पर प्रिंट करवाया, ताकि आसानी से अंग्रेजी दवा बताकर शार्ट में लिखी गई जेनरिक की दवाओं पर आसानी से टिक लगाया जा सका। यानि शर्माजी को दवा लिखने से भी फुर्सत मिल गया। ंजिस दवा को लिखने में षर्माजी का दो-तीन मिनट लगता और दिमाग पर जोर देना पड़ता वह टिक लगाने से काम चल जा रहा है। यह मरीजों को एमआरपी पर जेनरिक की दवाएं बेचते, जबकि खुले बाजार में जेनरिक की दवा, अंग्रेजी दवाओं के मुकाबले 50 फीसद से कम दाम पर मिलती, मेडिकल स्टोर से इन्हें अलग 20 फीसद कमीशन मिलता। इस तरह शर्माजी को एक दवा में 70 फीसद कमीशन मिलता। इस तरह इनके मेडिकल स्टोर पर प्रतिदिन तीन-लाख दवाओं की विक्री होती, देखा जाए तो तीन लाख की दवाओं पर इनकी जेब में 2.10 लाख कमीशन का गया, अगर यह माह में 25 दिन ओपीडी करते हैं, तो इनकी जेब में 53 लाख रुपया जाता है। यानि हर साल छह करोड़ से अधिक की कमाई सिर्फ जेनरिक दवाओं से होती, अगर 500 रुपया फीस, आपरेशन, जांच और एक्सरे का जोड़ दिया जाए तो इनकी सालाना कमाई डा. एसके गौड़ से अधिक होगी। न्यूरो की डिग्री न होने के बाद भी यह न्यूरो का आपरेशन करते, 70 फीसद आर्थो और न्यूरो का आपरेशन असफल रहता, मरीजों के मरने का औसत भी इनका और डा. एसके गौड़ का बराबर है। उपभोक्ता फोरम में सबसे अधिक इन्हीं के खिलाफ वाद लंबित है। जाहिर सी बात हैं, कि अगर किसी डाक्टर को एक लाख की दवाओं पर 70 हजार कमीशन मिलता हो तो उस डाक्टर की गिनती आठ-नौ साल में 100 से 200 करोड़ के क्लब में होना लाजिमी है। बस्ती जिले में नकली दवाओं का इतना बड़ा कारोबार हो रहा हैं, लोग जेनरिक दवाओं को अग्रेजी दवाओं की कीमत पर बेच रहे हैं, और जिले का डीएलए और डीआई नकली दवाओं का कारोबार करने वालों के साथ मिलकर मलाई काट रहे है। मालवीय रोड पर एक बड़े डाक्टर भी बड़े पैमाने पर कमीशन वाली दवाओं का खेल, खेल रहे है। इनका मेलकाम नामक दवा की कंपनी से टाईअप, इनकी भी दवाएं षर्माजी की तरह सीधे कंपनी से आपूर्ति होती, कोई ऐसा पर्चा नहीं रहता जिसमें इस कंपनी की चार से छह दवाएं न लिखी जाती हो। इस कंपनी का जिले में कोई स्टाकिस्ट भी नहीं, यह दवाएं सिर्फ और सिर्फ इसी नर्सिगं होम के मेडिकल पर मिलती, इनकी डेली की कमाई 30-35 लाख हैं, डेढ़ से दो करोड़ माह और 20 करोड़ सालाना है। पता नहीं यह सबकुछ डीएलए और डीआई को क्यों नहीं दिखाई दे रहा, इन्हें तब दिखाई देखा जब यह महीना लेना बंद का देगें। मानव सेवा का संकल्प लेने वाले आईएमए के पदाधिकारियों को मरीजों का आर्थिक और जनहानि का नुकसान भी नहीं दिखाई दे रहा। नकली दवाओं के कारोबार में इस संस्था की चुप्पी ने सबको हैरान कर दिया। कहा भी जाता है, कि अगर इन लोगों के सामने अपने ही लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करवाने की मजबूरी आड़े आ रही है, तो कम से कम यह लोग नकली दवाओं की आपूर्ति तो अपने यहां बंद करवा ही सकते है। दावा किया जा रहा है, कि अगर आईएमए के सदस्य नकली दवाओं के कारोबार के नेक्सस को तोड़ना चाहते हैं, तो इसकी शुरआत उन्हें अपने नर्सिगं होम से करनी होगी। क्यों कि जिस तरह केजुअल्टी की घटनाएं हो रही है, अगर इसे रोका नहीं गया तो आने वाले दिनों में कहीं ऐसा न हो कि पीड़ित डाक्टरों पर अटैक न करने लगें। क्यों कि खूनचुसवा डाक्टरों से परिजन के बर्दास्त करने की क्षमता समाप्त होती जा रही है। लोगों में इतना रोष व्याप्त हैं, जिसका अंदाजा भी डाक्टर नहीं लगा सकते है।

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